माता ढाकेश्वरी के नाम पर बांग्लादेश की राजधानी का नाम ढाका
NEWSNLIVE DESK:
भारत का बंटवारा जब हुआ था तब भारतीय हिन्दुओं ने अपने कई तीर्थ स्थल, शक्तिपीठ और प्राचीन मंदिरों को खो दिया। वर्तमान में उनमें से बहुतों का अस्तित्व मिटा दिया गया और जो बच गए हैं वे भी अपनी अस्तित्व के मिट जाने के मुहाने पर है। आओ जानते हैं पूर्व में कभी भारत के हिस्से रहे पूर्वी बंगाल में स्थित माता के पांच शक्तिपीठों के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
1.श्रीशैल- महालक्ष्मी
बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के उत्तर-पूर्व में जैनपुर गांव के पास शैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। इसकी शक्ति है महालक्ष्मी और भैरव को शम्बरानंद कहते हैं।
2.करतोयातट- अपर्णा
बांग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर भवानीपुर गांव के पार करतोया तट स्थान पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी। इसकी शक्ति है अर्पण और भैरव को वामन कहते हैं।
3.यशोर- यशोरेश्वरी
बांग्लादेश के खुलना जिला के ईश्वरीपुर के यशोर स्थान पर माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे। इसकी शक्ति है यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड कहते हैं।
4.चट्टल- भवानी
बांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगांव) जिला के सीताकुंड स्टेशन के निकट चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दायीं भुजा गिरी थी। इसकी शक्ति भवानी है और भैरव को चंद्रशेखर कहते हैं।
5.जयंती- जयंती
बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के जयंतीया परगना के भोरभोग गांव कालाजोर के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर जहां माता की बायीं जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति है जयंती और भैरव को क्रमदीश्वर कहते हैं।
6 ढाकेश्वरी मन्दिर ढाका नगर का सबसे महत्वपूर्ण मन्दिर है। इन्हीं ढाकेश्वरी देवी के नाम पर ही ढाका का नामकरण हुआ है। भारत के विभाजन से पहले तक ढाकेश्वरी देवी मन्दिर सम्पूर्ण भारत के शक्तिपूजक समाज के लिए आस्था का बहुत बड़ा केन्द्र था। 12वीं शताब्दी में सेन राजवंश के बल्लाल सेन ने ढाकेश्वरी देवी मन्दिर का निर्माण करवाया था। ढाकेश्वरी पीठ की गिनती शक्तिपीठ में की जाती है क्योंकि यहां पर सती के आभूषण गिरे थे।
ढाका में बजता है मां ढाकेश्वरी का डंका, तोड़ा था पाकिस्तान का गुरूर
दक्षिणेश्वर के काली मंदिर की तरह ही यह भी एक सिद्ध व चमत्कारी शक्तिपीठ है। इस मंदिर में मां ढाकेश्वरी विराजमान हैं।
भारत भूमि के कण-कण में मां भगवती का निवास है। भारत के विभिन्न गांव-शहरों में मां के अनेक मंदिर हैं। पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों में नवरात्र के दौरान की जाने वाली दुर्गापूजा तो विश्व-प्रसिद्ध है।
किसी समय मां भगवती का एक प्राचीन मंदिर इस क्षेत्र का बड़ा तीर्थ था। आज यह बांग्लादेश में स्थित है। दक्षिणेश्वर के काली मंदिर की तरह ही यह भी एक सिद्ध व चमत्कारी शक्तिपीठ है। इस मंदिर में मां ढाकेश्वरी विराजमान हैं।
मान्यता है कि मां ढाकेश्वरी के नाम पर ही बांग्लादेश की राजधानी का नाम ढाका है। 1947 से पहले यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते थे। तब यह अखंड भारत का एक महत्वपूर्ण भाग था।
विभाजन के बाद यह पाकिस्तान में चला गया था। 1971 में बांग्लादेश निर्माण के बाद यह इस इलाके में रहने वाले हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया है।
कब हुआ मंदिर का निर्माण
इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में सेन राजवंश के राजा बल्लाल सेन ने करवाया था। माना जाता है कि यहां देवी सती के आभूषण गिरे थे।
अलग राष्ट्र बनने के बाद इस मंदिर को भी अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन माता के प्रताप से यह आज भी बरकरार है और लाखों लोगों की आस्था इससे जुड़ी है।
पाकिस्तान को दी थी शिकस्त
1971 की लड़ाई में पाकिस्तान की सेना ने इस मंदिर को नुकसान पहुंचाया था। सेना ने इस पवित्र स्थान को शस्त्रागार बना लिया और यहां की परंपराओं का पालन नहीं किया।
श्रद्धालुओं की मान्यता है कि माता के प्रकोप से पाकिस्तान को युद्ध में शिकस्त मिली। आज भी मां ढाकेश्वरी को नमन करने श्रद्धालु आते हैं और मां भी उनकी मनोकामना पूर्ण करती हैं।
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