घर से निकलते ही…, रेल अधिकारी दिलीप कुमार का कॉलम ‘अप्प दीपो भव’

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अप्प दीपो भव-9

-लेखक, कवि, मोटिवेशनल स्पीकर दिलीप कुमार भारतीय रेल सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं

हम में से अधिकांश लोग काम के लिए घर से बाहर निकलते हैं। सप्ताह में 5 या 6 दिन हम काम पर जाते हैं। लघु व्यवसाय में लगे लोगों को तो सातों दिन काम के लिए निकलना पड़ता है। काम पर निकलने से पहले कई बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है। सबसे जरूरी है अपने टूलकिट को सही रखना। यदि कोई बढ़ई का काम करता है और अपने कार्यस्थल पर बिना जरूरी औजारों के पहुंच जाता है तो फिर वह अपने कार्यस्थल पर समय से भी पहुंचे तो उसका पहुंचना बेकार हो जाता है। अपने टूलकिट के बिना वह कोई भी कार्य संपादित कर ही नहीं सकता। कार्यस्थल अथवा कार्यालय के लिए हम सबके अपने-अपने टूलकिट होते हैं। किसी को अपने लैपटॉप के साथ कार्यालय पहुंचना होता है तो किसी के लिए डिजिटल सिग्नेचर जरूरी होता है। हम सबके लिए यह जरूरी है कि हम एक ऐसा बैग तैयार रखें जिसमें कार्यालय से संबंधित महत्वपूर्ण कागजात, कलम, कैलकुलेटर, लैपटॉप और डिजिटल सिग्नेचर आदि रखा हुआ हो। कुछ जरूरी पासवर्ड जो हम कंठस्थ नहीं रखते, उसे एक डायरी में या मोबाइल की मेमोरी में लिखकर अपने साथ रखना जरूरी होता है। मोबाइल आजकल एक महत्वपूर्ण टूलकिट बन गया है। काम पर निकलने से पहले मोबाइल पूरी तरह से चार्ज है, इसे सुनिश्चित कर लेना चाहिए। यदि आप मोबाइल पर ज्यादा देर तक काम करते हैं तो अपने ऑफिस बैग में बैटरी बैकअप रखना भी एक अच्छा विकल्प है। अपने टूलकिट में हम जो भी सामान रखें, वह अद्यतन स्थिति में हो, इसे भी अवश्य ही सुनिश्चित कर लेना चाहिए। प्रबंधन संस्थानों में इस विषय में एक कहानी प्रायः हर कोर्स में पढ़ाई जाती है। एक लकड़हारा था। अपनी आजीविका के लिए जंगल में सूखी लकड़ियां काटता और उसे बगल के कस्बाई बाजार में जाकर बेच देता। इससे उसकी आजीविका मजे में चल रही थी, लेकिन कुछ दिनों बाद उसे महसूस हुआ कि एक गट्ठर सूखी लकड़ियां इकट्ठा करने में उसे ज्यादा समय लग रहा है। क्योंकि वह मेहनती था तो उसने उसपर ध्यान नहीं दिया। पर समस्या धीरे-धीरे गंभीर होती चली गई। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए वह अपने मित्र के पास गया। जंगल में लकड़ियों की मात्रा और उसके काम करने के तरीके में कोई विशेष समस्या ना पाने पर उसके मित्र ने पूछा कि अपनी कुल्हाड़ी उसने पिछली बार कब पैनी की थी? लकड़हारा उसका कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया क्योंकि पिछले कई महीनों से उसने अपनी कुल्हाड़ी पैनी की ही नहीं थी। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। जाहिर है कि काम पर जाते समय कुल्हाड़ी अपने पास रख लेना काफी नहीं। कुल्हाड़ी की धार का पैनापन देखना भी जरूरी है।
कार्यालय/कार्यस्थल के लिए निकलते समय अपने आप को तरोताजा और संकल्पित रखना जरूरी होता है। घर की बातों को घर में ही छोड़कर नई मनः स्थिति के साथ कार्यस्थल पर जाना बहुत ही अच्छी आदत है। जिन कार्यों में विशेष कौशल की आवश्यकता होती है, उसे करने वाले लोगों के लिए तो तनावरहित मनःस्थिति अत्यंत आवश्यक है। कोई भी सर्जन तनाव के साथ सर्जरी अच्छे तरीके से नहीं कर सकता। यही बात हवाई जहाज और रेलवे के पायलटों पर भी लागू होती है। उन्हें पूरी एकाग्रता के साथ अपना काम करना होता है। काम के दौरान ऐसे लोगों की एकाग्रता भंग होने पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं। दुर्घटनाओं में जान-माल का भारी नुकसान संभावित होता है। भारतीय रेल में कई बार लोको पायलटों के साथ-साथ उनके परिवार के सदस्यों की भी काउंसलिंग की जाती है। घर का माहौल जब अच्छा रहता है, तो व्यक्ति अपने कार्यस्थल पर भी अच्छा प्रदर्शन करता है। हम सभी चाहते हैं कि अपने अधिकारिक कार्य अच्छी तरह से संपन्न करें और हमें अच्छे कार्य के लिए प्रशंसा प्राप्त हो। ऐसी प्रशंसा हमें तभी मिलती है जब हम अच्छी तैयारी करते हैं और अपना काम सलीके से करते हैं।

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