
अप्प दीपो भव-17
-दिलीप कुमार (कवि, लेखक, मोटिवेशनल स्पीकर और भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी)
ईश्वर की सत्ता में विश्वास करने वाले लोग प्रतिदिन ईश्वर का स्मरण करते हैं। ईश्वर ने हमें कितना कुछ दिया है। सनसनाती हुई ये हवाएं, आंखों को तृप्ति देती हरियाली, कल-कल करती नदियां, कलरव करती चिड़ियां, प्रकृति की शोभा में चार चांद लगाते रंग-बिरंगे फूल और खिलखिलाते हुए बच्चे। यह सभी हमें ईश्वर से मिला है। यदि आप ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं रखते तो मान लीजिए कि ये सारी चीजें हमें प्रकृति से मिली हैं और इसीलिए हमें ईश्वर और प्रकृति के प्रति आभारी रहना चाहिए। ईश्वर ने बिना मांगे हमें बहुत कुछ दिया है। फिर भी जब सुबह-सुबह हम प्रार्थना करते हैं तो परम पिता परमेश्वर से कुछ मांगते हैं। अपने लिए कुछ और चाहते हैं। अर्थशास्त्र के नियम कहते हैं कि इच्छाएं अनंत होती हैं। संसाधन सीमित हैं। असीमित इच्छाओं की पूर्ति संभव नहीं। सीमित संसाधनों का प्रयोग इस तरह से करना चाहिए कि व्यक्ति और समाज को अधिकतम संतुष्टि और खुशी मिल सके।
ईश्वर ने हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त प्रबंध किए हैं। पूरे ब्रह्मांड में जितने भी जीव हैं, उन सब की आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति कर सकती है। लेकिन, लालच की कोई सीमा नहीं होती। कितना भी डालते जाओ, लालच की गठरी भरती नहीं है। लालच की गठरी जितनी बड़ी होती चली जाती है, हमारा मन उतना ही बेचैन होता चला जाता है। कुछ और ज्यादा पाने की इच्छा में हम बदहवास हो जाते हैं । इसलिए जब हम ईश्वर या प्रकृति से कुछ मांगें तो वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मांगे न कि अपनी लालच की गठरी को बड़ा करने के लिए।
संत कवि कबीर दास ने अपने एक दोहे में प्रार्थना की है-
साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाए ।।
हे प्रभु! हमारे पास इतने संसाधन हों कि हमारी सारी जरूरतों की पूर्ति हो जाए। साथ ही यदि मदद के लिए कोई हित, कुटुम्ब, मित्र या अतिथि आ जाएं तो हम उसकी मदद कर सकने की स्थिति में भी रहें।
हमारी चाहतें बस इतनी ही होनी चाहिए। इसके बाद यदि ईश्वर हमें कुछ अधिक देता है, प्रकृति की विशेष कृपा हमारे ऊपर हो जाती है तो फिर हमें आवश्यकता से अधिक संसाधनों का उपयोग समाज, राष्ट्र और विश्व के हित में करना चाहिए।
अपने देश में एक प्रार्थना काफी मशहूर है। कुछ वर्षों पूर्व ही इसे लिखा गया है। यह एक फिल्मी प्रार्थना है लेकिन हमारे जीवन से गहरे जुड़ा हुआ है। अंकुश फिल्म के इस प्रार्थना को गीतकार अभिलाष ने लिखा और कुलदीप सिंह ने संगीतबद्ध किया है। इस प्रार्थना के शब्दों की सरलता को महसूस कीजिए-
इतनी शक्ति हमें देना दाता
मन का विश्वास कमजोर हो ना
हम चले नेक रास्ते पे हमसे
भूलकर भी कोई भूल हो ना
यह पूरी प्रार्थना ही अच्छाई की कामना लिए हुए है। प्रार्थना में अपने लिए नेकी और विश्व के लिए खुशी की कामना में जो सौंदर्य और पवित्रता है, वह हमें देवत्व के समीप ले जाता है-
हम ना सोचें हमें क्या मिला है
हम ये सोंचे किया क्या है अर्पण
फूल खुशियों के बांटे सभी को
सब का जीवन ही बन जाए मधुबन ।
स्पष्ट है कि जब हम सकल जगत के कल्याण की भावना के साथ खुशियों के फूल बिखराने लगते हैं तो फिर सबका जीवन सुंदर बन जाता है। हमारे आसपास रहने वाले लोगों तथा हमारे देश और समाज के लोगों का जीवन यदि सुंदर बन जाए तो हमारा जीवन का सुंदर बनना भी तय है।
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