Bharat Varta Desk : धर्म में प्रकृति के संरक्षण तथा उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए प्राकृतिक तत्वों की पूजा करने की परंपरा है। इसी क्रम में वृक्षों की पूजा का विशेष विधान है, उनमें देवताओं का वास माना गया है। वट वृक्ष या बरगद का पेड़ का हिंदू धर्म में विशिष्ट माना गया है, इसमें त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है। कई व्रत और त्योहार में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है, इसमें से वट सावित्री या बरगदाई की पूजा प्रमुख है।
वट वृक्ष का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, वट वृक्ष या बरगद के पेड़ के तने में भगवान विष्णु, जड़ में ब्रह्मा तथा शाखाओं में शिव का वास होता है। वट वृक्ष को त्रिमूर्ति का प्रतीक माना गया है। विशाल एवं दीर्घजीवी होने के कारण वट वृक्ष की पूजा लम्बी आयु की कामना के लिए की जाती है। मान्यता है कि भगवान शिव वट वृक्ष के नीचे ही तपस्या करते हैं तथा तथागत भगवान बुद्ध को भी बरगद के पेड़ के नीचे ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः बौद्ध धर्म में इसे बोधि वृक्ष कहा गया है।
पौराणिक मान्यता वाले विशिष्ट वट वृक्ष
सनातन हिंदू परंम्परा में चार वट वृक्षों का विशिष्ट स्थान हैं, अक्षय वट, वंशीवट, गयावट और सिद्ध वट। इनकी प्राचीनता के विषय में स्पष्टतौर पर कुछ ज्ञात नहीं है, परन्तु इनका वर्णन पुराणों में मिलता है। अतः ये हिंदू आस्था के प्रतीक हैं। इनमें से अक्षय वट प्रयागराज में संगम के किनारे अवस्थित है, मान्यता है कि प्रलय काल में स्वयं श्री हरि विष्णु इसकी शरण लेते हैं क्योकि अक्षय अर्थात् कभी समाप्त न होने वाला अक्षय वट प्रलय काल में भी समाप्त नहीं होता है। इसका उल्लेख पद्म पुराण तथा भविष्य पुराण में मिलता है।
वट सावित्री या बरगदाई की पूजा
वट सावित्री या बरगदायी की पूजा में विशेष तौर पर बरगद के पेड़ की ही पूजा की जाती है। मान्यता है कि बरगद के पेड़ के नीचे ही सावित्री ने अपने पति सत्यावान को पुनर्जीवित किया था। तब से सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री के दिन बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। इसी पूजा को देश के कुछ भाग में बरगदाई भी कहा जाता है।
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