जयपुर ब्यूरो : राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट आर पार के मूड में आ गए हैं. पायलट ने मंगलवार को जयपुर के शहीद स्मारक में अपना एक दिन का अनशन शुरू कर दिया है. सचिन पायलट तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे के शासन में हुए घोटालों की जांच की मांग को लेकर वर्तमान सीएम गहलोत सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठे हैं. बड़ी संख्या में पायलट समर्थक नेता व कार्यकर्ता अनशन स्थल पर जूट रहे हैं. अनशन स्थल पर लगे पोस्टर में सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तस्वीर भी नहीं है. पोस्टर में सिर्फ महात्मा गांधी की तस्वीर है.
पायलट वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए घोटालों की जांच का मुद्दा उठा रहे हैं. पायलट ने वसुंधरा राजे पर करप्शन और कुशासन का आरोप लगाते हुए गहलोत के पुराने वीडियो चलाकर पूछा है कि इन मामलों की जांच क्यों नहीं की गई. उन्होंने कहा, कांग्रेस के पास पूर्व की बीजेपी सरकार के खिलाफ सबूत थे, लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं की.
पार्टी की चेतावनी के बावजूद अनशन पर बैठे पायलट
सचिन पायलट को कांग्रेस ने अनशन न करने की चेतावनी दी थी. इसके बावजूद पायलट अनशन पर बैठ गए हैं. कांग्रेस की ओर से सोमवार को कहा गया था कि इस तरह की कोई भी गतिविधि पार्टी विरोधी गतिविधि मानी जाएगी.
राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा, ”कांग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रही है. पायलट को पहले हमसे बात करनी चाहिए थी, इस पर मैं सीएम गहलोत से बात करता और उसके बाद अगर एक्शन नहीं लिया जाता, तब उनको अनशन करने का हक था. पायलट ने पार्टी में मुद्दे रखने के बजाय सीधे अनशन का रास्ता चुना, जो कि सही नहीं है.”
अनशन में शामिल होने वालों पर रहेगी पार्टी हाईकमान की नजर
इधर अनशन में शामिल होने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं पर पार्टी हाईकमान और प्रदेश में नेतृत्व की नजर रहेगी. माना जा रहा है कि अगर पार्टी के कार्यकर्ता और नेता इस अनशन में शामिल होते हैं तो फिर उनके खिलाफ कोई कड़ा एक्शन देखने को मिल सकता है. इससे पहले कैबिनेट मंत्री रामलाल जाट ने भी कार्यकर्ताओं से अपील की थी कि अनशन में शामिल नहीं हों.
पायलट और गहलोत के बीच पुरानी है अदावत
राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच सियासी वर्चस्व की यह जंग 2018 के चुनाव के बाद से ही चली आ रही है. नवंबर 2018 में विधानसभा चुनाव हुए थे. सचिन पायलट तब प्रदेश अध्यक्ष थे. इस चुनाव में कांग्रेस राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनी. ऐसे में मुख्यमंत्री पद को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों नेता अड़ गए. पायलट कांग्रेस अध्यक्ष होने और बीजेपी के खिलाफ पांच सालों तक संघर्ष करने के बदले मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावेदारी जता रहे थे तो अशोक गहलोत ज्यादा विधायकों का अपने पक्ष में समर्थन होने और वरिष्ठता के आधार पर अपना हक जता रहे थे.
ढाई साल से किसी पद पर नहीं हैं सचिन पायलट
वहीं पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट करीब ढाई साल से पार्टी में किसी पद पर नहीं हैं. पायलट केवल टोंक से विधायक हैं. जुलाई 2020 में सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ मानेसर चले गए थे जिसके बाद पार्टी हाईकमान ने सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद और डिप्टी सीएम के पद से बर्खास्त कर दिया था.
बरहाल, अपनी ही सरकार के खिलाफ सचिन पायलट अनशन से सियासी बेचैनी जयपुर से लेकर दिल्ली तक है. अनशन क्यों? इस सवाल पर भविष्यवाणियां भी विस्फोट हैं. लेकिन इस अनशन का एक सच यह भी है कि आलाकमान और कांग्रेस के बड़े नेताओं के बीच संवादहीनता से उपजा आक्रोश किस ख़तरनाक स्तर तक पहुंच गया है.
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