NewsNLive की विशेष रिपोर्ट :
सभी दलों के नेता सालों भर कार्यकर्ताओं के मान सम्मान की गीत गाते हैं. उन्हें पार्टी की रीढ़ बताते हैं, राजनीतिक बैठकों व रैलियों में परिवारवाद के खिलाफ लंबा-चौड़ा भाषण देते हैं लेकिन जब चुनाव लड़ाने की बात आती है तो कार्यकर्ताओं को भूल जाते हैं और नेताओं के बेटे, बेटियों और पत्नी को टिकट थमा देते हैं. बेचारे कार्यकर्ता छाती पीट कर रह जाते हैं. अंत में कार्यकर्ता माला पहनाने और नारे लगाने भर के लिए रह जाते हैं. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में भी हर दल में वंशवाद हावी है.
पहले चरण में टिकट की जो घोषणा हुई है उसमें कई नेताओं के बेटे, बेटीयों और पत्नी उम्मीदवार बनाए गए हैं. कई नामों की अभी घोषणा होना बाकी है.
बात राजद से शुरू करें तो बांका के पूर्व सांसद जयप्रकाश यादव की बेटी दिव्या प्रकाश तारापुर से तो भाई विजय प्रकाश जमुई से उम्मीदवार बनाए गए हैं. जय प्रकाश के छोटे भाई विजय प्रकाश पहले से विधायक हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री कांति सिंह के बेटे ऋषि सिंह ओबरा से तो प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को रामगढ़ और महराजगंज (छपरा) के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के बेटे और भाई को टिकट थमाया गया है. पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी के विधायक पुत्र राहुल तिवारी को शाहपुर से दुबारा मौका दिया गया है.
राजद में पत्नियों को तवज्जो
पूर्व विधायक रणवीर यादव की पत्नी खगड़िया से, जेल में बंद राजबल्लभ यादव की पत्नी नवादा से, फरार चल रहे विधायक अरुण यादव की पत्नी भोजपुर जिले के संदेश विधानसभा से मैदान में हैं. राजद से पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद सुपौल से चुनाव लड़ने की लाइन में हैं, अभी घोषणा बाकी है। आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद को राजद ने शिवहर से उम्मीदवार बनाया है. हालांकि लवली आनंद पहले सांसद रह चुकी हैं.
कांग्रेस में भी नेता पुत्रों की भरमार
कांग्रेस में विधायक दल के नेता सदानंद सिंह ने 9 बार विधायक रहने के बाद इस बार कहलगांव सीट से अपने बेटे शुभानंद मुकेश को टिकट दिया है. इसी जिले में एआईसीसी मेंबर और पार्टी के प्रमुख नेता प्रवीण सिंह कुशवाहा उम्मीदवारी से वंचित रह गया है. कांग्रेस के पूर्व मंत्री अवधेश नारायण सिंह के बेटे डॉ शशि शेखर वारसलीगंज से चुनाव लड़ रहे हैं. इनके अलावे प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा और सांसद अखिलेश सिंह समेत कई नेताओं के बेटे भी चुनाव लड़ने वालों की लाइन में है.
जदयू और भाजपा भी पीछे नहीं
जदयू ने पूर्व मंत्री आरएन सिंह के बेटे डॉक्टर संजीव को खगड़िया जिले के परबत्ता सीट से उम्मीदवार बनाया है. इस बार आरएन सिंह नहीं लड़े तो पार्टी ने उनके बेटे पर ही विश्वास किया. पूर्व केंद्रीय मंत्री अली अशरफ फातमी के विधायक बेटे फराज फातमी दरभंगा से मैदान में हैं.
चौबे जी के बेटे के कारण टिकट की घोषणा रुकी
भागलपुर शहरी विधानसभा सीट पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत के लिए भाजपा के उम्मीदवार की अभी तक घोषणा नहीं हो पाई है. अर्जित पिछली बार चुनाव हार गए थे. उस पर पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं ने बगावत कर दिया था. विजय शाह निर्दलीय खड़ा हो गए थे जिन्हें 14,000 वोट आए थे. इसके चलते अर्जित की हार हो गई थी. इस बार भी स्थानीय कार्यकर्ता बगावत की मुद्रा में हैं. लेकिन पार्टी के कई बड़े नेता अर्जित को उम्मीदवार बनाए जाने के पक्ष में हैं. इस द्वंद में वहां अभी तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं हो पाई है.
भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्यपाल गंगा प्रसाद के विधायक बेटे डॉक्टर संजीव कुमार चौरसिया पटना के दीघा से फिर मैदान में हैं. दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की बेटी श्रेयसी सिंह को भाजपा ने जमुई से टिकट दिया है. श्रेयसी की मां पुतुल कुमारी भी बांका से सांसद रह चुकी हैं.
मंत्री की जगह उनकी पत्नी को टिकट
कटिहार जिले के प्राणपुर विधानसभा सीट से भाजपा विधायक और बिहार सरकार के मंत्री विनोद कुमार सिंह यदि चुनाव नहीं लड़ेंगे तो पार्टी उनकी पत्नी को लड़ाने की तैयारी में है. मगध क्षेत्र के प्रमुख नेता और महत्वपूर्ण पद पर आसीन समेत कई नेताओं के पुत्र और परिजन भी भाजपा के टिकट की लाइन में हैं.
यह कोई पहला चुनाव नहीं जब वंशवाद हावी है, ऐसा हर बार होता है. अक्सर धरना प्रदर्शन में आगे रहने वाले, पोस्टर चिपकाने वाले, विचार का प्रसार करने वाले कार्यकर्ता चुनाव आते ही विलुप्त कर दिए जाते हैं. पार्टी संगठन का निर्माण सत्ता के लिए होता है, तो कार्यकर्ताओं से समर्पण क्यों करवाया जाता है? मजदूर भी बाजार से लाए जा सकते हैं। विचार का जब ह्रास होना है तो बहसें क्यों होती है? यदि सत्ता का इतना ही महत्व है तो फिर संगठन और विचार की उत्पत्ति ही क्यों हुई? ये कुछ प्रश्न हैं, जो चुनाव में देखने को मिलते हैं।
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