रांची- दिशोम गुरु शिबू सोरेन के संघर्षपूर्ण जीवन पर होगा शोध
NEWSNLIVE DESK: दिशोम गुरु शिबू सोरेन के संघर्ष से भरपूर सार्वजनिक जिंदगी पर व्यापक शोध होगा। इसमें उनके द्वारा आदिवासी समाज में सुधार से लेकर महाजनों के खिलाफ आंदोलन और टुंडी आश्रम में उनका लंबा प्रवास भी शोध का हिस्सा होगा। इस क्रम में उनके आंदोलन के दौर के पुराने साथी बिनोद बिहारी महतो, डा. एके राय का योगदान भी शुमार होगा।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के इतिहास पर भी विभिन्न विश्वविद्यालयों के इच्छुक छात्र-छात्राएं शोध कर सकेंगे। डा. रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान ने इस संबंध में देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों से प्रस्ताव मांगे हैं। शोध का अहम हिस्सा 1960 से 1980 के बीच सोनेत संताल समाज और टुंडी आश्रम आंदोलन होगा। इसके जरिए जमींदारी और महाजनी प्रथा का व्यापक विरोध हुआ था।
शिबू सोरेन इस आंदोलन के केंद्र बिंदु थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा पर इस आंदोलन का काफी असर था। इन आंदोलनों को संगठन ने सामाजिक सहयोग से काफी आगे बढ़ाया। जनजातीय समाज के बीच सुधारात्मक आंदोलन में 60 के दशक में बोकारो में गठित आदिवासी सुधार समिति का भी बड़ा योगदान था। इसके सूत्रधार शिबू सोरेन थे। उन्होंने समाज सुधार के लिए 19 सूत्री कार्यक्रम चलाया, जिसका मूल उद्देश्य गांवों का चौतरफा विकास था।
सुधार कार्यक्रम जो चलाए गए उनका विवरण
अकिल अखड़ा के जरिए युवा और प्रौढ़ के लिए शिक्षा, गांवों में पुस्तकालय, वाचनलाय, क्लब की स्थापना करना।सहकारिता के तहत कृषि और पशुपालन।पौधा संरक्षण केंद्र के जरिए वनों के क्षरण से बचाव। महिलाओं के लिए लघु उद्योग और औद्योगिक प्रशिक्षण इकाई। गांव न्यायालय की स्थापना, जहां आपसी विवाद सुलझाया जाए।अनाज बैंक, खासकर धान का तैयार करना और उत्पादित अनाज का बराबर हिस्सा सभी ग्रामीणों में वितरित करना। इसके अलावा इसी निधि से स्कूलों का संचालन, मजदूरी का भुगतान, मेहमानों की मेजबानी करने समेत राजनीतिक गतिविधियों में योगदान करना।
शोध का उद्देश्य क्या है
सोनेत संताल समाज और टुंडी आश्रम आंदोलन का दस्तावेज तैयार करना ताकि यह जानकारी मिल सके कि इसकी पीछे की तात्कालिक परिस्थिति क्या थी।
महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन का दस्तावेज, इसमें जमींदारी प्रथा और सामाजिक असमानता का कितना असर।संताल समाज को सशक्त करने में आंदोलनों की कितनी भूमिका।आदिवासी स्वशासन पद्धति और सामाजिक पद्धति का अध्ययन संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 के लागू होने के बाद। सामाजिक बुराईयों और हानिकारक प्रथाओं, संतालों के पारंपरिक रिवाज, ओल लिपी और शिक्षा के लिए पारित किए गए प्रस्ताव। टुंडी आश्रम आंदोलन में शिबू सोरेन समेत स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो और स्वर्गीय एके राय की भूमिका।
शिबू सोरेन झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनके पुत्र हेमंत सोरेन अभी वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री है। संथालों ने उन्हें दिशोम गुरु यानी दसों दिशाओं का गुरु नाम दिया है। तभी से शिबू सोरेन गुरुजी के नाम से पहचाने जाने लगे। उनकी पत्नी का रूपी सोरेन है। उन्होंने अपनी पार्टी झामुमो का गठन 4 फरवरी 1973 को किया था। शिबू सोरेन ने 1977 में पहली बार सांसद का चुनाव लड़ा।लेकिन वे यह चुनाव हार गए। इसके बाद वे 1980 में दुमका सीट से लोकसभा का चुनाव लड़े और सांसद बने। वे पहली बार 2005 में झारखंड के मुख्यमंत्री बने। उसके बाद 2008 और 2009 में पुन: मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुए।