कला -संस्कृति

खादी मॉल में ग्रामोद्योग विमर्श : जाड़ा में जड़ें नहीं, तिल खाकर तीसमार बनें

  • बिहार राज्य खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के ग्रामोद्योग विमर्श
  • मगध साम्राज्य में भी लोकप्रिय था तिलकुट : रविशंकर
  • उपनिषदों में मगध में तिल उपजाने के प्रमाण

पटना : भले गुजरात और राजस्थान में तिल की सर्वाधिक खेती होती है लेकिन बिहार ने तिल पर सर्वाधिक प्रयोग किए हैं. धार्मिक नगरी गयाजी यूं तो देश में हिंदू धर्म की सबसे बड़ी तीर्थ स्थली में से एक है, लेकिन गया की पहचान तिल पर सर्वाधिक प्रयोग से जुड़ी हुई है. तिल बिहार के सबसे बेहतरीन स्वाद से जुड़ी हुई है जो सर्दी में बिहार ही नहीं देश का बहुत ही खास व्यंजन हो जाता है. तिलकुट, तिलपापड़ी, तिलछड़ी, तिलौरी, तिलवा-मस्का और अनरसा. यह सब तिल के प्रयोग से जुड़े स्वाद हैं. गया एक तरह से तिल से बने व्यंजनों का पर्याय है तो उसके ऐतिहासिक कारण भी हैं. महर्षि पाणिनी ने अपनी पुस्तक अष्टाध्यायी में पलल नामक सुस्वादु मिष्ठान्न का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि इसमें तिल का चूर्ण, शर्करा या गुड़ मिलाकर बनाया जाता है. उपनिषद में भी इसका मगध में उपज होने का जिक्र आया है. अपने औषधीय गुणों के कारण यह सर्दी का खास पोषक व्यंजन भी हो जाता है. ये बातें पत्रकार और लेखक रविशंकर उपाध्याय ने सोमवार को बिहार राज्य खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड कार्यालय में आयोजित ग्रामोद्योग विमर्श में कही.
उन्होंने आगे कहा कि इसने रोजगार और समृद्धि का एक नया द्वार भी खोला है. गया के सबसे बड़े टैक्सपेयर में एक तिलकुट व्यवसायी ही है. एक अनुमान के मुताबिक, इस व्यवसाय से गया जिले में करीब 10 हजार से ज्यादा लोग जुड़े हैं. बिहार के सभी शहरों को जोड़ लें तो फिर यह आंकड़ा जनवरी माह में 50 हजार से ज्यादा हो जाएगा. स्थानीय लोगों के अनुसार, पहले तिलकुट व्यवसाय से तीन और व्यवसाय जिसमें ताड़ के पत्ते का दोना, बांस की बनी डलिया और लकड़ी का बक्सा और कागज का ठोंगा जुड़ा था. तिलकुट के साथ इन चीजों को इसलिए जोड़ा गया था, क्योंकि तिलकुट पर थोड़ा भी दबाव पड़ने पर वह चूर हो जाता था. चूंकि हम आज खादी ग्रामोद्योग में हैं, इस कारण इन उद्योगों पर जोर डालने की बात तो कह ही सकते हैं.

कार्यक्रम में स्वागत करते हुए बिहार राज्य खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी दिलीप कुमार ने कहा कि आज भी गया के तिलकुट की शान ना केवल देश बल्कि विदेश तक है. तिलकुट की कई किस्में होती हैं. मावेदार तिलकुट, खोया तिलकुट, चीनी तिलकुट व गुड़ तिलकुट बाजार में मिलते हैं. हाथ से कूटकर बनाए जाने वाले तिलकुट बेहद खस्ता होते हैं. तिलवा के भी कई स्वाद गया में मौजूद हैं. इसके स्वाद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दिसंबर, जनवरी व फरवरी महीने में बोधगया आने वाला कोई भी पर्यटक गया का तिलकुट ले जाना नहीं भूलता. कार्यक्रम में रविशंकर ने अपनी पुस्तक बिहार के व्यंजन: संस्कृति और इतिहास भी भेंट की.
उन्होंने आगे बताया कि उत्तर वैदिक काल में भी तिलहन में तिल, रेड़ी और सरसो का जिक्र है. अनाज में जौ, गेहूं, ज्वार, चना, मूंग, मटर, मसूर, कुल्थी का. तिल शब्द का संस्कृत में व्यापक प्रयोग है. कहते हैं कि यह पहला बीज है जिससे तेल निकाला गया, इससे ही इसका नाम तैल पड़ा. तैल यानी तिल से निकाला हुआ. हिंदी में यही तेल हो गया. तिल का इतना महत्व है कि पूरे तिलहन का नाम इसपर पड़ गया. अथर्ववेद में तिल के दैनिक के साथ आध्यात्मिक प्रयोग का वर्णन मिलता है. तिल हवन में प्रयोग में आता है तो तर्पण में भी.
भारतवर्ष में तिल की प्रचुर मात्रा में खेती की जाती है. तिल प्रकृति से तीखी, मधुर, भारी, स्वादिष्ट, स्निग्ध, गर्म तासीर की, कफ तथा पित्त को कम करने वाली, बलदायक, बालों के लिए हितकारी, स्पर्श में शीतल, त्वचा के लिए लाभकारी, दूध को बढ़ाने वाली, घाव भरने में लाभकारी, दांतों को उत्तम करने वाली, मूत्र का प्रवाह कम करने वाली होती है. आयुर्वेद में तिल के जड़, पत्ते, बीज एवं तेल का औषधि के रुप में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. तिल तेल का बाहरी प्रयोग इन बीमारियों में करने से लाभ मिलता है. आधुनिक विज्ञान की मानें तो तिल के बीज में उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, विटामिन ए, बी-1, बी-2, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, पोटैशियम पाया जाता है. जो आपको खूब ताकत देता है. तिल के साइड इफेक्ट भी हैं. कुष्ठ, सूजन होने पर तथा प्रमेह यानि डायबिटीज के रोगियों को भोजन आदि में तिल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. तिल (बीज) एवं तिल का तेल भारतवर्ष के प्रसिद्ध व्यावसायिक द्रव्य है. भारत में तिल की कुल तेल में हिस्सेदारी 40 से 50 फीसदी है. गुजरात, राजस्थान, एमपी, यूपी और पंजाब ऐसे राज्य हैं जहां इसकी सर्वाधिक खेती होती है. भारत जितना तेल निर्यात करता है उसमें सर्वाधिक हिस्सेदारी तिल की होती है. केंद्र सरकार का आंकड़ा कहता है कि 2020-2021 में गुजरात को इसके निर्यात से सर्वाधिक आय हुई. इसका साबुत बीज और चूरे का कितना इस्तेमाल होता है.
कार्यक्रम में खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के पदाधिकारीगण, प्रसिद्ध कलाकार राकेश कुमार झा, स्टार्टअप उद्यमी नीतीश मंगलम, हेरिटेज सोसाइटी के अनन्ताशुतोष द्विवेदी, जफर इकबाल, नेहा सिंह सहित अन्य उपस्थित थे.

Dr Rishikesh

Editor - Bharat Varta (National Monthly Magazine & Web Media Network)

Recent Posts

नामचीन डॉक्टर मृत्युंजय को सुश्रुत अवार्ड, बेस्ट सर्जन के रूप में कोलकाता में हुए सम्मानित

Bharat varta Desk बिहार के जाने-माने सर्जन डॉक्टर मृत्युंजय कुमार को कोलकाता में सम्मानित किया… Read More

3 days ago

संगम कुमार साहू होंगे पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस

Bharat varta Desk सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 18 दिसंबर 2025 को हुई बैठक में उड़ीसा… Read More

4 days ago

अमर रहेंगे आचार्य किशोर कुणाल…. प्रथम पुण्यतिथि पर याद किए गए पटना महावीर मंदिर के प्रणेता

Bharat Varta Desk : बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बरूराज स्थित पैतृक गांव कोटवा में… Read More

4 days ago

बिहार पुलिस को मिली 34 मोबाइल फॉरेंसिक वैन, मुख्यमंत्री ने किया लोकार्पण

पटना : अपराध अनुसंधान को वैज्ञानिक और तेज़ बनाने की दिशा में बिहार सरकार ने… Read More

4 days ago

जन्मदिन पर याद किए गए भिखारी ठाकुर, नीतू नवगीत ने गीतों से दी श्रद्धांजलि

पटना : सांस्कृतिक संस्था नवगीतिका लोक रसधार द्वारा पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में भोजपुरी… Read More

4 days ago

संजय सरावगी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष

Bharat varta Desk भाजपा बिहार में संगठनात्मक स्तर पर बड़ा और रणनीतिक बदलाव करते हुए… Read More

1 week ago