दीपावली के द्वितीय दिवस कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है। इस दिन अन्न कूट, मार्गपाली आदि उत्सव भी सम्पन्न होते हैं।इस वर्ष दूसरे पूरे दिन अमावस्या होने तथा सूर्यग्रहण होने के कारण एक दिन का अंतर के साथ आज बुधवार 26 अक्टूबर 2022 को गोधन का अल्पना बनाकर पूजन किया जायेगा तथा इसकी कुटाई, श्रापन दिनांक 27 अक्टूबर गुरुवार को भैयादूज चित्रगुप्त पूजा दवातपुजा यमद्वितीया के रूप में मनाया जाएगा। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई। दिवाली की अगली सुबह गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा भी की जाती है। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है।
गावो में अग्रजः सन्तु गावो में सन्तु पृष्ठतः ।
गावो में हृदय सन्तु गवाम मध्ये वसाम्यहं।। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं।दीपावली के बाद होने वाली गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। इस पूजन में घर के दरवाजे पर गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की अल्पना बनाकर उनका पूजन करते हैं। इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है छप्पन प्रकार के भोग भी लगते है।ग्रामीण क्षेत्रों में गाय बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला चन्दन नवीन रस्सी लगाकर उनका पूजन किया जाता है। हल चलना वर्जित है । गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है। गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल रोली, चावल, फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है । गोवर्धन पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। उससे पूर्व ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी।लेकिन भगवान कृष्ण ने गोकुल वासियों को तर्क दिया कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता। वर्षा करना उनका कार्य है और वह सिर्फ अपना कार्य करते हैं ।जबकि गोवर्धन पर्वत गौ.धन का संवर्धन एवं संरक्षण करता है। जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए। इसके बाद इंद्र ने ब्रजवासियों को भारी वर्षा से डराने का प्रयास किया।लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों को उनके कोप से बचा लिया। इसके बाद से ही इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का विधान शुरू हो गया है। यह परंपरा आज भी जारी है।भगवान कृष्ण का इंद्र के मानमर्दन के पीछे उद्देश्य था कि ब्रजवासी गौधन एवं पर्यावरण के महत्व को समझें और उनकी रक्षा करें। आज भी हमारे जीवन में गायों का विशेष महत्व है। आज भी गायों के द्वारा दिया जाने वाला दुग्ध हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पञ्चगव्य से शरीरस्थ समस्त विकार क्षण मात्र में भस्म को जाता है रोगव्याधि का समन होता है जैसे आग में ईंधन भस्म होता है,गोवर्धन पर्वत की पूजा गोवर्द्धनधारी श्री कृष्ण की पूजा गोधन पूजा पशुधन पर्यावरण की रक्षा के लिये श्रेष्ठतम अभिधान पूर्वक सत्य संकल्प की अवधारणा है।
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