राज्य विशेष

तेलियागढ़ी : पर्यटन केंद्र बनने की राह ताक रहा गेट वे ऑफ़ बंगाल उपेक्षा के कारण बदहाल, पत्थर खनन के कारण अस्तित्व पर खतरा

झारखंड में विश्व स्तरीय पर्यटन श्रृंखला-5

मेगास्थनीज, ह्वेनसांग, और बुकानन ने भी की है चर्चा
रांची से प्रियरंजन

रांची : राजमहल पहाड़ियों की वादियों में स्थित तेलियागढ़ी किला का भग्नावशेष . राष्ट्रीय स्तर के पर्यटन केंद्र बनने की संभावना रखने वाला ऐतिहासिक धरोहर. भागलपुर- साहिबगंज रेलखंड के किनारे साहिबगंज जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर स्थित है यह ऐतिहासिक धरोहर.
मध्यकालीन इतिहास में यह गेट वे ऑफ़ बंगाल और की ऑफ बंगाल के नाम से मशहूर था . अब यह गेट वे झारखंड भी कहलाता है क्योंकि यह बिहार और झारखंड की सीमा पर स्थित है.
इस किला का निर्माण गंगा नदी के पश्चिमी तट पर एक तेली राजा द्वारा किया गया था। इस स्थल का वर्णन मेगास्थनीज की इंडिका में भी हुआ है। मेगास्थनीज यूनानी शासक सेल्यूकस का दूत बनकर चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था। उसने गंगा नदी के किनारे काले पत्थर से निर्मित बौद्ध विहार का वर्णन किया था। यह विहार आगे चलकर तेलियागढ़ी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बाद में ह्वेनसांग, सोलहवीं सदी में ईरानी यात्री अब्दुल लतीफ तथा अठारहवीं सदी में फ्रांसिस बुकानन ने भी इसका वर्णन किया है।
तेलियागढ़ी का ऐतिहासिक महत्व है। बख्तियार खिलजी और सेन वंश का लक्ष्मण सेन का युद्ध यहीं हुआ था। इस युद्ध में लक्ष्मण सेन पराजित हो गया था। बाद में हुमायूँ के काल में शेरशाह ने इस पर अधिकार स्थापित कर लिया था। अकबर ने जब मानसिंह को बंगाल एवं बिहार का सूबेदार नियुक्ति कर दिया था तब मानसिंह ने इस किला पर अधिकार कर लिया था। दो दशक पहले किले के आसपास पत्थर खुदाई के दौरान गुलाम वंश के शासक बलवन काल के सिक्के मिले थे.


जर्जर हाल में भग्नावशेष
कहने को यह भग्नावशेष पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है मगर यह पूरी तरह असुरक्षित और खतरे में है. देखरेख के अभाव में यह टूट फूट रहा है. इसके आसपास अवैध पत्थर खनन हो रहा है. इससे ऐतिहासिक धरोहर का अस्तित्व खतरे में है.

रक्सी स्थान आते कई राज्यों के लोग
तेलियागढ़ी किले के बगल में देवी रक्सी स्थान है. यहां बिहार, झारखंड और दूसरे कई राज्यों से श्रद्धालु पूजा करने आते हैं. अंग्रेज और मुगलकालीन लेखकों ने किस देवी की चर्चा वन देवी के रूप में की है.

डॉ सुरेंद्र

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