
अप्प दीपो भव – 34
-कवि, लेखक और मोटिवेशनल गुरु दिलीप कुमार भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं।
सुख-दुख के दोनों किनारों के बीच जिंदगी अपनी रफ्तार से मस्ती में चलती रहती है। चलायमान जिंदगी में समस्याएं भी आते रहती हैं। आप कितने भी धनवान क्यों ना हों, आप कितने भी सामर्थ्यवान क्यों ना हों, आप कितने भी परोपकारी क्यों ना हों, समस्याओं से बच नहीं सकते। हर दिन किसी ना किसी रूप में समस्या चुनौती देते हुए खड़ी हो जाती है। कई लोग समस्याओं से घबरा जाते हैं। जिंदगी से शिकायत करने लग जाते हैं कि समस्याओं से उबरने का वह जितना ज्यादा प्रयास करते हैं उतने ज्यादा ही समस्याओं के दलदल में फंस जाते हैं। अनेक लोगों को लगता है कि उनके जीवन में एक समस्या खत्म होती नहीं है कि दूसरे समस्या खड़ी हो जाती है। ऐसे लोगों को लगता है कि समस्याओं का यह दलदल सिर्फ उनके लिए बना है। इससे जीवन में निराशा के बादल घिर आते हैं। दिलो-दिमाग में नकारात्मकता कुछ इस तरह से समा जाती है कि अच्छी चीजें भी खराब लगने लग जाती हैं। दुर्भाग्य से जब हम समस्याओं के बारे में ज्यादा सोचते हैं, तो समस्याएं और बढ़ती चली जाती हैं। इसलिए सद्गुरु और मनोवैज्ञानिक दोनों ही सलाह देते हैं कि समस्याओं का पूर्ण विश्लेषण कर लेने के बाद समाधान पर फोकस किया जाए।
जब हम समस्या पर फोकस करते हैं तो हमें समस्या ही समस्या दिखती है। वैसी स्थिति में समस्या के हर समाधान के उपरांत एक नई समस्या जो कई बार काल्पनिक भी होती है, हमें दिखाई देने लगती है। इससे असफलता की आशंका का जन्म होता है। साथ ही भय बढ़ता है । जबकि समाधान पर फोकस करने से हमें हर समस्या के कई समाधान मिलने प्रारंभ हो जाते हैं। फिर समाधानों से किसी एक समाधान का चुनाव करके हम समस्या से निजात पा सकते हैं। यदि पहले उपाय से समस्या का निदान न हो तो फिर दूसरे उपाय को प्रयोग में लाया जा सकता है। इस तरह हम समस्याओं को न सिर्फ काबू में रखना सीख लेते हैं बल्कि आने वाली समस्याओं के लिए भी बेहतर तरीके से कई प्रकार के समाधान के साथ तैयार रहते हैं।
समस्याओं का निदान जब इतना आसान है तो फिर हम समाधान पर फोकस क्यों न करें? लेकिन, वास्तविक जीवन में ऐसा होता नहीं है। समस्याओं पर बातें करते रहना आसान होता है। इसीलिए अधिकांश लोग समस्याओं पर ही बातें करते रहना पसंद करते हैं। लोगों को अपने जीवन के स्याह पक्ष को उजागर करना अच्छा लगता है। दूसरों से सहानुभूति पाने की प्रत्याशा में हम जीवन के अभावों की शिकायत करते और अपने खराब हालात को कोसते रहते हैं। इससे हमें कई लोगों की सहानुभूति मिल भी जाती है। कभी-कभी थोड़ी मदद भी मिल जाती है। लेकिन, इस प्रकार की शिकायतें करने की प्रवृत्ति के कारण हमारा मनोबल कमजोर होता है। हम समस्या के समाधान के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहते हैं। देखा यही गया है कि जो लोग समस्याओं के बारे में ज्यादा सोचते-विचारते रहते हैं, वे आत्ममुग्ध हो झूठे आनंद की प्राप्ति तो कर लेते हैं, लेकिन जीवन में पीछे रह जाते हैं। समाधान पर फोकस करने वाले लोग हर चुनौती का सामना उसी प्रकार करते हैं जैसे कुशल पशुपालक मरखंड बैल को सिंग से पकड़कर अपने वश में करता है। समस्याओं के समाधान पर फोकस करके जब हम समस्याओं का निदान ढूंढ निकालते हैं तो हमारा आत्मविश्वास बढ़ जाता है और तब हम भविष्य की समस्याओं के समाधान के लिए भी बेहतर तरीके से तैयार रहते हैं। तो फिर देर किस बात की। अपने सोचने के ढंग में थोड़ा बदलाव कीजिए। समस्याओं पर फोकस करने की जगह समाधान पर जोर दीजिए।
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