देश दुनिया

रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत का दृष्टिकोण

  • प्रो. सुबोध कुमार झा

UNSC में रूस के वीटो लगाने के बाद रूस सुरक्षा परिषद की कार्रवाई से तो बच गया परन्तु UNGA में रूस की सैन्य कार्रवाई के खिलाफ 5 के मुकाबले 141 देशों ने निंदा प्रस्ताव पारित कर अमेरिकन वर्चस्व का संकेत तो अवश्य दे दिया जबकि भारत सहित 35 देशों ने तटस्थ रहकर अप्रत्यक्ष रूप से रूस के प्रति समर्थन का इजहार किया।
शीत युद्ध खत्म होने के उपरांत अमेरिका एक अकेला महाशक्ति के रूप में पहचानित हुआ और सोवियत संघ बीस टुकड़ों में विभक्त हुआ। यह सिर्फ और सिर्फ अमेरिकी प्रभाव के कारण ही संभव हो सका था। किसी समय उसने चीन पर परमाणु हमले की योजना भी बनाया था। दूनिया 2003 की घटनाक्रम को भूल गया जब अमेरिका सहित नाटो के सभी देशों की सम्मिलित सेना ने एक अकेला इराक पर सैन्य कार्रवाई की थी। फिर अफगानिस्तान में सैन्य कार्रवाई की। तो फिर आज जब वही काम अपना अस्तित्व बचाने के लिए रूस कर रहा है तो अमेरिका क्यों सामने आ रहा है? आप समझ सकते हैं कि यूक्रेन का नाटो का सदस्य देश बनने की महत्वकांक्षा रूस के लिए कितना खतरनाक सिद्ध होता।रूस यह कभी नहीं चाहेगा कि अपने सीमा के इर्द-गिर्द उसके दुश्मन देश की सेना का जमावड़ा हो। अतः युद्ध अवश्यंभावी था जो प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर हो रही है।अमेरिका के बहकावे में यूक्रेन आ तो गया लेकिन उसे पता नहीं था कि अमेरिका की धूर्तगिरी विश्व प्रसिद्ध है। दगा दे गया। यूक्रेन आज बेचारा बनकर रह गया है।
दरअसल शीत युद्ध के समय नेहरू, टीटो आदि ने किसी गुट में न रहने के उद्देश्य से गुटनिरपेक्ष संघ की स्थापना की जिसका रूस ने अत्यंत शालीनता से सम्मान किया। वास्तव में रूस सदियों से भारत का अभिन्न मित्र रहा है। जब जब भारत को कष्ट हुआ है रूस ने दर्द महसूस किया है और समय समय पर प्रतिकार कर दुनिया को भारत-रूस मित्रता का संदेश दिया है चाहे वह कश्मीर मुद्दे पर हो 1971 का युद्ध हो सबमें रूस ने वीटो लगाकर अपनी मित्रभाव को दर्शाया है। इसलिए आज भारत को निश्चित रूप से रूस के साथ दोस्ती निभाने की आवश्यकता है।अभी तक हमारे वर्तमान माननीय प्रधानमंत्री तत्कालीन समकक्ष नेहरू जी की वही गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाए हुए हैं।परन्तु इसमें भी कुछ दुविधा आ गई है।जिस प्रकार कि चीन और पाकिस्तान रूस के निकट आने का प्रयास कर रहा है इससे एक अलग समीकरण बनता नजर आ रहा है जो भारत की दृष्टिकोण से सही नहीं है क्योंकि भविष्य की बात यदि छोड़ दें तो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ये दोनों पड़ोसी देश सुरक्षा के लिहाज से भारत के लिए खतरा है।पिछले कुछ दिनों पहले मियाँ इमरान का रूसी राष्ट्राध्यक्ष पुतिन से मिलना और स्वदेश आकर लम्बी लम्बी हांकना जैसी गतिविधियों से नियत कुछ ठीक नहीं लगता है।यह बात अलग है कि भारत की शर्त पर पाकिस्तान रूस से कुछ हासिल नहीं कर सका बल्कि उल्टे दुनियाभर में अपनी किरकिरी करा गया। विश्व पाकिस्तान की चापलूसी को समझ रहा है। फिर भी भारत की पैनी नजर आगे की रणनीति पर अवश्य होगी। पर इतना अवश्य है कि दुनियाभर की निगाहें भारत की ओर है क्योंकि भारतीय तिरंगा उन देशों में शरणार्थियों के लिए आज जिस प्रकार एक वीजा पासपोर्ट की तरह काम कर रहा है इससे यह प्रतीत हो रहा है कि दुनिया में भारत का मान बढ़ा है।शायद भारत बदल रहा है।
यह बात सत्य है कि युद्ध कभी भी समाधान लेकर नहीं आता है। इसके गर्भ में एक और युद्ध की पटकथा लिखी होती है। नफरत की दीवार जल्दी ढ़हती नहीं। दरारें भरने में समय लगता है। जैसे अमेरिका ने 76 साल पहले 6 अगस्त 1945 को जापान के शहर हिरोशिमा पर दुनिया का पहला परमाणु बम गिराया था और फिर इसके ठीक तीन दिन बाद दूसरे शहर नागासाकी पर। दोनों शहर पूरी तरह से बर्बाद हो गए। लगभग डेढ लाख लोगों की जान चली गई और जो बच गए वो अपंग हो गए। शायद यह जापान भूल गया और आज कहीं न कहीं अमेरिका के साथ खड़ा नजर आ रहा है। निश्चित रूप से आज स्वार्थपरक दुनियाँ ने इसे भूला दिया ।दरारें भर गईं परन्तु पीड़ित परिवार आज भी अमेरिकन कुकृत्य को कदापि भूल नहीं पाएगा।
युद्ध का परिणाम जो हो परन्तु इसका दुष्प्रभाव सम्पूर्ण दुनिया पर पड़ेगा और इससे भारत भी अछूता नहीं रहेगा।तेल की कमी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा। संभव है भारत को महंगाई की मार झेलनी पड़ जाए। स्वाभाविक है इसका सम्पूर्ण ठिकरा वर्तमान प्रधानमंत्री मोदीजी पर ही फोड़ा जाएगा।

Dr Rishikesh

Editor - Bharat Varta (National Monthly Magazine & Web Media Network)

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