
अप्प दीपो भव-24
-दिलीप कुमार (कवि, लेखक, मोटिवेशनल स्पीकर और भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी)
हमारे व्यक्तित्व के निर्माण में संगति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बचपन से जिन लोगों की संगति अच्छे लोगों के साथ होती है और जो अच्छे वातावरण में पलते-बढ़ते हैं, उनमें से अधिकांश लोगों का स्वभाव अच्छा होता है। इसके विपरीत गलत संगति में पड़ जाने वाले लोग अपना नुकसान तो करते ही हैं, समाज और देश के लिए भी घातक बन जाते हैं। बुरी संगत में आकर जब वह बुरे काम करने लग जाते हैं तो उसका नतीजा भी बुरा ही होता है।
गलत संगति में रहने वाले लोगों का व्यक्तित्व निर्माण भी सही तरीके से नहीं हो पाता। बुरी संगति के कारण समाज में उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा है एक अच्छे मित्र की संगति 100 पुस्तकों के पढ़ने के बराबर है। 100 पुस्तकें पढ़ने से जितनी शिक्षा हम ग्रहण कर पाते हैं, उतनी ही शिक्षा हमें एक अच्छे मित्र की संगति से प्राप्त हो जाती है। इसके ठीक विपरीत बुरी संगति हमारी मति को भ्रष्ट कर देता है। बुरी संगति के कारण कई बार हमें ऐसे कार्य करने के लिए भी उत्प्रेरित हो जाते हैं जो पहले कभी सपने में भी नहीं सोचा था। एक ही व्यक्ति या पदार्थ जब अलग-अलग स्वभाव के लोगों के संपर्क में आते हैं तो उसका अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। रहीम कवि कहते हैं-
कदली,सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन ।
जैसी संगति बैठिए, तैसोइ फल दीन ।।
स्वाति नक्षत्र में गिरा पानी का एक बूंद केले के ऊपर पड़ता है तो कपूर बन जाता है, सीप में पड़ता है तो मोती बन जाता है और यदि किसी सर्प के मुख में गिरता है तो विष बन जाता है। स्वाति नक्षत्र के बूंद विशेष की जैसी संगति होती है, उसके भाग्य का निर्माण वैसे ही होता है।
भारतीय मनीषी परंपरा के दूसरे संत कवियों ने अच्छी और बुरी संगति को लेकर दोहे रचे हैं। एक दोहा तो बहुत ही पुराना है-
संगत से गुण होत है, संगत ही गुण जाय
बाँस, फाँस अरु मिसरी, एकै भाव बिकाय ।।
यानी एक प्रकार की संगति के कारण बाँस, कांटे और मिसरी का भाव एक ही हो जाता है । हमारे यहां जौ के साथ घुन के पिसाने की कहावत भी प्रसिद्ध है । कई बार बुरी संगति में रहने के कारण बिना किसी और अपराध के हमें सजा का हकदार भी बनना पड़ जाता है । हालांकि यदि हमारा व्यक्तित्व अंदर से मजबूत है और हमारा विश्वास ठोस धरातल पर खड़ा है, तो कुछ समय के लिए बुरे चरित्र वाले लोगों की संगति हो जाने पर भी हम बचे रह सकते हैं । रहीम कवि का प्रसिद्ध दोहा है-
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग ।।
यानी जो व्यक्ति उत्तम प्रकृति का होता है और अपने स्वभाव के प्रति दृढ़ संकल्पित होता है उस पर बुरी संगति का कोई असर नहीं पड़ता चंदन के वृक्ष में सर्प लिपट जाता है फिर भी चंदन से खुशबू ही आती है।
संगति को लेकर कबीर दास के दोहे काफी प्रसिद्ध हुए हैं। एक दोहा में कबीर कहते हैं-
कबीरा संगत साधु की, नित प्रति कीजै जाय ।
दुरमति दूर बहावासी, देसी सुमति बताय ।।
यानी हमें प्रतिदिन संतों की संगति करनी चाहिए। इससे हमारी दुर्बुद्धि दूर हो जाती है। संत हमें सुबुद्धि बता देते हैं।
एक दूसरे दोहे में कबीर कहते हैं-
कबीरा संगत साधु की, ज्यों गंधी का बास ।
जो कुछ गंधी दे नहीं, तो भी बास सुबास ।।
अच्छे लोगों की संगति इत्र बेचने वाले गंधी के समान होती है । गंधी यदि हमें कुछ भी नहीं देता है तो भी हमारे पास कम से कम सुगंध छोड़ जाता है।
सच्चे पुरुषों की संगति मनुष्य के लिए सदा कल्याणकारी होती है।
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