Special Story by : Dr Rishikesh
@ Talk with Rishikesh
Bharat Varta @ Special Story : देववाणी संस्कृत को भाषाओं की जननी कहा जाता है। बदलते परिवेश में संस्कृत भाषा की ये पहचान सिमटती गई। अब संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज 22 भाषाओं में इसकी पहचान सबसे कम बोली जाने वाली भाषा के रूप में है। संस्कृत भाषा को फिर से बोलचाल की भाषा बनाने के लिए महादेव की नगरी काशी के एक वकील ने पिछले 44 सालों से अनोखी मुहिम छेड़ रखी है।
माना जाता है कि वकालत केवल हिंदी और अंग्रेजी भाषा में होती है। संस्कृत भाषा में वकालत करना बेहद मुश्किल और कठिन कार्य है। वाराणसी के 76 वर्षीय आचार्य श्याम जी उपाध्याय शायद देश के पहले ऐसे वकील हैं, जो न्यायालय के सारे कामकाज में संस्कृत भाषा का प्रयोग करते हैं। ये सिलसिला 1978 में शुरू हुआ था। पत्र लिखने से लेकर कोर्ट में जज के सामने बहस तक का काम वह संस्कृत में करते चले आ रहे हैं। अपील से लेकर दलील तक सब कार्य संस्कृत में करते हैं। जब शुरुआती दौर में वह मुवक्किल के कागजात संस्कृत में लिखकर जज के सामने रखते थे तो जज भी हैरत में पड़ जाया करते थे। आज भी जब वाराणसी के न्यायालय में कोई नए जज आते हैं तो वह भी हैरत में पड़ जाते हैं। जज अनुवादक की मदद से कोर्ट में रखी गई उनकी दलीलों को सुनते हैं।
आचार्य श्याम जी उपाध्याय माथे पर काशी की पहचान का बड़ा सा तिलक और त्रिपुंड लगाते हैं। न्यायालय में जज के सामने बहस हो या किसी मसले पर तर्क वितर्क हो हर बात श्याम जी उपाध्याय पिछले 44 वर्षो से संस्कृत में करते आ रहे है। यही नहीं प्रातः 4 बजे उठने वाले श्याम जी उपाध्याय के कचहरी स्थित बस्ते की चौकी पर शिवलिंग विराजमान है।
श्याम जी उपाध्याय को अपने मुवक्किल के लिए कोई प्प्रार्थना पत्र भी लिखना हो या टाइप करना हो तो सब काम संस्कृत में करते हैं। ऐसा करने की प्रेरणा श्याम जी उपाध्याय को अपने पिता और संस्कृत में विद्वान स्व संकटा प्रसाद उपाध्याय से मिली है। वे कहते हैं कि ‘बचपन में मैंने अपने पिता से सुन रखा था कि कचहरी में सारा कामकाज हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषा में होता है, संस्कृत का प्रयोग नहीं होता। तभी मैंने अपने मन में ये बात बैठा ली थी कि मैं वकील बनूंगा और कचहरी का सारा कामकाज इसी भाषा में करूंगा। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य और हरिश्चंद्र डिग्री कॉलेज से लॉ की पढ़ाई करने के बाद कचहरी आया और तब से आज तक संस्कृत में ही अपना सारा काम करता आ गया हूं। 1978 से मैंने कचहरी में हजारों मुकदमे संस्कृत भाषा में ही लड़े हैं और सफलता हासिल की है।’ मूलरूप से मिर्जापुर के रहने वाले श्याम जी उपाध्याय अब वाराणसी के शिवपुर में रहते हैं।
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