
बिहार के सहरसा जिला के महिषी प्रखंड के महिषी गांव में सहरसा स्टेशन से करीब 18 किमी. की दूरी पर देवी भगवती का ऐसा अनूठा धाम है जिसकी प्रसिद्धि उग्रतारा शक्तिपीठ के नाम से है। राज्य का एकमात्र तारापीठ होने के कारण इसका विशेष महात्म्य है जहां बिहार, बंगाल और झारखंड राज्यों से ही नहीं, वरन् नेपाल से भी श्रद्धालुगण पूजन-आराधन के लिये आते हैं। कष्ट-क्लेषों को दूर कर भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करनेवाली देवी के बारे में ऐसी मान्यता है कि ‘उग्र’ व्याधियों से मुक्ति दिलाने के कारण इनको उग्रतारा का नाम दिया गया है।
महिषी के उग्रतारा स्थान की गणना 51 शक्तिपीठों में होती है। ‘शक्तिपुराण’ के अनुसार महामाया सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपने पति शिव के तिरस्कार के कारण आहूति में कूदकर प्राण त्याग दिये, तो भगवान शिव उनके शव को कंधे पर लेकर उन्मत्त होकर विचरण करने लगे। तब ब्रम्हांड के नियमों के रक्षार्थ देवों के परामर्श पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शव को खंडित कर डाला जिसके टुकड़े 51 स्थानों पर गिरे, कालांतर में जिनकी प्रसिद्धि 51 शक्तिपीठों में हुई। महिषी (सहरसा) में देवी के बायां नेत्र गिरने के कारण यह उग्रतारा कहलाया। उग्रतारा के नामकरण के बारे में एक मान्यता यह भी है कि देवी के प्रथम साधक महर्षि वशिष्ठ ने अपने उग्र तप की बदौलत देवी को प्रसन्न किया था, इस कारण ये उग्रतारा के नाम से जानी जाती हैं।
सर्वविदित है कि महिषी उग्रतारा पीठ की मान्यता तंत्र साधना के एक प्रमुख केंद्र के रूप में है। यहां भगवती तीन रुपों में विद्यमान हैं – उग्रतारा, नील सरस्वती तथा एकजटा भवानी। यहां मुख्य मंदिर में देवी उग्रतारा के काले पाषाण से निर्मित अलंकृत विग्रह के अगल-बगल नील सरस्वती तथ एकजटा भवानी की मूर्तियां विद्यमान हैं। मान्यतानुसार बिना उग्रतारा के आदेश के तंत्र सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती है। इस कारण यहां सामान्य भक्तों के अलावा तंत्र साधकों का जमावड़ा लगा रहता है, जिनकी संख्या नवरात्रि के दिनों में विशेष रूप अष्टमी की तिथि को विशेष रहती है। ऐसे तो देवी की पूजा आम दिनों में वैदिक रीति से की जाती है, किंतु नवरात्र में तांत्रिक विधि से इनका पूजन विधान होता है।
बौद्ध मान्यताओं में देवी तारा को काली का बौद्ध रूप माना जाता है जो कि तारा-पंथ के तांत्रिक वज्रयान अभ्यास का एक अंग है। विदित हो कि निकटवर्ती भागलपुर के कहलगांव में स्थित विक्रमशिला बौद्ध महाविहार तंत्र-मंत्र की साधना की वज्रयान-शाखा का एक प्रमुख केंद्र था।
जिस तरह देवी यहां अपने तीन रुपों में विराजमान हैं, उसी तरह भक्तों की ऐसी आस्था कि ये दिनभर में तीन भावों में दर्शित होती हैं – सुबह में अलसायी, दोपहर में रौद्र व संध्या में सौम्य।
नानाविध की महिमाओं से मंडित भगवती उग्रतारा के मंदिर का निर्माण 1735 ई. में रानी पद्मावती ने किया था। महिषी की गरिमामयी भूमि के साथ मंडन मिश्र तथा उनकी विदुषी पत्नी भारती के भी नाम जुड़े हुए हैं जिन्होंने आदि शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किये थे।
ऐसे तो उग्रतारा शक्तिपीठ में सालो भर भक्तों का आवागमन लगा रहता है तथा रामनवमी व शिवरात्रि में मेले लगते हैं, पर नवरात्र के दिनों की रौनक ही अलग होती है। इस अवसर पर यहां बिहार सरकार द्वारा ‘उग्रतारा महोत्सव’ का आयोजन भी किया जाता है।
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