करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रेल अधिकारी दिलीप कुमार का कॉलम ‘अप्प दीपो भव’
अप्प दीपो भव-15
दिलीप कुमार (कवि, लेखक, मोटिवेशनल स्पीकर और भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी)
चंद विरले लोगों को सफलता अकस्मात मिल जाती है। ऐसे लोग खुशकिस्मत माने जा सकते हैं। इस बात पर फख्र भी कर सकते हैं कि जन्म से ही चांदी का चम्मच उनके मुंह में रहा। लेकिन अधिकांश लोग एक-एक सीढ़ी चढ़कर सफलता के शिखर पर पहुंचते हैं। इनमें से कई लोगों के पास अच्छी प्रतिभा होती है। लेकिन कई लोग अपेक्षाकृत कम प्रतिभाशाली होते हुए भी सफलता के झंडे गाड़ते देखे गए हैं। ऐसे लोगों ने जीवन में जीत के लिए निरंतर अभ्यास के मंत्र को चुना होता है। निरंतर अभ्यास एक ऐसा फार्मूला है जिसका उपयोग करके मंदबुद्धि व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है, जिसकी काया कमजोर है, वह भी बड़ा बॉडी बिल्डर बन सकता है और खेल के मैदान में कैडी बनकर दूसरों का स्पोर्ट्स किट ढोने वाला बालक विश्व का नंबर वन गोल्फर टाइगर वुड्स भी बन सकता है। निरंतर अभ्यास की महिमा अपरंपार है।
पुरातन काल से भारत में एक कथा सुनाई जाती रही है। बालक वरदराज की कथा। गुरुकुल में पढ़ने वाले कई बालकों में एक बालक संस्कृत के श्लोकों को याद नहीं कर पाता था। उसका अर्थ भी समझने में उसे काफी दिक्कत होती थी। व्याकरण के नियमों से जटिल लगते। साथी बालक उस बालक की मंदबुद्धि और कमजोर स्मरण शक्ति पर हंसते। उसका मजाक उड़ाते। उसकी तुलना बैलों के राजा से की जाती। सब कहते कि उसके दिमाग में सिर्फ भूसा भरा हुआ है। सभी उसका मूल नाम तक भूल गए और उसे वरदराज यानी बैलों का राजा कह कर पुकारने लगे।
पर्याप्त प्रोत्साहन और सहयोग न मिला, तो बालक वरदराज ने भी प्रयास करना छोड़ दिया। दिन-प्रतिदिन उस बालक की स्थिति बदतर होती चली गई। और फिर 1 दिन ऐसा आया जब उसकी मंदबुद्धि और दूसरे बच्चों के दुर्व्यवहार को देखकर गुरुकुल के आचार्य ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए। वरदराज को गुरुकुल छोड़ कर जाने तथा कोई और कार्य करने का आदेश मिला। आज्ञापालक वरदराज अपने गुरुकुल से निकले तो रास्ते में प्यास लगने पर एक कुएं के पास पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि रस्सी के बार-बार घिसने से कुएँ के पत्थरों पर निशान पड़ गए हैं। यह देख वरदराज आश्चर्यचकित हो गए। उनके मन में विचार आया कि रस्सी के बार-बार घिसने से कुएं के पत्थर पर यदि निशान पड़ सकते हैं तो फिर निरंतर अभ्यास करने से वह विद्या हासिल क्यों नहीं कर सकते। निरंतर अभ्यास का जादुई मंत्र उन्हें पत्थर पर पड़े निशानों से प्राप्त हो गया। जो बात उनके गुरु उन्हें नहीं बता सके थे, पत्थर पर पड़े निशानों ने बता दिया। निरंतर अभ्यास का जादुई मंत्र। वरदराज ने उन निशानों को प्रणाम किया और गुरुकुल वापस लौट आए। फिर पूरी तन्मयता के साथ निरंतर अभ्यास करने लगे और अंततः अपनी शिक्षा पूर्ण की। इसी घटना से प्रसिद्ध कहावत का जन्म हुआ-
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान!
रसरी आवत-जात के, सिल पर परत निशान!!
विद्वता हासिल करने के बाद वरदराज रुके नहीं। आचार्य बनने के बाद उन्होंने पाणिनी के संस्कृत व्याकरण अष्टाध्यायी तथा अपने गुरु भट्टोजि दीक्षित की पुस्तक सिद्धांत कौमुदी पर आधारित तीन ग्रंथ रचे- मध्य सिद्धांत कौमुदी,लघु सिद्धांत कौमुदी तथा सार कौमुदी। तीनों ग्रंथों की रचना करते समय आचार्य वरदराज ने इस बात का विशेष ख्याल रखा कि तेजी से सीखने वाले बच्चों के साथ-साथ, अपेक्षाकृत धीमी गति से सीखने वाले बच्चे भी आसानी से संस्कृत के सूत्रों और व्याकरण को समझ सकें।
निरंतर अभ्यास कर सफलता प्राप्त करने वाले लोगों की सूची बहुत ही लंबी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन प्रारंभ में प्रभावशाली भाषण नहीं दे पाते थे, लेकिन निरंतर अभ्यास करके वे कुशल वक्ता बने। हॉलीवुड और बॉलीवुड में अनेक ऐसे कलाकार हैं जो प्रारंभ में सहज अभिनय नहीं कर पाते थे। लेकिन बाद में निरंतर अभ्यास करके उन्होंने अपने आपको मांजा और फिर कई फिल्मों में यादगार भूमिकाएं अदा की।
लगातार अभ्यास से मनुष्य के जीवन में निखार आता है। लगातार अभ्यास हमारी बुद्धि को पैनी करता है। लगातार अभ्यास करने वाले बच्चे गणित के सवालों को कम समय में तेज गति से हल कर पाने में सफल रहते हैं। लगातार अभ्यास करके खिलाड़ी अपने प्रदर्शन में सुधार लाते हैं और चैंपियन बनते हैं। लगातार अभ्यास करने से एक ही टाइप के काम को दोबारा करने में बहुत कम समय लगता है। जिन कामों में व्यक्तिगत दक्षता की आवश्यकता होती है, वहां तो अभ्यास की महत्ता और भी बढ़ जाती है। निरंतर अभ्यास करने वाले लोग ही अच्छे पेंटर बनते हैं। कुशल कारीगरी की कला भी निरंतर अभ्यास करने से ही आती है। अच्छा डांस करने, अच्छा बोलने तथा सहजता के साथ मंजिल पर पहुंचने की कला निरंतर अभ्यास करने से निखरती है।
निरंतर अभ्यास करने वाले लोग मुश्किल से मुश्किल काम भी कम समय में संपन्न कर लेते हैं। उन्हें अपने क्षेत्र का काम करने में दक्षता प्राप्त हो जाती है और वे विशेषज्ञ कहलाने लग जाते हैं। निरंतर अभ्यास कर हम भी उत्कृष्टता की ओर बढ़ सकते हैं।