पंचायत चुनाव में जितिन अपनी भाभी तक को चुनाव नहीं जिता सके
भारत वार्ता, खबर विश्लेषण : उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी नेता जितिन प्रसाद बुधवार को भाजपा में शामिल हो गए हैं। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने बड़े ही तामझाम के साथ उनका स्वागत भी किया है। वर्तमान समय में भाजपा के मुख्य रणनीतिकार माने जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जितिन प्रसाद से मुलाकात की है और उनका स्वागत किया। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी अपने आवास पर स्वागत किया। सदस्यता दिलाने रेल मंत्री पीयूष गोयल भाजपा मुख्यालय पहुंचे। भाजपा के सभी बड़े नेताओं ने ट्वीट कर बधाई दी।
भाजपा के सभी नेता जिस तामझाम के साथ जितिन प्रसाद का स्वागत कर उत्साहित हैं उसका एक मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि उनके भाजपा में शामिल होने से उत्तर प्रदेश में पार्टी को एक बड़ा ब्राम्हण चेहरा मिल गया है। उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इसे बड़े फेरबदल के रूप में देखा जा रहा है। दरअसल इस समय जितना मुश्किल दौर से जितिन प्रसाद गुजर रहे हैं उससे ज्यादा मुश्किल दौर से उत्तर प्रदेश में भाजपा गुजर रही है क्योंकि उत्तर प्रदेश में एक तो योगी आदित्यनाथ की ब्राह्मण विरोधी छवि बन गई है और दूसरा यह कि योगी आदित्यनाथ प्रदेश के राजनैतिक-प्रशासनिक ढांचे में नरेंद्र मोदी और अमित शाह को घुसने नहीं दे रहे हैं। अपनी पूरी ताकत लगाने के बावजूद मोदी और शाह एके शर्मा को अभी तक कोई बड़ा पद या कद उत्तर प्रदेश की राजनीति में नहीं दिलवा पाए। भाजपा के लिए जितिन प्रसाद एक और मोहरा थे उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों को साधने की कोशिश का और भाजपा ने इस दिशा में यह कोशिश भी की है। हो सकता है कि अगले कुछ दिनों में भाजपा जितिन प्रसाद को विधान परिषद का सदस्य बना दे या एके शर्मा के साथ सरकार के मंत्रिमंडल में कोई जगह दिलवा दे, पर बड़ा सवाल – क्या जितिन प्रसाद उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए ब्राह्मण वोट बटोर पाएंगे? ये जितिन प्रसाद कौन से चावल की पोटली लेकर आये हैं?
जितिन प्रसाद कितने ‘बड़े’ जनाधार वाले नेता हैं, इसे इस तथ्य से समझिए-
जितिन प्रसाद राहुल गांधी से नजदीकी बनाने के चलते यूपीए-2 में केंद्रीय मंत्री बने, 2014 के लोकसभा चुनाव में हारे, 2017 के यूपी चुनाव में हारे और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में वो इतनी बुरी तरह से हारे कि उनकी जमानत तक ज़ब्त हो गई। जितिन बंगाल में कांग्रेस के प्रभारी बनाये गए थे और इनकी निष्क्रियता व निकम्मेपन के चलते बंगाल में कांग्रेस साफ हो गई। इसी साल हुए उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में जितिन अपनी भाभी तक को चुनाव नहीं जिता सके। ब्राह्मण चेतना परिषद नाम से एक संस्था बनाई पर ब्राह्मणों से कनेक्ट कभी नहीं हो सके।
जितिन के पिता जितेन्द्र प्रसाद को राजीव गांधी ने सब कुछ दिया मगर 22 साल पहले सोनिया जी के खिलाफ वो कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़े व बुरी तरह से हारे भी और इसके बावज़ूद जितेंद्र प्रसाद के न रहने पर सोनिया गांधी ने उनकी पत्नी और जितिन की मां कांता प्रसाद को टिकट दिया। कांता प्रसाद हार गईं और फिर सोनिया गांधी ने बेटे जितिन प्रसाद को टिकट दिया, केंद्र में मंत्री बनाया।
यहां मैं भाजपा के वर्तमान राजनीति के मॉडल पर भी छोटी सी टिप्पणी करना चाहूंगा। भाजपा को अगर यह लगता है कि वह दूसरी पार्टी के नेताओं को अपने यहां शामिल करके वोट ट्रांसफर करा लेगी, तो यह उसकी गलतफहमी है। वोट ट्रांसफर तो भाजपा के वैसे समर्पित कार्यकर्ता ही करा सकते हैं जिनके हक को छीनकर जितिन प्रसाद जैसे आयातित नेताओं को दे दिया जाएगा।
राजनीति में बहुत पानी बह चुका है और आज की स्थिति में जनता अपना वोट किसी नेता के कहने पर नहीं देती, बल्कि अपनी विचारधारा और उससे खुद को मिलने वाली मजबूती का विश्लेषण करने के बाद देती है, उदाहरण के तौर पर बंगाल में भाजपा ने बहुत सारे तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराया और उनमें से अधिकांश चुनाव हार गए। जो कुछ आयातित नेता जीते भी हैं उनमें से कुछ अभी से ही फिर से तृणमूल कांग्रेस में जाने की जुगत में लग गए हैं। मुझे आगे देश की राजनीति में भी एक ऐसा मॉडल आता दिख रहा है जिसमें नेता की जगह कार्यकर्ता और मुद्दे ही प्रभाव दिखा पाएंगे। ऐसे में समर्पित कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर उनका हक आयातित नेताओं को देना घातक फैसला ही साबित होता रहा है।
यहां मैं एक बात स्पष्ट कर दूं कि अभी भी कांग्रेस में मिलिंद देवड़ा जैसे कई नेता पुत्र हैं, जिनका विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है और वह समय आने पर आगे कभी भी पार्टी छोड़ सकते हैं!
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