होलिका के साथ हुआ अत्याचार, अन्याय और अहंकार का दहन
भारत वार्ता डेस्क: बिहार और झारखंड समेत देश के कई राज्यों में आज होलिका दहन हो रहा है. बिहार और झारखंड के अलग-अलग इलाकों में होलिका दहन के अलग-अलग रिवाज है. आमतौर पर होलिका दहन से पहले गांव से लेकर शहर के प्रमुख चौक चौराहों पर एक जगह पेड़ की टहनियां, गोबर के उप्पलें, सुखी लकड़ियां, घास-फूस आदि इक्टठा किया जाता है. ऐसे करते हुए होलिका दहन के दिन तक उस जगह पर लकड़ी और उप्पलों का ढ़ेर लग जाता है. होलिका पूजन सामग्री तैयार करना होता है. जिसमें एक लोटा जल, चावल, गन्ध, पुष्प, माला, रोली, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, गेंहू की बालियां आदि शामिल होते हैं. भागलपुर और आसपास के इलाकों में मारवाड़ी समाज कि महिलाएं होलिका दहन के पाले उसकी पूजा करती हैं. होलिका दहन का काम आज शाम से शुरू हो गया है. किसके साथ होली की शुरुआत भी हो गई है. होलिका दहन को लोग छोटी होली भी कहते हैं.
होलिका दहन से जुड़ी है एक कथा
पौराणिक काल में एक अत्याचारी राजा था हिरण्यकश्यपु. उसने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना न करे, बल्कि उसे ही अपना आराध्य माने. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था. हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र को दंड देने के लिए उसे अपनी बहन होलिका की गोद में बैठा कर दोनों को आग के हवाले कर दिया हिरण्यकशिपु को या विश्वास था उसकी बहन बच जाएगी और उसका पुत्र प्रह्लाद जल जाएगा क्योंकि उसकी बहन होलिका को भगवान का वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती है. लेकिन यहां उल्टा हुआ. भगवान भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर मर गई. इसलिए होलिका दहन अत्याचार, अन्याय, अधर्म को भी भस्म करने का भी संदेश देता है .