‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) से ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य गारण्टी’ की ओर …
के.एन. गोविंदाचार्य
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं। वे भाजप के सिद्धांतकार और आरएसएस के प्रचारक रह चुके हैं।)
‘जय जवान, जय किसान’ का नारा देने वाले भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री की देन है – किसानों की कृषि उपज का ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ ! उस महान नेता को शत शत नमन !!
स्वतंत्रता के पश्चात भी किसानों की दयनीय दशा नहीं सुधर रही थी। किसानों को उनकी कृषि उपज का सही दाम नहीं मिल पा रहे थे। सरकारी -गैर सरकारी सर्वेक्षणों के अनुसार देश के अधिकांश हिस्सों में किसानों को उनकी लागत से भी कम दाम पर अपनी उपज बेचनी पड़ रही थी। इसी से द्रवित होकर शास्त्रीजी ने इस पर विचार करने के लिए एक समिति गठित की थी। उस समिति ने किसानों की उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) घोषित करने की सिफारिश की थी। उसके अनुसार ‘कृषि मूल्य आयोग’ का गठन हुआ और 1966-67 में पहली बार धान और गेहूँ के न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित हुए थे। 1985 में उस आयोग का नाम बदल कर ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ (CACP) कर दिया गया। आजकल यही आयोग हर वर्ष 23 कृषि उपजों की लागत का आकलन करके केंद्र सरकार के सम्मुख न्यूनतम समर्थन मूल्य का प्रस्ताव रखता है। उसके आधार पर केंद्र सरकार 23 कृषि उपजों के ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ घोषित करती है।
शास्त्रीजी द्वारा गठित उसी समिति की सिफारिश पर देश में 1965 में ‘भारतीय खाद्य निगम’ का गठन हुआ। राज्य सरकारों द्वारा स्थापित कृषि उपज बाजार समिति (APMC ) की मंडियों के माध्यम से धान और गेहूँ की खरीद होती है, जिसे भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में संग्रहित किया जाता है। इन गोदामों में संग्रहित खाद्यान्न का उपयोग सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली में करती है।
केंद्र सरकार हर वर्ष 23 कृषि उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य अवश्य घोषित करती है, पर प्रमुख रूप से केवल धान और गेहूँ ही खरीदती है। धान और गेहूँ की सरकारी खरीद की व्यवस्था भी केवल 4-5 राज्यों में है, अन्य राज्यों में व्यवस्था ही नहीं बनी। इसलिए देश के केवल 6% किसान ही सरकारी योजना का लाभ ले पाते हैं। अर्थात देश के 94% किसानों को धान और गेहूँ के भी न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने की व्यवस्था नहीं है। इसके अलावा अन्य उपजों के लिए व्यवस्था न होने से उन उपजों में किसानों को भारी घाटा होता है।इस अव्यवस्था के कारण कृषि अर्थशास्त्रियों के अनुसार किसानों को सन 2000 से 2016 के बीच में 45 लाख करोड़ रुपये का घाटा हुआ। अर्थात प्रति वर्ष 3 लाख करोड़ रुपये किसानों को नुकसान हुआ। 2016 के बाद और बढ़ा ही होगा। इन सब कारणों से आज देश में किसानी घाटे का सौदा हो गया है।
उपरोक्त विषम परिस्थितियों में से किसानों को कैसे बाहर निकाला जाए ? इस पर अनेक विचारकों ने सुझाव दिया है- अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर खरीदने को अपराध बनाने वाला कानून बन जाए, तो किसानों का शोषण रुक सकता है। 2011 में वर्तमान माननीय प्रधानमंत्री जी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के नाते एक समिति के अध्यक्ष के रूप में ऐसे कानून की संस्तुति की थी। ऐसे कानून से किसानों को कम से कम उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने लग जायेगा। ऐसे कानून से सरकारी मंडी हो या न हो, किसान पंजाब का हो या बिहार का, कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि अब कानूनी रूप से निजी व्यापारी भी न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर नहीं खरीद पायेगा। ऐसे कानून का पूरे देश के सभी किसानों को लाभ होगा।
अभी जिन अनेक मांगों के लिए किसान सड़कों पर उतरे हैं, उनमें प्रमुख मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारण्टी कानून है। किसानों और देश की अर्थव्यवस्था के हित में केंद्र सरकार शीघ्र ऐसा कानून बनाएगी, ऐसी मुझे आशा है।