स्वास्थ्य

‘आयुष’ की चुनौतियों को दूर करने के लिए सराहनीय प्रयास

  • डॉ. बिपिन कुमार (लेखक वरिष्ठ स्तम्भकार हैं)

आयुर्वेद शब्द का जन्म ‘आयु’ और ‘वेद’ से हुआ है। आयु का तात्पर्य ‘जीवन’ है, तो वेद का अर्थ ‘विज्ञान’ है। इस प्रकार आयुर्वेद का संपूर्ण अर्थ ‘जीवन का विज्ञान’ है।

दुनिया को आयुर्वेद, भारत की देन है और यहाँ इस पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली का चलन 3,000 वर्षों से है। वस्तुतः यह न केवल एक चिकित्सा पद्धति है, बल्कि पूर्ण सकारात्मक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक प्राप्ति के लिए एक जीवन धारा भी है।

हमारे यहाँ आयुर्वेद का चलन भले ही प्राचीन काल से होता रहा हो, लेकिन उनके परीक्षण और गुणवत्ता को लेकर कभी कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया। लेकिन, 2014 में नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पदभार संभालने के बाद, वैकल्पिक औषधियों को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किये और इसी कड़ी में उन्होंने आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, और होम्योपैथी के संयोग से ‘आयुष मंत्रालय’ का गठन किया।

बाद में, आयुर्वेदिक दवाओं की आसान उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए ‘जन औषधि केन्द्रों’ की स्थापना भी की गई। वहीं, कोरोना महामारी के दौरान आयुष की विश्वनीयता ने एक नई ऊँचाई को हासिल किया। यह वास्तव में पीएम मोदी के अथक प्रयासों का ही नतीजा है कि आज आयुष का बाजार करीब 19 खरब रुपये है।

केन्द्र सरकार ने आयुष के प्रसार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान, पंचकर्म भवन, योग्या प्रयोगशाला व औषध अनुसंधान इकाई जैसे संस्थानों को शुरू किया है। इस कड़ी में, सरकार आज देशभर के किसानों को अपनी खेती का विस्तार और आमदनी बढ़ाने के लिए औषधीय पादपों को उगाने के प्रेरित कर रही है और वैकल्पिक दवाओं के बजट को भी दोगुना कर दिया गया। इस अभियान में, आहार क्रांति मिशन, एनसीसीआर पोर्टल और आयुष संजीवनी ऐप जैसे प्रयास भी उल्लेखनीय हैं। इस प्रयासों के लिए आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल और आयुष के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा भी बधाई के पात्र हैं।

हालांकि, आयुर्वेद को लेकर उपजे कुछ विवादों से स्पष्ट हो गया कि अब सरकार को सुरक्षा की गारंटी और दवा के कारगर होने के दावे जैसे पहलुओं पर कार्य करने की जरूरत है। लेकिन, हमें इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि आयुर्वेदिक औषधियों के कार्य करने और बीमारियों को ठीक करने की गति अपेक्षाकृत धीमी होती है, लेकिन इसका दृष्टिकोण इतना समग्र और व्यापक है कि आज यह किसी भी बीमारी को नियंत्रित करने में सक्षम है। इसलिए हमें इस दिशा में धैर्य के साथ आगे बढ़ना होगा।

पारंपरिक औषधियों की गुणवत्ता नियंत्रण को लेकर हाल ही में एक बेहद महत्वपूर्ण आयोजन हुआ। दरअसल, डब्ल्यूएचओ दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के सहयोग से आयुष मंत्रालय के भारतीय चिकित्सा और होम्योपैथी फार्माकोपिया आयोग ने आयुष प्रयोगशालाओं क्षमता को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।

यह अपनी तरह का अनूठा प्रशिक्षण कार्यक्रम था, जिसमें भूटान, इंडोनेशिया, भारत, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल, मालदीव, पूर्वी तिमोर और बांग्लादेश जैसे 9 देशों के 23 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम का उद्देश्य आयुष उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए प्रयोगशाला आधारित तकनीकों और विधियों के लिए कौशल प्रदान करना था।

वस्तुतः आज आयुष के तीव्र गति से बढ़ते बाजार के कारण उचित गुणवत्ता और प्रभावशीलता को बनाए रखने की चुनौती बढ़ रही है और इस समस्या को प्रयोगशालाओं के एक मजबूत नेटवर्क के लिए आसानी से दूर किया जा सकता है। इस प्रकार के व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम हमारी उस लड़ाई को मजबूत करेंगे।

एक उपयुक्त नियमन व्यवस्था से हम न सिर्फ मरीजों के भरोसे को कायम कर सकेंगे, बल्कि आयुष को उपचार की एक पूर्णतः सुरक्षित और कारगर व्यवस्था के रूप में वैश्विक स्वीकृति भी दिला सकेंगे। यह वास्तव में एक ऐसी व्यवस्था होगी, जिसपर भारत गर्व से विश्वगुरु होने का दावा कर सकता है।

Dr Rishikesh

Editor - Bharat Varta (National Monthly Magazine & Web Media Network)

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