
अप्प दीपो भव-12 : दिलीप कुमार
(लेखक, कवि, मोटिवेशनल स्पीकर दिलीप कुमार भारतीय रेल सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं)
हम चीजों और परिस्थितियों पर एक नजर डालते हैं और फिर उसके आधार पर कोई राय बना लेते हैं। जीवन की आपाधापी और जल्दबाजी में किसी निर्णय पर पहुंचने की हड़बड़ी में पूरा जाने बिना नजरिया बना लेना किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है। दो अलग-अलग कहानियों से इसे समझने की कोशिश करते हैं-
राम प्रसाद और मोहन कुमार प्रतिदिन प्रातः कालीन भ्रमण करते हैं। रामप्रसाद एक घंटे में छः किलोमीटर की दूरी तय करते हैं जबकि मोहन कुमार एक घंटे में 10 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। इतनी सूचना के आधार पर यदि हमें यह तय करना हुआ कि दोनों में कौन तेज और स्वस्थ हैं तो हमारा उत्तर होगा कि 10 किलोमीटर की दूरी एक घंटे में तय करने वाले मोहन कुमार अधिक स्वस्थ हैं। लेकिन, यह निष्कर्ष मात्र एक कथन या परिस्थिति पर एक नजर डाल कर ही निकाला गया है। अब यदि यह कहा जाए कि रामप्रसाद ने एक घंटे में छः किलोमीटर का सफर रेतीले रास्ते पर तय किया था, जबकि मोहन कुमार दौड़ने के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए रास्ते पर चल रहे थे; तो हमारा नजरिया बदल जाएगा। हम मान लेंगे कि रामप्रसाद अधिक स्वस्थ हैं। फिर यदि यह मालूम हो कि रामप्रसाद की उम्र 20 वर्ष और मोहन कुमार की उम्र 50 वर्ष है तो हमारा नजरिया पुन: बदल जाएगा। 50 वर्ष की आयु में एक घंटा में 10 किलोमीटर की दूरी तय करने वाले को हम अधिक स्वस्थ मान लेंगे। नजर और नजरिया में यही फर्क है। एक नजर में चीजें जैसी दिखती हैं, आवश्यक नहीं कि अलग-अलग दृष्टिकोण से और संपूर्णता में देखने पर वह चीज वैसी ही दिखाई देगी।
इस संदर्भ में मैं अपने एक परिचित के व्यवहार की चर्चा करना चाहूंगा। वह जब कभी मित्रों, सहकर्मियों और अपने से उच्च पदों पर आसीन लोगों से मिलते तो अपनी व्यवहार कुशलता का परिचय देते। इससे उनकी बड़ी ही सकारात्मक छवि बनती। लेकिन, जब अपने कर्मचारियों और सहायकों से बात करते तो उनका व्यवहार बदला होता। इस कारण कोई भी उनके साथ काम करना नहीं चाहता था। जाहिर सी बात है कि एक नजर से जो व्यक्ति अच्छा दिखता है, दूसरी नजर से उसे देखा जाए तो उस में खोट नजर आता है। इसलिए जरूरी है कि हम किसी भी व्यक्ति या परिस्थितियों के बारे में अंतिम राय तभी बनाएं जब हमारे पास उनके संबंध में पूरी जानकारी हो।
नजर और नजरिया को लेकर ऐसी ही और एक कहानी हम सबको सुनने को मिलती है। शायद आपने भी सुनी होगी। एक बार की बात है। गर्मी के दिनों में सफर पर निकले एक व्यक्ति को बहुत जोर की प्यास लगी। उसने एक घर का दरवाजा खटखटाया। कुछ देर तक कोई रिस्पांस नहीं मिला तो उस घर के बारे में उसके मन में ख्याल आया कि शायद ये लोग मदद करने वाले नहीं हैं। तभी दरवाजा खुला। एक व्यक्ति बाहर आया और मधुर स्वर में कहा- मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं? प्यासे पथिक ने पानी मांगा। वह व्यक्ति अंदर गया। उसे वापस आने में थोड़ी देर हुई। प्यासा व्यक्ति सोचने लगा- प्यास से कंठ सूख रहा है। पता नहीं पानी मिलेगा भी या नहीं। बेकार इस घर में पानी मांगने के लिए रुका। इतने में घर का दरवाजा खुला और घर का स्वामी न सिर्फ पानी बल्कि खाने के लिए नमकीन और बिस्किट भी साथ लेकर आया। बड़े प्यार से उसने कहा- आप थके मालूम पड़ते हैं। धूप में चलकर आए हैं। बिना कुछ खाए पानी पीना नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए थोड़ा नाश्ता कर लीजिए और उसके बाद भरपेट पानी पीजिए। प्यासा व्यक्ति बहुत खुश हुआ और उसने स्वामी को धन्यवाद दिया। फिर उसने मन ही मन गृहस्वामी की कुशलता की कामना करते हुए भगवान को भी धन्यवाद दिया।
इस तरह हम देखते हैं कि थोड़ी-थोड़ी देर में ही समय और परिस्थितियां बदलने पर देखने की हमारी नजर बदल जाती है। नजर बदलने से नजरिया भी बदल जाता है। इसलिए कभी भी हड़बड़ी में नजरिया नहीं बनाना चाहिए। यदि वह नजरिया नकारात्मक बन रहा हो तो विशेषकर ठहर जाना चाहिए। पूरी तरह से देख-सुन और चीजों को समझ कर ही अंतिम राय बनानी चाहिए।
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