कैसा कोरोना? सियासी गलियारों में कोरोना के कहर के बावजूद चुनावी रैली में भीड़

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NewsNLive की विशेष रिपोर्ट:

क्या सोशल मीडिया में वायरल इस तस्वीर को देखकर लगता है कि कहीं कोरोना का खौफ है? आखिर जब चुनाव आयोग को ऐसी तस्वीरों को देखकर यह नहीं लगता है कि कोरोना से डरने की जरूरत है तो फिर कोरोना के नाम पर सरकारी खर्चों का बोझ क्यों? कोरोना के नाम पर गाइडलाइंस का क्या मतलब? ये सिर्फ एक दिन की तस्वीर नहीं है बल्कि हर दिन ऐसी ही तस्वीरे सामने आती है? पता नहीं नेताओं एवं मुलाज़िमों की फौज को ये तस्वीरें दिखती भी है कि नही?

जब दुनिया के बड़े-बड़े देश कोरोना वायरस को फैलने से रोकने में अपनी सारी ताकत झोंक रहे हैं, भारत के बिहार में नजारा कुछ और ही है। बेहद पिछड़े हुए इस प्रदेश में कोरोना संकट को लेकर गंभीरता किस तरह से नदारद है, यह यहां हो रही चुनावी रैलियों व कार्यक्रमों में देखने को मिल रहा।

सियासी गलियारे में कोरोना का कहर

बिहार में कोरोना के तेज रफ्तार से जहां हर रोज आम लोग संक्रमित हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कहर तेजी से सियासी गलियारों में पांव फैलाने लगा है। सियासी दलों के नेता भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। एक सप्ताह के अंदर बिहार के 2 मंत्रियों का निधन हो गया। दोनों कोरोना संक्रमित हो चुके थे। कोरोना से बिहार सरकार के पंचायती राज मंत्री कपिल देव कामत का निधन हो गया। 12 अक्टूबर को बिहार सरकार के मंत्री विनोद सिंह का निधन हो गया था। वे 28 जून को कोरोना संक्रमित पाए गए थे। कोरोना से ठीक होने के बाद उनका ब्रेन हैमरेज हो गया था। स्वास्थ्य क्षेत्र के शोधकर्ताओं का ऐसा मानना है कि कोरोना से संक्रमित होने के बाद संक्रमित व्यक्ति का कोई एक अंग प्रभावित हो जाता है। इससे पूर्व भी बिहार में कुछ बड़े नेता, एमएलए व एमएलसी का आसमयिक निधन कोरोना के चपेट में आने से हो चुका है।

मीडियाकर्मी भी खतरे में

चुनाव के कारण मीडियाकर्मियों को भी भीड़ वाली जगहों पर जाना पड़ रहा है। उनपर भी खतरा बढ़ गया है। एक सप्ताह के अंदर पटना के 2 पत्रकारों का निधन हो गया है। दोनों कोरोना से संक्रमित हो चुके थे।

कोरोना के संक्रमण में बिहार देश में 11वें नबर पर है। हर दिन 1200-1500 नए मामले आ रहे हैं फिर भी बिहार को चुनाव में झोंक दिया गया है।

चुनाव के बीच लोग कोरोना को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। चुनावी रैलीयों में सोशल डिस्टेंसिंग व कोरोना सुरक्षा प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ा रहे हैं। कोरोना का कहर जारी है, लेकिन नेताओं को सत्ता प्यारी है। विधानसभा चुनाव को लेकर जिस तरह चारो तरफ भीड़-भाड़ बढ़ी है, उससे कोरोना का खतरा और बढ़ेगा। लेकिन चुनाव आयोग से लेकर सरकार और राजनीतिक दलों ने जिस तरह इसकी अनदेखी की है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है।

कोरोना काल में चुनाव संक्रमण का बड़ा खतरा लेकर आया है। खतरा ऐसे लोगों से अधिक है, जो चुनाव में सीधे आम लोगों के संपर्क में आएंगे। नेता ही नहीं, सुरक्षाकर्मियों से भी चुनाव में कोरोना संक्रमण का खतरा है। सुरक्षाकर्मी खुद भी आशंकित व चिंतित हैं क्योंकि चुनाव कराने के लिए उन्हें अलग अलग जगहों पर जाना होगा। ऐसे में उन्हें खुद भी ड्यूटी के दौरान व कैम्पों में संक्रमित होने का खतरा बना रहेगा।

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान जोड़ पकड़ने के साथ ही आभासी (वर्चुअल) और असली (एक्चुअल) अभियान का अंतर खत्म होने लगा है। सभी राजनीतिक दलों ने कोरोना को लेकर चुनाव आयोग की तरफ से जारी दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ानी शुरू कर दी हैं। रैली में हिस्सा लेने वाले न केवल सोशल डिस्टेंसिंग भुलाकर झुंड बनाकर वहां मौजूद रह रहे बल्कि उनमें से कोई मास्क भी नहीं पहन रहा। वास्तविक रैलियों के आयोजन के लिए चुनाव आयोग की तरफ से जारी दिशा-निर्देशों के मुताबिक लोगों के बीच कम से कम दो मीटर की दूरी और उन सभी का मास्क पहनना अनिवार्य है। नॉमिनेशन, चुनाव प्रचार के दौरान भी नियम टूट रहे। नेता दलील दे रहे हैं कि ‘समर्थकों व कार्यकर्ताओं से न आने के लिए कहना संभव नहीं है।’ सिवान जिले के सत्ताधारी पार्टी के विधायक श्याम बहादुर ने तो यहां तक कह दिया कि वे खुद ही ‘कोरोना’ हैं, उन्हें कोरोना नहीं हो सकता। बता दें कि ये वही विधायक श्याम बहादुर हैं जो अक्सर बार बालाओं के साथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में ठुमके लगाने के कारण चर्चा में बने रहते हैं।

बात थी ‘वर्चुअल’ की और शुरू हो गया ‘एक्चुअल’

चुनाव के औपचारिक ऐलान से पहले तक एनडीए के घटक दल कोरोना महामारी का हवाला देते हुए आभासी (वर्चुअल) रैलियों का समर्थन कर रहे थे। चुनाव आयोग के साथ सर्वदलीय बैठक के दौरान विपक्षी दलों ने जहां असल (एक्चुअल) रैलियों की मांग की थी, वहीं एनडीए के घटक दलों ने आभासी रैलियों और डोर-टू-डोर चुनाव प्रचार का समर्थन किया था। अब चुनाव आयोग ने गृह मंत्रालय के निर्देशों के आलोक में असल चुनावी रैलियों की अनुमति तो दे दी है लेकिन तमाम कड़ी पाबंदियों के साथ। सभी प्रमुख दलों ने अब इनका आयोजन करना शुरू कर दिया है। राजनीतिक दलों की रैलियों में चुनाव आयोग के निर्देशों व कोरोना सुरक्षा प्रोटकॉल का प्रशासन के समक्ष ही खुल्लेआम जमकर उल्लंघन हो रहा।

अभी तो ‘भीड़’ अंगड़ाई ली है, असल ‘सीन तो बाकी है

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी, राजद नेता तेजस्वी यादव सहित सभी दलों के प्रमुख नेताओं ने रैलियों के आयोजन के साथ अभियान शुरू कर दिया है। आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लगभग एक दर्जन संयुक्त रैलियां होने वाली हैं और इसमें बड़ी तादात में भीड़ जुटने की उम्मीद है। अन्य सभी दलों के स्टार प्रचारक एवं अभिनेता – अभिनेत्री भी अब उतरेंगे ही। चुनावी रैलियों व पार्टी कार्यालयों में आयोजित दल-बदल मिलन समारोह में बिना मास्क के एक बड़ी माला में दस से अधिक नेता को शामिल हो रहे। पप्पू यादव, उपेन्द्र कुशवाहा जैसे नेता तो अपने पार्टी के कार्यक्रमों में जमकर गलबहियां भी कर रहे। मुख्यमंत्री के सभाओं में मंच पर ही कुछ लोग बिना मास्क लगाए दिख रहे। प्रत्याशी व अधिकतर छोटे से लेकर बड़े नेता गांव-मोहल्लों में बिना मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग के जनसम्पर्क करते दिख रहे हैं। कोरोना को लेकर लापरवाही करने वाले यही नेता जनप्रतिनिधि बनकर बिहार की जनता को सुरक्षा देने का दावा कर रहे हैं, लेकिन कोरोना काल में संक्रमण का खतरा बढ़ा रहे हैं।

नेताओं एवं मुलाज़िमों की फौज की लापरवाही देख अब आम जनता भी कोरोना के लिए बेपरवाह हो गई है। रैलियों में शामिल लोग एक दूसरे के नजदीक साथ बैठ कर दूरी बना कर रखने का प्रयास कर रहे हैं। करोना भगाने का दूसरा प्रयास कंधे पर गमछा रख कर किया जा रहा है – चेहरे पर मास्क नहीं तो क्या कंधे पर गमछा तो है ही। यहां देख कर ऐसा लग रहा है कि करोना पहले ही डर कर भाग गया है।

फिर चुनावों की तारीख घोषित होने से चौपाल पर चर्चा व चाय-पानी के साथ प्रचार होना लाज़िमी है। लेकिन, यह चुनाव आमजन पर कोरोना महामारी के रूप में भारी पड़ सकता है। नेताजी अपने वोटरों के पास घर-घर जा रहे। एक बार नहीं दर्जनों बार एक-एक घर में दस्तक देते हैं। कोई एक भी संक्रमित हुआ तो अनगिनत लोगों तक वायरस पहुंच सकता है। गांव व छोटे नगरों के चौपाल पर तो चाय-पानी से ही चुनावों की चर्चा शुरू होती है। ऐसे में गांवों में चुनावों के समय कोरोना संक्रमण फैलने का सबसे अधिक खतरा हो गया है।

चुनाव आयोग सख़्त क्यों नहीं

इन सब के बीच यह सवाल उठना लाज़िमी है कि आखिर चुनाव आयोग और प्रशासन नियमों की धज्जियां उड़ाने वालों के साथ सख़्ती से पेश क्यों नहीं आ रही। अब तक चुनाव आयोग द्वारा निर्देशित नियमों का उल्लंघन करने वाले राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं किया जा रहा। यह चर्चा का विषय भी है कि अगर चुनाव आयोग सख़्ती से पेश आये तो अधिकतर राजनीतिक दल व प्रत्याशियों के खिलाफ कार्रवाई होना तय है। कहीं कहीं तो चुनाव कार्य में तैनात कर्मी ही नियमों का उल्लंघन करते दिख रहे। कई जगहों से ऐसी तस्वीरें आ रही है जहां प्रत्याशियों के नॉमिनेशन के दौरान पीठासीन पदाधिकारी ही बिना मास्क लगाए दिख रहे। यहां टूटता नियम भारी पड़ सकता है।

अपील : खुद से करें कोरोना से बचाव

कोरोना के समय में चुनाव को लेकर घमासान मचा है। नेता ऐसी मनमानी कर रहे हैं, जिससे संक्रमण का बड़ा खतरा है। अगर खुद बचकर नहीं रहा गया तो मुश्किल होगी। संक्रमण से बचाव को लेकर चुनाव आयोग व प्रशासन द्वारा विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा। राजनीतिक दल व प्रत्याशी तो सत्ता के प्यार में बेपरवाह हो गए हैं। आम आदमी के लिए चुनाव के दौरान कोरोना से बचाव बड़ी चुनौती है। अगर कोई भी नेता कोरोना सुरक्षा के नियमों का उल्लंघन कर प्रचार कर रहा हो तो उसे संदिग्ध मानकर चलें, क्योंकि अधिकतर राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों द्वारा भीड़ को व्यवस्थित करने एवं कोरोना सुरक्षा के नियमों का पालन को लेकर कोई काम नहीं किया जा रहा है।

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