
अप्प दीपो भव-2
– दिलीप कुमार
(कवि, मोटिवेशनल स्पीकर तथा भारतीय रेल के वरिष्ठ अधिकारी)
सुबह सूरज के उगने से पहले प्रकृति चैतन्य हो जाती है। पक्षियों का कलरव गान वातावरण को गुंजित कर देता है। इस समय मंद गति से चलने वाली हवा अमृततुल्य लगती है और शरीर के विकास के लिए संजीवनी बूटी जैसा काम करती है। नींद से जागने का यही सबसे सही समय होता है।
चाहे कोई भी मौसम हो, मेरी मां सूर्योदय के ठीक पहले की इसी बेला में जागती थी और बिस्तर छोड़ने से पहले बड़े ही प्यार से यह भजन गाती थी-
उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है
जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है वो खोवत है
वस्तुतः माँ इस भजन को गाकर ही हम भाई-बहनों को जगाना चाहती और हम रजाई में दुबके सोने का नाटक करते रहते। लेकिन मां तो मां होती है। प्रथम प्रयास में हम यदि नहीं जागते तो चंद मिनटों के बाद पुनः प्रयास करती और फिर अपने प्रयास में सफल होती।
भारतीय मनीषी परंपरा में वर्णित दिन के आठ पहरों में दूसरे पहर यानी सुबह तीन से छः बजे के समय को जागने के लिए सबसे बेहतर समय माना गया है। इस पहर में जागने से व्यक्ति की सकरात्मक सोच और आत्मबल में वृद्धि होती है।
ब्रह्म मुहूर्त में जागने वाले लोगों के पास दिन की सही शुरुआत करने का अपेक्षाकृत अधिक समय होता है और जीवन की दौड़ में वह दूसरों की तुलना में थोड़ा आगे रहते हैं। पठन-पाठन और ध्यान-योग के लिए भी यह सर्वोत्तम समय होता है। सुबह की नई ऊर्जा से परिपूर्ण और शांत वातावरण में हम पूरे दिन का बेहतर कार्यक्रम बना सकने में सक्षम होते हैं।
वैसे बृहद् अर्थों में जब जागो, तभी सवेरा की बात भी सही है। लेकिन यह बात उन लोगों के लिए है जो आलस्य के प्रमाद में होते हैं। देरी होने पर भी वह हताश ना हों, इसलिए उन्हें प्रेरित करते हुए इस लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है। लेकिन बुद्धिमान मनुष्य देर करें ही क्यों ? हम-आप सभी जानते हैं कि आलस्य ही शरीर का सबसे बड़ा शत्रु है। इसलिए आलस्य का त्याग कीजिए और सुबह सूरज के उगने से पहले जाग जाइए।
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