शिक्षा मंच

गांधीवादी लेखिका की मांग, मानपुरा मध्य विद्यालय का नामकरण भुल्लर ठाकुर के नाम पर हो

Bharat Varta Desk : गांधीवादी लेखिका सुजाता चौधरी ने बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री से मांग की है कि मानपुरा मध्य विद्यालय का नामकरण स्वतंत्रता सेनानी भुल्लर ठाकुर के नाम पर हो। गांधीवादी लेखिका सुजाता चौधरी, सामाजिक कार्यकर्ता अमित कुमार एवं समस्त वृज्जिकामण्डल द्वारा बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री को प्रेषित पत्र में लिखा गया है कि वैशाली जिले के पटेढ़ी बेलसर प्रखंड के स्वंतत्रता सेनानी युगेश्वर ठाकुर उर्फ भुल्लर ठाकुर जी मानपुरा ग्राम के रहने वाले थे, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन आजादी की लड़ाई मे खपा दी थी लेकिन आज भी उनका नाम गुमनामी के अंधेरे मे छिपा हुआ है।
बज्जिकांचल के वैशाली जिले के महान स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी एवं समाजसेवी, जो विस्मृति के अंधकार में चले गए हैं, उनका नाम स्व. युगेश्वर प्रसाद ठाकुर उर्फ भुल्लर ठाकुर है। उनका जन्म वैशाली जिले के पटेढ़ी बेलसर प्रखंड के अंतर्गत मानपुरा ग्राम में दिनांक- 25 जून, 1900 ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम स्व. नन्हू ठाकुर था। इनके चार भाई और एक बहन थी।
स्व. भुल्लर ठाकुर की पढ़ाई-लिखाई गांव के स्कूल में ही सम्पन्न हुई। क्रांतिकारी गतिविधियों में संग्लन रहने के कारण इन्हें मैट्रिक की परीक्षा छोड़नी पड़ी। स्वभाव से खुद में खोए-खोए रहने की प्रवृति के कारण साथियों ने इनका उपनाम “भुल्लर” रख दिया। आगे चल कर वे इसी नाम से पहचाने जाने लगे। 17 वर्ष की उम्र तक वे गाँव में ही रहे। गांधीजी के विचारों से प्रभावित होने के कारण सन 1917 से 1921 ई. तक गांधीजी के हर आह्वान पर आंदोलन के कार्यक्रम में जी जान से लगे रहे। अपने अन्य मित्रों की भांति वे भी अपने घर-परिवार से विमुख हो आंदोलन में सक्रिय रहते थे।
तत्कालीन मुजफ्फरपुर जिले का अनुमंडल और वर्तमान वैशाली जिले का मुख्यालय हाजीपुर स्वतंत्रता आन्दोलन के क्रांतिकारियों का प्रमुख केन्द्र था। उस केन्द्र के मुख्य क्रांतिकारियों में स्व. भुल्लर ठाकुर भी शामिल थे। 1920 ई. में महात्मा गांधी के हाजीपुर आगमन के पश्चात उनके आह्वान पर वे भी आंदोलन की ज्वाला में कूद गए। स्व. बैकुंठ शुक्ल, अक्षयवट राय, बाबू बसावन सिंह, ललितेश्वर प्रसाद शाही, गुलजार पटेल आदि प्रमुख आंदोलनकारियों के साथ संघर्षरत थे। गांधी के आह्वान पर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद जाने के कारण मैट्रिक की परीक्षा देने से वंचित हो गए। इसके लिए इन्होंने परिवार की नाराजगी पसंद की, पर आंदोलन से विमुख नहीं हुए।
कहा जाता है कि 1926 ई. में इन्हें गिरफ्तार कर बांकीपुर जेल भेज दिया गया था। सात दिनों में वे जेल की दीवार फांद कर निकल गए थे। 1929 ई. में अंग्रेज सिपाहियों ने इनके घर पर धावा बोल कर पुनः इन्हें गिरफ्तार कर लिया। 1942 ई. के भारत छोड़ो आंदोलन में तुर्की-गोरौल रेलवे स्टेशन की रेल-पटरी उखाड़ने, पोस्ट ऑफिस, थाना के दस्तावेजों को जलाने आदि में इन्होंने अहम भूमिका निभाई। स्व. ललितेश्वर प्रसाद शाही ने अपनी पुस्तक “बनते बिहार का साक्षी” में लिखा है कि – “मेरे गांव से थोड़ा पूरब मैनपुरा गांव के जुगेश्वर ठाकुर उर्फ भुल्लर ठाकुर और बीबीपुर गांव के प्रदीप नारायण वर्मा भी जेल गए थे। कहा जाता है कि उन लोगों को पकड़ कर घोड़े की टांग से बांध कर घोड़ा को दौड़ा दिया गया था।” बीबीपुर के राजेश्वर सिंह ने आंखों देखी घटना को अपने संस्मरण में बताया कि 1942 ई. में प्रदीप भगत जी और भुल्लर ठाकुर के साथ ललितेश्वर प्रसाद शाही ने लालगंज थाना का घेराव किया था। इसके कारण अंग्रेज सिपाहियों ने भुल्लर बाबू को घोड़े से बांध कर घोड़ा को छोड़ दिया। घोड़ा लगभग दो किलोमीटर तक उनको घसीटते हुए भागता रहा। उसके बाद पुलिस ऑफिसर के निर्देश पर उन्हें लहू-लुहान रूप में घोड़े पर लाद कर कटारु होते हुए हाजीपुर जेल ले जाया गया। यह बात उन्होंने दिनांक- 03/01/2021 को आयोजित स्मृति सभा में कहा था।
भुल्लर बाबू पर पचास रुपये का जुर्माना लगाया गया था। भुल्लर बाबू जुर्माना नहीं देना चाहते थे, परन्तु कुछ दिनों के बाद उनके भाई जुर्माना भर कर उन्हें छुड़ा कर ले आए। कहा जाता है कि कई बार उन्हें नजरबन्द भी किया गया था। न जाने कितनी बार वे जेल गए और वहां की कठोर यातनाओं को सहा। उनकी बहुत सारी क्रिया-कलापें उपलब्ध नहीं हैं पर वे काल की किसी पटल पर अंकित हैं। उसे खोज कर शोध करने की आवश्यकता है।
स्व. भुल्लर ठाकुर आत्म-प्रवंचना से सदा दूर रहे। अपने स्वंत्रता सेनानी साथियों; यथा:- एल.पी. शाही, दीप नारायण सिंह आदि के लाख समझाने के बावजूद राजनीति में प्रवेश नहीं किए। उन्होंने राजनीति के गलियारे में घुसना अपने-आप को समाज-सेवा से वंचित करना समझा। उनके लिए पराधीनता से मुक्त भारत के समाज की सेवा राजनीति की सेवा से अधिक मूल्यवान लगा। वे किसी राजनीतिक दल के सदस्य न बने, न रहे; परन्तु अपनत्व एवं समाज सेवा के लिए प्रगतिशील विचारों वाले अपने स्वतंत्रता सेनानी राजनीतिक मित्रों से मित्रता में परहेज नहीं रखे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त और 26 जनवरी को अपने गांव के सभी बच्चों को लेकर तिरंगा झंडा के साथ प्रभात-फेरी करते थे और उन बच्चों को स्वतंत्रता का मतलब समझाते थे। बच्चों में जिलेबियां बांटते थे।
देश की आजादी के बाद विरासत में उन्हें लम्बी-चौड़ी गृहस्थी भी मिली थी। संयुक्त परिवार था। इनकी पत्नी श्याम सुन्दर देवी कभी इन्हें समाज सेवा से विमुख होने को विवश नहीं किया। इनके दो पुत्र थे- सत्यदेव ठाकुर और योगेन्द्र ठाकुर। किसान परिवार से थे। आमदनी का स्रोत भी सीमित था | इसके बावजूद मानवीयता और आदर्श को नहीं छोड़े। उन्हें भारत सरकार द्वारा जो स्वतंत्रता सेनानी पेंशन प्रदान किया गया था, उस पेंशन का अधिकांश हिस्सा समाज सेवा और समाज के बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर देते थे। उन्होंने लड़कों के साथ-साथ लड़कियों की पढ़ाई के लिए भी चिंता थी। इसके लिए उन्होंने प्रयास और परिश्रम कर अपने गांव मानपुरा में मध्य विद्यालय की स्थापना करवाई, ताकि गांव के बच्चों के साथ-साथ बच्चियां भी पढ़ाई कर सकें। उस स्कूल के छात्र-छात्राओं की पढ़ाई के लिए अपने पेंशन की राशि स्कूल में दान दे देते थे।
भारत सरकार द्वारा 1972 ई. में ताम्रपत्र से सम्मानित महान स्वतंत्रता स्व. भुल्लर ठाकुर ने जितना हो सका, हर संभव प्रयास कर समाज को दिया। समाज से लेने की कोई आकांक्षा नहीं रखी। सियासत की दुनिया में कोई होड़ नहीं लगाया। किसी बड़े पद की लालसा नहीं रखी। कुछ प्राप्त करने के लिए वे सदा भुल्लकर रहे और देने के लिए गांठ बांध कर बैठे रहे। ऐसे व्यक्तित्व को समाज भी भूल गया था किन्तु समाज अब अपने इस गौरवशाली पुत्र को वह सम्मान देकर श्रंद्धाजलि अर्पित करना चाहता है, जिसके वे हकदार थे।
स्व. भुल्लर ठाकुर की गणना उन गिने-चुने स्वतंत्रता सेनानियों एवं महापुरुषों में की जा सकती है, जिनके जीवन का उद्देश्य व्यक्तिगत सुख का त्याग कर समाज-हित में आत्मोत्सर्ग रहा। स्वंत्रता संग्राम से मिली आजादी के बाद भी वे समाज-हित के लिए आजीवन संघर्ष जारी रखे। पिछड़े, कमजोर, पीड़ित मानवता के कल्याण के लिए सतत प्रयत्नशील एवं क्रियाशील रहे। उनका जीवन-पर्यंत समाज को दिया गया अवदान अमूल्य है। समाज इस महापुरुष का ऋणी है और रहेगा।
शिक्षा मंत्री से अनुरोध है कि इनके गृह प्रखंड मुख्यालय मे प्रतिमा सह शिलापट्ट तथा भुल्लर बाबू के ग्राम के मानपुरा मध्य विद्यालय इनके नाम पर किया जाये। इस इलाके के सभी नागरिक की यह सदिच्छा है।

Ravindra Nath Tiwari

तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय। 17 साल हिंदुस्तान अखबार के साथ पत्रकारिता के बाद अब 'भारत वार्ता' में प्रधान संपादक।

Recent Posts

30 नवंबर 2025 को पटना में ज्ञान और साहित्य का महोत्सव – नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल

पटना। बिहार की ऐतिहासिक और साहित्यिक पहचान को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के उद्देश्य… Read More

9 hours ago

डॉ. राजवर्धन आज़ाद की अध्यक्षता में साहित्य सम्मेलन के 44वें महाधिवेशन की स्वागत समिति गठित

पटना, भारत वार्ता संवाददाता : बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के 44वें महाधिवेशन की तैयारी जोर-शोर… Read More

2 days ago

पीएम मोदी ने राम मंदिर पर फहराया धर्म ध्वजा

Bharat varta Desk 25 नवंबर 2025 को विवाह पंचमी के अवसर पर अयोध्या के श्रीराम… Read More

4 days ago

CJI सूर्यकांत को राष्ट्रपति ने शपथ दिलाई

Bharat varta Desk जस्टिस सूर्यकांत ने आज भारत के 53वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI)… Read More

5 days ago

नीतीश कुमार ने ली मुख्यमंत्री पद की शपथ, और कौन-कौन बनें मत्री

Bharat varta Desk मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज गांधी मैदान में 10वीं बार शपथ ली।… Read More

1 week ago

कल गांधी मैदान में शपथ ग्रहण समारोह में आएंगे प्रधानमंत्री

Bharat varta Desk आज एनडीए विधायक दल की बैठक में नीतीश कुमार को सर्वसम्मति से… Read More

1 week ago