बिहार भाजपा संगठन को मजबूत करने ग्राउंड में उतरे ‘मोदी के हनुमान’ सुनील ओझा

0
  • बिहार भाजपा के नए सह प्रभारी हैं सुनील ओझा
  • नरेंद्र मोदी के पहले चुनाव के प्रभारी थे ओझा
  • शनिवार को पटना शहर में पार्टी के एक बूथ कमिटी के कार्यक्रम में पहुंचे ओझा

पटना : 2024 में लोकसभा और 2025 में बिहार विधानसभा का चुनाव होना है। इन दोनों चुनाव से पहले भाजपा अपना प्लान बनाने में जुट गई है। यह जमीन पर दिख भी रहा है। भाजपा ने अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ भी सियासी जंग तेज कर दी है। भाजपा ने नीतीश कुमार के लव-कुश वोट बैंक पर चोट देने की प्लानिंग के तहत ही कुशवाहा समुदाय के नेता सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। इसके साथ ही भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी और उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी का काम संभालने वाले सुनील ओझा को भी बिहार की ओर भेजा है। सुनील ओझा को लेकर कई तरह की बातें कही जा रही है। बिहार में खास कर उनके आगमन को लेकर कई तरह की बातें हो रही है।
बता दें कि बिहार में भाजपा के प्रभारी के साथ एक सह प्रभारी पहले से हैं लेकिन सुनील ओझा को भी बिहार में भेजा गया है। इनसे पहले गुजराती भीखू भाई दलसानिया को बिहार प्रभारी बनाकर भेजा गया और अब सुनील ओझा को बिहार में सह प्रभारी बनाकर भेजा गया है। इन दोनों ही नेताओं मे एक दो बात हैं जो कि मिलता जूलता है कि दोनों गुजरात की राजनीति से आते हैं। दोनों ही नरेंद्र मोदी के काफी खास लोगों मे से हैं। दलसानिया जहां आरएसएस का बैकग्राउंड रखते हैं तो सुनील ओझा मूलरूप भाजपा संगठन को रीप्रिजेंट करते हैं। इस हिसाब से दोनों की जुगलबंदी बिहार में गेमचेंजर हो सकती है। बिहार की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए सुनील ओझा जैसे व्यक्ति को बिहार भेजा गया है। पिछली बार भाजपा को सहयोगियों के साथ 40 लोकसभा सीट में से 39 सीट मिल गई थी। ऐसे में इस बार चुनौती होगी कि अब नीतीश कुमार से अलग होने के बाद इस बार कैसा प्लान बनाया जाए ताकि रिकॉर्ड बनाया जा सके। अधिक से अधिक सीटों पर जीत हासिल हो।

सुनील ओझा के बारे में कहा जाता है कि वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठकों के अलावा, वह पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ भी समय बिताते हैं और उनके सभी संशय दूर करते हैं। जिस तरह से वह लोगों के साथ घुल-मिल जाते हैं, उससे पार्टी कार्यकर्ताओं को अपनी बात रखने का हौसला मिलता है। ओझा संगठन के आदमी हैं। उन्हें लोगों से मिलना और उनके बीच रहना काम करना पसंद है। बताया जाता है कि सुनील ओझा बैठकों पर नहीं, बल्कि संगठन को मजबूत करने के लिए कार्यकर्ता और जनता के घरों तक अपनी पहुंच बनाने में विश्वास रखते हैं। यही वजह है कि उन्हें जिन इलाकों का कार्य सौंपा जाता है वहां भाजपा का संगठन काफी मजबूत हो जाता है।

बिहार में जमीन पर उतरे ओझा

बिहार में भाजपा का सह प्रभारी की जिम्मेदारी संभालने के तुरंत बाद वह जमीन पर काम करने उतर गए हैं। कहा जा रहा है कि ओझा ने चुनावी जंग में मैदान संभालने वाली बूथ कमेटियों की जांच करने मंडल स्तर पर जाना शुरू कर दिया कि बूथ कमिटी मजबूत हैं या कमजोर हैं। शनिवार को सुनील ओझा पटना शहर में कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र के मुन्नाचक मंडल में बूथ संख्या-84 और बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र के गोलघर मंडल के बूथ संख्या-63 पर पार्टी द्वारा चल रहे वाल राइटिंग अभियान कार्यक्रम में पहुंचे। इस दौरान वे वाल राइटिंग करते भी दिखे।

21 साल पहले की तस्वीर, जब मोदी ने लड़ा था पहला चुनाव : तस्वीर में नरेंद्र मोदी, अमित शाह, भीखू भाई दलसानिया और सुनील ओझा

कौन हैं सुनील ओझा?

सुनील ओझा को प्रधानमंत्री मोदी का बेहद करीबी भी कहा जाता है। गुजरात में भाजपा के दो बार विधायक रहे सुनील ओझा तब यूपी भेजे गए थे जब नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था। सुनील ओझा को यूपी में भाजपा के तत्कालीन प्रभारी अमित शाह के साथ सह प्रभारी बनाकर वाराणसी में चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालने के लिए भेजा गया। ओझा को तब मोदी का ‘बनारस मैनेजर’ कहा जाता है। उन्हें अमित शाह का भी विश्वस्त माना जाता है। उन्हें मोदी का हनुमान भी कहा जाता है।
पीएम मोदी ने अपने जीवन का जब पहला चुनाव गुजरात के मुख्यमंत्री का काम संभालने के बाद फरवरी, 2002 में पहली बार चुनावी राजनीति में उतरे थे तो राजकोट में उनके चुनाव के प्रभारी सुनील ओझा ही थे। कहा जाता है कि इस चुनाव में ओझा के बेहतर और सफल प्रबंधन से मोदी काफी प्रभावित हुए। कहते हैं कि ओझा का मोदी के साथ संपर्क इससे भी पुराना है। मोदी जब पार्टी में संगठन महामंत्री थे, तब से ओझा का उनसे परिचय है। सुनील ओझा बिहार के प्रभारी भीखू भाई दलसानिया के साथ भी पार्टी संगठन काम कर चुके हैं। नीचे 21 साल पुरानी फोटो में भीखू दालसानिया भी मौजूद हैं। सुनील ओझा को बिहार का सह प्रभारी बनाए जाने का एक कारण यह भी हो सकता है कि बेहतर समन्वय रहे। अब दोनों गुजराती नेताओं को बिहार में कमल खिलाने की जिम्मेदारी दी गई है। सालों से प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में रहकर काशी क्षेत्र को संभालने वाले सुनील ओझा ने ‘मैं बिहार हूं’ से जुड़ी एक कविता ट्विटर पर पोस्ट करके मिशन की चुनौती को स्वीकार भी कर लिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सुनील ओझा

About Post Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x