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सुप्रीम कोर्ट बोला- पत्रकार होने का मतलब कानून को अपने हाथ में लेने का लाइसेंस नहीं


Bharat varta desk:

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पत्रकार या रिपोर्टर होने का मतलब ये नहीं है कि आपके पास कानून अपने हाथ में लेने का लाइसेंस है। सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी भोपाल के एक पत्रकार की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
दरअसल, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक पत्रकार को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। इसके खिलाफ उसने देश की सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

क्या है मामला

आरोपी पत्रकार एक नवजात बच्चे की अवैध बिक्री और खरीद से जुड़े रैकेट का पर्दाफाश करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन बाद में उस पर खबर दबाने के लिए रिश्वत मांगने का आरोप लगा। पत्रकार ने कहा- वो एक मान्यता प्राप्त संवाददाता है। उसने 26 जुलाई 2021 को एक राष्ट्रीय दैनिक में खबर छापा था जिसमें नवजात बच्चे की अवैध बिक्री से जुड़े एक रैकेट का पर्दाफाश किया गया था और जवाबी कार्रवाई के रूप में मामले में आरोपियों में से एक को गिरफ्तार किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले याचिकाकर्ता और अन्य पत्रकारों को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की थी। हालांकि, बुधवार को जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस एम एम सुंदरेश की खंडपीठ ने कहा- याचिकाकर्ता अब अंतरिम सुरक्षा का हकदार नहीं है। याचिकाकर्ता दूसरे मामलों में भी शामिल है। इसके अलावा, राज्य के वकील के अनुसार याचिकाकर्ताओं के खिलाफ जांच पूरी हो चुकी है। ऐसी स्थिति होने में क्या याचिकाकर्ता को हिरासत में लेने की आवश्यकता है, इस पर जांच अधिकारी को विचार करना है।“
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा- आरोपों के अनुसार, फिरौती 50 लाख रुपये की मांगी गई थी और भुगतान की गई रकम केवल 50,000 रुपए थी। ये शिकायतकर्ता की तरफ एफआईआर में दिया गया अविश्वसनीय बयान है।“
इस पर जस्टिस बोपन्ना ने कहा, “इन दिनों कुछ भी विश्वसनीय या अविश्वसनीय नहीं है।”
आपत्तिकर्ता ने हाईकोर्ट में पत्रकारों और अन्य आवेदकों की याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि वे पत्रकार के रूप में दायित्व नहीं निभा रहे थे बल्कि लोगों को ब्लैक मेल करने का रैकेट चला रहे थे।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था…..

“यह स्पष्ट है कि आवेदक के खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं, वे एक पत्रकार या एक समाचार पत्र के लिए मान्यता प्राप्त रिपोर्टर के रूप में आवेदक के कर्तव्यों के निर्वहन से संबंधित नहीं हैं। यदि किसी पेशे की आड़ में कोई परोक्ष कार्य किया जाता है तो उसे सुरक्षा नहीं दी जा सकती।”

Ravindra Nath Tiwari

तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय। 17 साल हिंदुस्तान अखबार के साथ पत्रकारिता के बाद अब 'भारत वार्ता' में प्रधान संपादक।

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