अप्प दीपो भव-21
दिलीप कुमार (कवि, लेखक, मोटिवेशनल स्पीकर और भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी)
सच्चा गुरु ज्ञान देता है। वह मुश्किलों में सीधी मदद नहीं करता अपितु हमें मुश्किलों से लड़ने के लिए तैयार करता है। कई बार हम ऐसे गुरुओं को हिकारत की नजर से देखते हैं जो हमारी समस्या के समाधान के लिए दौड़े नहीं आते। हम ऐसे लोगों को अधिक पसंद करते हैं जो तुरंत हमारी सहायता के लिए आगे बढ़ते हैं।
एक बालक था। उसे नदी पार करनी थी। वह नाविक के पास गया। नाविक ने बालक को नाव पर बैठाया और उसे नदी पार करा दिया। नाविक बालक के लिए मददगार बना। बालक अति प्रसन्न हुआ उसने नाविक को बहुत ही अच्छा और अपना सच्चा मददगार माना। कई दिनों तक ऐसा होता रहा। नाविक की मदद से बच्चा नदी पार करता रहा और उसके प्रति आभारी बना रहा। एक दिन वही बालक अपने गुरु के साथ जा रहा था। गुरु को भी नाव खेना आता था। लेकिन उन्होंने नाविक की तरह नाव खेने से इनकार कर दिया। शिष्य को कहा कि यदि नदी को पार करना है तो चप्पू दोनों को चलाना होगा। बालक को यह बात नागवार लगी। शिष्य ने कहा – मुझे चप्पू चलाना नहीं आता। गुरु ने कहा – तो सीख लो। गुरु की बात मान शिष्य भी नाव चलाना सीखने लगा और कुछ दिनों में ही नाव चलाना सीख गया। फिर एक दिन गुरु ने शिष्य से कहा- नदी पार करने के नाव का सहारा ही क्यों लेना? हम तैर कर भी नदी पार कर सकते हैं। इस तरह गुरु ने अपने शिष्य को तैरना भी सिखा दिया।
जीवन पथ पर हमें दो तरह के मददगार मिलते हैं। एक वह जो तुरंत ही हमारी समस्या का समाधान कर देते हैं। दूसरा वह जो समस्या के समाधान का रास्ता दिखाते हैं और उस दिखाये रास्ते पर चलने के लिए हमें प्रेरित करते हैं। जो मददगार समस्या के निदान में हमारी सहायता करे, निश्चित रूप से हमें उसके प्रति शुक्रगुजार होना चाहिए। यदि हम भूखे हैं और किसी ने भोजन करा दिया। यदि हम बीमार हैं और किसी ने दवा लाकर दे दी। हम राह चलते गिर गए हैं और किसी ने उंगली पकड़ के हमें उठा दिया। ऐसे लोगों के प्रति हमें शुक्रगुजार होना चाहिए। हमें मदद के उनके तरीके और मदद करने की उनकी भावना का सम्मान करना चाहिए। लेकिन, जीवन-पथ पर मिलने वाले सभी लोग इस प्रकार के नहीं होते।
मान लीजिए साइकिल चलाते हुए आप कहीं जा रहे हैं और गिर गए हैं। कोई दौड़कर आपकी मदद करता है। आप उठ खड़े होते हैं और फिर जीवन-पथ पर आगे बढ़ जाते हैं। यह मदद महत्वपूर्ण है। लेकिन, इस प्रकार की मदद से एक विशेष किस्म के संकट का जन्म होता है। संकट के समय बार-बार अच्छे मददगार के मिल जाने से हमें लगने लगता है कि जब हम गिरेंगे तो कोई न कोई उठने में हमारी मदद करेगा। कोई न कोई सहारा देगा और यदि कई बार ऐसा हो गया तो फिर मन में यह बात गहरे बैठ जाती है कि कोई सहारा देगा, तब ही हम उठ पाएंगे। जब ऐसा लगने लगता है तो हमारा आत्मविश्वास कमजोर होता है।
हमारे शरीर और मन के अंदर अपार शक्ति होती है। यह शक्ति हमें संकट के समय लड़ना सिखाती है। यह शक्ति हमें गिरने के बाद उठना सिखाती है। इस शक्ति से परिचय जरूरी है। जिस किसी ने भी इस शक्ति को पहचान लिया, उसका आत्मबल कई गुना बढ़ जाता है। वह हर प्रकार की चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हो जाता है।
बड़े लक्ष्य के संधान के लिए जब हम आगे बढ़ते हैं तो हमें नहीं मालूम होता है कि रास्ते में किस प्रकार की चुनौतियां मिलेंगी। जब चुनौतियों की प्रकृति ही मालूम नहीं होती तो फिर उसका समाधान कैसे मालूम होगा। नई चुनौतियां के समाधान की खोज के लिए नई दृष्टि जरूरी है। नई दृष्टि संघर्ष से प्राप्त होती है। जो लोग समाधान के लिए दूसरों पर आश्रित होने लग जाते हैं, वे जीवन की इन चुनौतियों का सामना बेहतर तरीके से नहीं कर पाते। लेकिन, जो लोग बचपन से ही झंझावतों को झेलते रहते हैं, गिर-गिर कर उठते रहते हैं; वे जीवन के रणक्षेत्र में आने वाली हर चुनौती का सामना नायाब तरीके से करते हैं। विकराल चुनौती के आने पर भी ऐसे लोग लड़ना नहीं छोड़ते हैं। अपनी संपूर्ण शक्ति को सहेज कर और समय की जरूरत के हिसाब से नई रणनीति बनाते हैं, बार-बार प्रयास करते हैं और अंत में जीत हासिल करते हैं।
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