NewsNLive नवरात्र विशेष: बिहार के सारण में जिला मुख्यालय छपरा से 37 किमी पूरब और दिघवारा से 4 किमी पश्चिम आमी में स्थित मां अम्बिका भवानी का एक ऐसा धाम है जहां से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता है। अनादि काल से शक्ति उपासना की इस पुण्य भूमि में माता की शरण में आनेवाले चाहे दक्षिणमार्गी वैष्णवी शक्ति साधक हों या वाममार्गी कपालिनी के साधक अथवा सामान्य भक्त-श्रद्धालूगण, यहां सभी साधकों को सिद्धियां एवं श्रद्धालुओं की मुरादें पूरी पूरी होती हैं। यही कारण है कि चाहे शरद नवरात्र हो, बासंतिक नवरात्र हो या फिर चैत्र नवरात्र श्रद्धालुओं की भीड़ हर यहां अवसर पर देखी जा सकती है।
आमी भवानी के आविर्भाव के साथ दक्ष प्रजापति के यज्ञ की कथा जुड़ी हुई है जिसमें सती ने अपने पति भगवान शिव की अवमानना के कारण हवनकुंड में कूदकर आत्मदाह किया था। सती की मृत्यु के उपरांत शिव उनके शव को अपने कंधे पर ले तीनों लोक में उन्मत्त होकर विचरण करने लगे। श्रृष्टि के नियमों के रक्षार्थ भगवान विष्णु ने अपने चक्र सुदर्शन से सती के शव के 51 टुकड़े कर डाले। जिन स्थानों में देवी के शरीर के टुकड़े गिरे उनकी कालांतर में प्रसिद्धि 51 शक्तिपीठों के रूप में हुई।
ऐसी मान्यता है कि दक्ष प्रजापति का हवनकुंड आमी में ही स्थित था। ऐसे इस हवनकुंड को कनखल में स्थित होना बताया जाता है, किंतु विद्वानों का अभिमत है कि दक्ष प्रजापति ने विभिन्न युगों में यज्ञ किये थे और हर युग में सती का दाह हुआ था। उसी क्रम में एक बार आमी में भी यज्ञ हुआ था। आमी के निकट स्थित दिघवारा के बारे में स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इसका प्राचीन नाम ‘दीर्घ-द्वार’ अर्थात मुख्य द्वार था, जो कि दक्ष का यज्ञ स्थल था। लोगों की ऐसी आस्था है कि सती का शव यहां अभी भी विद्यमान है।
सारण जनपद का यह शक्तिपीठ जिला मुख्यालय छपरा एवं सोनपुर के मध्य में स्थित है। प्रचीन काल में सारण की मान्यता चम्पकारण्य एवं दंडकारण्य की तरह सारण्य के नाम से था जो अनादि शिव-शक्ति के विग्रह विभूतियों से संरक्षित है। आमी में अम्बिका भवानी के विग्रह के बाम भाग में लिंग रूप में सदाशिव विराजते हैं। सारण अर्थात प्राचीन सारण्य की अरण्यक संस्कृति की प्रसिद्धि शिव-शक्ति पीठ के रूप में भी है जिसके त्रिभूज समान दूरी पर काशी विश्वनाथ, बाबा वैद्यनाथ और पशुपतिनाथ (नेपाल) अवस्थित हैं। शिव-शक्ति से संरक्षित एवं समन्वित अम्बिका भवानी आमी स्थल वैष्णव शक्ति एवं अवधूत कपालिक साधकों की साधना भूमि रही है। प्रखंड मुख्यालय दिघवारा से 6 किमी पश्चिम स्थित भवानी मंदिर सारण गजेटियर के अनुसार दक्ष प्रजापति यज्ञ स्थल के रूप में मान्य है।
अध्येताओं के अनुसार बिहार की भूमि में शक्ति उपासना वैदिक काल से ही नहीं, अनादि और आदि काल से होती आ रही है। इस पावन भूमि में तीन शक्ति-स्थान मूर्धन्य हैं जिनका पौराणिक आधार है। ये स्थान हैं आमी की अम्बिका भवानी, गया की सर्वमंगला एवं झारखंड की छिन्न मस्तिका। यद्यपि विद्वतजनों में मार्कण्डेय पुराण में वर्णित सुरथ समाधि की तपोभूमि एवं दक्ष प्रजापति की यज्ञ भूमि को लेकर मतभेद है, किन्तु श्रद्धालु एवं साधकगण इन विवादों से ऊपर उठकर अभेद एवं अघोर बनकर यहां साधनारत रहते हैं। विशेषकर, शरद एवं चैत्र नवरात्र के अवसरों पर।
मार्कण्डेय पुराण में वर्णित सुरथ और समाधि कथाओं के आधार पर विद्वतगण यह स्वीकार करते हैं कि पूरे विश्व में मिट्टी की प्रतिमा यदि कहीं है तो वह आमी में। मेषध ऋषि का आश्रम भी गंगा, सोन व घाघरा के संगम चिरांद में प्रमाणित है। यह वहीं स्थल है जहां
राजा सुरथ और वैश्य समाधि को वैष्णवी शक्ति का साक्षाकार हुआ था। मंदिर में अंकित अम्बे, अम्बिके, अम्बालिके शब्द भी महालक्ष्मी के पर्याय हैं। यहां उत्खनन से प्राप्त शंख और उसपर अंकित चित्र आदि शक्ति वैष्णवी की अदृश्य उपस्थिति को दर्शाते हैं।
सारण गजेटियर में इसे दक्ष क्षेत्र एवं शिव शक्ति समन्वय स्थल माना गया है। जानकर इसे प्राचीन मातृ शक्ति रूप मानते हुए यहाँ मां की मिट्टी की प्रतिमा को प्रागैतिहासिक कालीन प्रतिमा के रूप में स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार ऐसी प्रतिमाओं के लिए प्राण प्रतिष्ठा आवश्यक नहीं है। शिव एवं शक्ति क्षेत्र प्रमाणित करते हुए पुरातत्ववेताओं का यह भी कहना है कि यहां गंगा शिव रूप में लिंगाकार है। गंडक व सोन का संगम रहा आमी लिंगाकार शिव एवं अंडाकार शक्ति रूप में है। नौ दुर्गा की नौ पिण्डियों के साथ यहां एकादश रूद्र स्थापित हैं। साधना और सिद्धि का सिद्धपीठ अम्बिका स्थल गंगा, सोन एवं नारायणी का संगम था। भौगोलिक परिवर्तन स्वरूप दोनों नदियों की धारा बदल गयी। ऐसा मानना है कि सुरथ समाधि एवं दक्ष प्रजापति स्थल आमी ही है। यदि दक्ष क्षेत्र कनखल (उतराखंड) प्रमाणिक है तो औधेश्वर भगवान रूद्र देव के 108 मतुण्डमाल प्रमाणित करते है कि त्रेता के पूर्व सतयुग में सती दहन यही हुआ था।
आमी भवानी की महिमा अपरम्पार है। नवरात्र के अवसर पर इनका दर्शन अति मंगलदायक व कल्याणकारी है।
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