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Bharat varta Desk
उच्चतम न्यायालय ने जमानत देने से इंकार करने का कोई “अच्छा कारण” न होने की बात कहते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय को कथित धर्मांतरण मामले में एक मौलवी को जमानत देने में “साहस” न दिखाने पर फटकार लगाई।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत गिरफ्तार मौलवी को जमानत देते हुए कहा, “हम समझ सकते हैं कि निचली अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया, क्योंकि निचली अदालतें शायद ही कभी जमानत देने का साहस जुटा पाती हैं, चाहे वह कोई भी अपराध हो। हालांकि, कम से कम उच्च न्यायालय से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह साहस जुटाए और अपने विवेक का विवेकपूर्ण तरीके से प्रयोग करे।”
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि विवेक का अर्थ यह नहीं है कि न्यायाधीश अपनी मर्जी से यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दे कि धर्मांतरण बहुत गंभीर बात है।”
सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में लाया गया कि मानसिक रूप से विकलांग बच्चे को उसके माता-पिता ने छोड़ दिया था और उसे सड़कों पर फेंक दिया था तथा मौलवी, जिसका कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, मानवीय आधार पर बच्चे को अपने यहां ले आया और उसे आश्रय दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा, “हमारा मानना है कि उच्च न्यायालय को याचिकाकर्ता को जमानत देकर अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए था। उच्च न्यायालय के पास जमानत देने से इनकार करने का कोई उचित कारण नहीं था। आरोपित अपराध हत्या, डकैती, बलात्कार आदि जैसा गंभीर या संगीन नहीं है।”
सर्वोच्च न्यायालय ने आगाह किया कि मौलवी की रिहाई अब मुकदमे के आड़े नहीं आनी चाहिए।
अदालतों में लंबित मामलों के लिए इसे चेतावनी बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “यही एक कारण है कि उच्च न्यायालय और अब दुर्भाग्य से देश का सर्वोच्च न्यायालय जमानत आवेदनों से भर गया है।”
सर्वोच्च न्यायालय ने अफसोस जताते हुए कहा, “यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक नहीं पहुंचना चाहिए था। निचली अदालत को स्वयं इतना साहस दिखाना चाहिए था कि वह अपने विवेक का प्रयोग करती और याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा कर देती।”
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