साहित्य संसार

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, रेल अधिकारी दिलीप कुमार का कॉलम ‘अप्प दीपो भव’

अप्प दीपो भव-16

-दिलीप कुमार (कवि, लेखक, मोटिवेशनल स्पीकर और भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी)


कामयाबी पाने की चाहत हम सभी में होती हैं। लेकिन, सिर्फ चाहत रखने मात्र से कामयाबी नहीं मिल जाती। इसके लिए प्रयास करना होता है । यदि हम एक कुशल वक्ता बनना चाहते हैं तो फिर प्रभावी तरीके से बोलने की लगातार कोशिश करनी होती है। जो लोग पहाड़ के ऊंचे-ऊंचे शिखरों की यात्रा करना चाहते हैं, उन्हें कठिन और प्रतिकूल परिस्थितियों में चलते रहने का अभ्यास करना होता है।

हिंदी के प्रसिद्ध कवि हुए सोहनलाल द्विवेदी जी। युवाओं में जोश भरने के लिए उन्होंने कई कविताएं लिखीं। उन कविताओं में एक कविता बहुत ही प्रसिद्ध हुई। पूरे देश के लाखों सफल लोग इस कविता के मुरीद हैं। जीवन-संघर्ष के दौरान इस कविता से प्रेरणा लेते हैं। बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन अपनी संघर्ष यात्रा का बखान करते हुए कई बार इस कविता की पंक्तियां उद्धृत करते दिखे हैं। कविता की प्रारंभिक दो पंक्तियां हैं-
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती ।

नाविक यदि लहरों से डर जाए, यदि वह किनारे पर ही बैठा रहे, तो कभी भी नदी के उस पार नहीं जा पाएगा। कभी भी वह सागर की अतल गहराइयों की माप नहीं कर पाएगा। लहरों से डरने वाले लोग अंततः नाकामयाब होते हैं। इसके ठीक विपरीत लहरों की चुनौती को स्वीकार कर आगे बढ़ने वाले लोगों ने नए इतिहास रचे हैं। यूरोपीय नागरिक फ़र्दिनान्द मैगलन लहरों की चुनौती को स्वीकार कर जब आगे बढ़े तो यह साबित कर पाने में सफल हुए कि दुनिया चपटी नहीं बल्कि गोल है। पहले लोग भयभीत रहते थे यदि समुद्र में आगे बढ़ते चले गए तो एक ऐसा स्थान भी आएगा जहां से वह गिर जाएंगे और पता नहीं कहां चले जाएंगे। मैगलन की यात्रा से साबित हो गया कि यदि हम समुद्री यात्रा पर लगातार चलते रहे और बीच में कोई दूसरी बाधा नहीं आई तो हम उसी स्थान पर पुनः पहुंच जाएंगे, जहां से चले थे। मैगलन ने कोशिश की और उन्हें पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाने वाले पहले व्यक्ति होने का सम्मान मिला। सारी दुनिया के लिए उन्होंने ज्ञान का नया रास्ता खुला। यह उनकी बड़ी कामयाबी रही ।
कोशिश करके कामयाबी पाने वाले लोग चंद प्रारंभिक प्रयासों में विफलता मिलने पर भी हताश नहीं होते और सारे संसाधनों को जुटा कर पुनः प्रयास करते हैं। सोहनलाल द्विवेदी अपनी कविता में नन्हीं चींटी का उदाहरण देते हैं-
नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है ।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आखि़र उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती ।

जब नन्हीं चींटी कई विफलताओं के बावजूद भी प्रयास करना नहीं छोड़ती, तो फिर हम हताश क्यों हों? चुनौती जितनी बड़ी होती है, रास्ता जितना कठिन होता है। हमारी सफलता भी उतनी ही बड़ी होती है।
बड़ी सफलताओं के लिए बड़ी कोशिशें तो करनी ही होती हैं। कई बार प्रयास करने के बाद हमें जब सफलता मिलती है, तब हमें इस बात का एहसास हो जाता है कि सफलता के लिए की गई कड़ी मेहनत बेकार नहीं गई है।

गहरे समुद्र में जाकर मोती की खोज करने वाले लोग लगातार प्रयास करते हैं। इन प्रयासों में उन्हें कई बार सफलता मिलती है तो कई बार खाली हाथ आना पड़ता है। इस कविता की कुछ और पंक्तियों को देखें-
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है ।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में ।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती ।

लगातार प्रयास करने पर जब गोताखोर की मुट्ठी खाली नहीं जाती तो फिर हम निराश क्यों हों? यह संभावित है कि कुछ प्रारंभिक प्रयासों में हमें उस प्रकार की सफलता हासिल नहीं हुई हो जिसकी प्रत्याशा हमने की थी। बावजूद इसके हिम्मत नहीं हारना है। हमें प्रयास करते जाना है। असफलताओं के कारणों का विश्लेषण जरूरी है। हर विफलता पर आत्ममंथन जरूर करें। फिर असफलता को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए कोशिश करनी है। कवि सोहन लाल द्विवेदी कहते हैं-
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद-चैन को त्यागो तुम,
संघर्षों का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

हमारा साहित्य इस प्रकार की अनेक प्रेरणादायी कविताओं से भरा पड़ा है। इन कविताओं की एक-एक पंक्ति में जीवन का सार छुपा हुआ है। अपने को मजबूत बनाए रखने के लिए इस प्रकार की कविताओं को बार-बार पढ़ना चाहिए। हौसला को बनाए रखकर ही हम अपनी जीत का विशाल महल तैयार कर सकते हैं।

Ravindra Nath Tiwari

तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय। 17 साल हिंदुस्तान अखबार के साथ पत्रकारिता के बाद अब 'भारत वार्ता' में प्रधान संपादक।

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