3 साल में चली गई थी आंखों की रोशनी, 16 साल में बना दी नेत्रहीनों के लिए भाषा

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ब्रेल लिपि के जनक और नेत्रहीनों के के भगवान लुई ब्रेल की जयंती पर


पटना डेस्क: हर साल 04 जनवरी को विश्व ब्रेल दिवस के मौके पर लुई ब्रेल की जयंती मनाई जाती है। लुई ब्रेल नेत्रहीनों के लिए भगवान माने जाते हैं. 3 साल में उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी मगर मात्र 16 साल में उन्होंने नेत्रहीनों के लिए भाषा बना दी जिसे ब्रेल लिपि कहते हैं. इसका प्रयोग दुनिया भर के नेत्रहीन पढ़ने और लिखने में करते हैं.

सेना के अधिकारी से प्रेरित हुए
लुई ब्रेल का जन्म 04 जनवरी, 1809 को फ्रांस में हुआ था.
मात्र 3 साल की उम्र में एक दुर्घटना में उनके आंखों की रोशनी चली गई थी . लेकिन वह इतने प्रतिभाशाली थे कि एक छात्रवृत्ति पर रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड यूथ चले गए. पढ़ाई के दौरान उन्होंने एक ऐसा स्पर्श कोड विकसित कर दिया जो नेत्रहीनों के पढ़ने और लिखने में सहयोग कर सके.
यह बाद में ब्रेल लिपि के नाम से जाना गया.

स्कूल के दिनों में लुई ब्रेल की सेना के कैप्टन चार्ल्स बार्बियर से प्रेरित हुए थे. कैप्टन ने सेना के लिए एक विशेष क्रिप्टोग्राफी लिपि का विकास किया था, जिसकी मदद से सैनिक रात के अंधेरे में भी संदेशों को पढ़ सकते हैं.बाद में, ब्रेल ने कैप्टन बार्बियर की सैन्य क्रिप्टोग्राफी से प्रेरित होकर ब्रेल लिपि लिपि का निर्माण किया. 18 23 ईस्वी में उन्होंने ब्रेल लिपि को सार्वजनिक किया. उसके बाद वे कॉलेज में प्राध्यापक बने .
वे लगातार ब्रेल लिपि को नेत्रहीनों के लिए उपयोगी बनाने की दिशा में काम करते रहे.
43 वर्ष की आयु में 06 जनवरी 1832 को लुई ब्रेल का निधन हो गया। उनकें निधन के 16 साल के बाद वर्ष 1868 में ब्रेल लिपि को विश्व में प्रामाणिक रूप से मान्यता मिली. उसके बाद हुए नेत्रहीनों के मसीहा के रूप में पूजित हुए .भारत सरकार ने 04 जनवरी 2009 लुई ब्रेल के सम्मान में डाक टिकट जारी किया ..

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