पटना। बिहार विधानसभा में शुक्रवार को हुए हंगामे के बाद बिहार का सियासी माहौल गर्म है। पूरे घटनाक्रम पर वरिष्ठ पत्रकार रवीन्द्र नाथ तिवारी के विचार…
बिहार विधानसभा के पहले सत्र के अंतिम दिन जो कुछ हुआ उससे सदन की मर्यादा तार-तार हो गई मगर इससे भी अधिक चिंता वाली बात यह है कि आने वाले समय में यह मर्यादा और भी अधिक खतरे में पड़ने वाली है। कौन है इसका जिम्मेदार ? कुछ लोग नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को दोषी बता रहे हैं तो कुछ लोग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। लेकिन मेरे विचार से इसके लिए दोनों पक्ष जिम्मेदार है। नीतीश और तेजस्वी दोनों ने मर्यादा लांघने का का काम किया है। अभी भी वक्त है सरकार और विपक्ष के लोगों के चेतने का। नहीं तो आने वाले समय में विधानसभा और भी अधिक शर्मनाक घटनाओं का गवाह बनेगी।
प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के बिगड़े बोल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आपा खोया। विधानसभा में मुख्यमंत्री का ऐसा रूप पहले कभी लोगों ने नहीं देखा था। लोग हैरत में हैं। मगर अभी सही है कि शालीन और सुसंस्कृत व्यक्तित्व की पहचान रखने वाले नीतीश कुमार यदि आगबबूला हुए भी तो इसके लिए पर्याप्त कारण थे। नेता प्रतिपक्ष ने मुख्यमंत्री पर जैसा निजी हमला किया उसकी अपेक्षा उनसे नहीं की जा सकती है। लेकिन तटस्थ व निष्पक्ष लोगों का यह कहना है कि मुख्यमंत्री को भी चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बेटे-बेटियों पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी। हालांकि मुख्यमंत्री ने इस हंगामे के बाद विधानसभा के बाहर सफाई दी कि उन्होंने मजाक में यह कहा था। किसी के बारे में नहीं कहा था। मगर यह बात भी सही है कि इस चुनाव में प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में कई जगह ऐसे बोल बोले जो उन्होंने कभी नहीं बोला था। कई जगह भाषणों में उन्हें अप्रत्याशित रूप से चिल्लाते भी देखा गया।
बदला साधने को तैयार होकर आए थे तेजस्वी
नेता प्रतिपक्ष चुनाव के दौरान अपने पर हुए हमलों का बदला साधने के लिए पूरी तैयारी के साथ विधानसभा पहुंचे थे। इसलिए हंगामा तो तय था ही। तेजस्वी मुख्यमंत्री के चुनावी भाषण में बेटे-बेटियों के संबंध में कहे गए कथन को हूबहू लिख कर लाए थे इसे पढ़कर उन्होंने सुनाया। उन्होंने शोर-शराबा कर रहे एनडीए के विधायकों को चोर और बेईमान तक कह डाला। उन्होंने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान उनके भाई-बहनों को गिनने के अलावे उन्हें कई नामों से संबोधित किया गया। बता दें कि तेजस्वी को चुनाव के दौरान ‘जंगलराज के युवराज’ के नाम से भी संबोधित किया गया था। तेजस्वी ने जब मुख्यमंत्री पर किताब के कंटेंट की चोरी और हत्या के मुकदमे का दुबारा आरोप लगाना शुरू किया तब मुख्यमंत्री आक्रोश और गुस्से में आ गए और अपनी सीट पर खड़े होकर तेजस्वी और उनके पिता लालू प्रसाद के बारे में ढेर सारी बातें कह दी। लेकिन उन्होंने इस दौरान उन्होंने भावुकता भरे अंदाज में हाथ फैला यह भी कहा- यह मेरे भाई के समान दोस्त का बेटा है इसलिए मैं कुछ नहीं बोलता हूं। चुपचाप सुनता रहता हूं। लेकिन तेजस्वी के तेवर पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। वे विधानसभा से लेकर बाहर तक लगातार मुख्यमंत्री के खिलाफ बोलते रहे। लेकिन इस दौरान लोगों ने यह भी देखा कि जब तेजस्वी अपने भाषण के दौरान यह कह रहे थे कि मैं मुख्यमंत्री को चाचा भी बोलता हूं। बड़ों का सम्मान करने का संस्कार हमारे घर में सिखाया गया है तो उस दौरान मुख्यमंत्री हंस रहे थे। सत्ता पक्ष के कई विधायकों को तेजस्वी का मजाक उड़ाते भी देखा गया।
कमजोर दिखा सत्ता पक्ष
लेकिन पूरे प्रकरण के दौरान सत्ता पक्ष के विधायक विपक्ष के सामने ढीले दिखे। विपक्ष के विधायक बेहद आक्रमक थे। सरकार और सत्ता में रहने के बाद भी एनडीए विधायकों में उत्साह और ऊर्जा नहीं दिखी जैसा कि आमतौर पर सत्तारूढ़ दलों में देखी जाती है। अलबत्ता विपक्ष के विधायक ज्यादा उत्साहित दिखे।
हालांकि एनडीए के कई विधायक भी बेल में आकर हंगामा कर रहे थे।
विधानसभा अध्यक्ष का भी ख्याल नहीं
विधानसभा अध्यक्ष की मर्यादा को मुख्यमंत्री और कुछ सदस्यों को छोड़कर किसी ने ख्याल नहीं रखा। अध्यक्ष ने कई बार नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को नसीहत दी। समझाया कि मुख्यमंत्री की ओर नहीं, आसन की ओर देखकर बोलें। उन्होंने एक बार तो चेतावनी दे डाली कि उंगली दिखा कर नहीं बोलें। यहां मैं एक बात बताना चाहता हूं कि हमारे संविधान में दोनों सदनों की अवधारणा ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स और हाउस ऑफ कॉमंस से ली गई है। ब्रिटेन में स्पीकर के बारे कहा जाता है कि स्पीकर की पोशाक की खरखड़ाहट सदन में किसी भी तरह की गड़बड़ी को शांत करने के लिए काफी होती है लेकिन कल की घटना में बिहार विधानसभा में स्पीकर के सम्मान का ज्यादातर सदस्यों ने ख्याल नहीं किया।
आगे और ना जाने क्या-क्या होगा….
विधानसभा सत्र के अंतिम दिन के हंगामे और उसके बाद पक्ष और विपक्ष के कई सदस्यों के तेवर को देखकर उसके बाद लग रहा है कि आने वाले समय में विधानसभा का सत्र इससे भी हंगामेदार होने वाला है। विधानसभा के बाहर राजद के एक विधायक धमकी दे रहे थे कि अभी तो क्या इसके आगे और भी व्यक्तिगत टिप्पणी होने वाली है। विधायक भाई वीरेंद्र मीडियाकर्मियों से बातचीत में कह रहे थे कि देखिएगा बजट सत्र में, चलने नहीं देंगे। लूट और घूसखोरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। महागठबंधन विधायकों का आरोप है कि सत्तापक्ष के विधायकों ने उत्तेजित आचरण किया जबकि एनडीए विधायकों का कहना है कि तेजस्वी को उनके लोगों ने ताजपोशी का सपना देख लिया था। सपना पूरा नहीं हुआ तो खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाला काम कर रहे हैं। तेजस्वी ने अपने भाषण में एनडीए सरकार को चोर दरवाजे से बनी सरकार बता दिया। यह स्थिति संवैधानिक संस्थाओं में विश्वास करने वाले लोगों को डरा रही है।
तेजस्वी को अपनी भूमिका पर गौर करना होगा
आगे विधानसभा हंगामेदार और अमर्यादित घटनाओं का गवाह नहीं बने इसके लिए सत्ता और विपक्ष दोनों को आपस में मिलकर पहल करनी होगी। सरकार का दायित्व है कि विपक्ष को कोई मौका नहीं दे वहीं विपक्ष खासकर तेजस्वी यादव को भी अपनी भूमिका पर एक बार फिर से गौर करने की जरूरत है। तेजस्वी के समर्थक उन्हें भावी मुख्यमंत्री के रूप में देख रहे हैं। यह कहना कोई तरफदारी नहीं होगी कि इस चुनाव ने तेजस्वी को एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित किया है। ऐसे में
उनका व्यवहार एक कुशल राजनेता की तरह होनी चाहिए। उनके पिता लालू प्रसाद यादव जब लोकसभा या विधानसभा में बोलने के लिए खड़े होते थे तो सदन में और सदन से बाहर ल टीवी पर बैठे लोग उन्हें गौर से सुनते थे। उनके रोचक अंदाज के लोग कायल थे। बोलने के दौरान उनकी दबंगई दिखती थी मगर उसके साथ उनका सहज अंदाज़ लोगों को भाता था। वे अपने भाषणों में सदन में बैठे पक्ष और विपक्ष के नेताओं के प्रति पूरी इज्जत दर्शाते थे।
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