धर्म/अघ्यात्म

गीता जयंती 26 को, पढ़िए इस्कॉन के ब्रम्हचारी ईश्वर नाम दास के विचार

इस महीने की 26 तारीख को श्रीमद्भागवत गीता जयंती है. इस्कॉन की ओर से गीता के प्रचार-प्रसार के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है. इस्कॉन के संतों का कहना है कि गीता में जीवन के हर समस्या का समाधान निहित है. गीता के संदेशों के अनुसार चलने से ही व्यक्ति, परिवार, समाज देश और विश्व में सुख और शांति का आना संभव है. इसलिए हर व्यक्ति के लिए जरूरी है कि गीता का अध्ययन, चिंतन और मनन करें. यह तभी संभव है जब हर भारतीय यह संकल्प ले कि उपहार में वह सिर्फ और सिर्फ गीता देगा और लेगा. यहां प्रस्तुत है भारतीय रेल के अधिकारी की नौकरी छोड़ इस्कॉन में सन्यासी बनें ईश्वर नाम दास का लेख….

जिस दिन भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया दिया था उसी के उपलक्ष्य में गीता जयंती मनाई जाती है. गीता हर वर्ग कि लिए है. यह मानव जीवन का मैन्यूअल है. कोरोना काल के वर्तमान दौर में जब सारी दुनिया हर तरह की बेचैनी की समस्या से गुजर रही है, गीता का अध्ययन हर व्यक्ति के लिए जरूरी हो गया है. हर तरह की शांति के लिए इसमें बेहतर उपाय बताए गए हैं. इसमें भगवान श्री कृष्ण के दिव्य वचन है. युवा से लेकर बुजुर्गों तक के लिए, मेहनत – मजदूरी करने वालों से लेकर उच्च पद पर आसीन लोगों के लिए गीता प्रासंगिक है.

समाज मे व्यभिचार बढ़ रहा है. इसका उत्तर तीसरे और चौथे अध्याय में है. युवा वर्ग के भटकाव को रोकने के लिए गीता में समाधान बताए गए हैं.

गीता को धर्म-अध्यात्म समझाने वाला अमोल काव्य कहा जा सकता है. सभी शास्त्रों का सार एक जगह कहीं यदि इकट्ठा मिलता हो, तो वह है- गीता. गीता रूपी ज्ञान-गंगोत्री में स्नान कर अज्ञानी सद्ज्ञान को प्राप्त करता है. पापी पाप-ताप से मुक्त होकर संसार सागर को पार कर जाता है.

गीता मां भी
गीता को मां भी कहा गया है. यह इसलिए कि जिस प्रकार मां अपने बच्चों को प्यार-दुलार देती और सुधार करते हुए महानता के शिखर पर आरूढ़ होने का रास्ता दिखाती है, उसी तरह गीता भी अपना गान करने वाले भक्तों को सुशीतल शांति प्रदान करती है. यह मनुष्यों को सद्शिक्षा देती और उन्हें लक्ष्य की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा प्रदान करती है. गीता का गान करते-करते मनुष्य उस भावलोक में प्रवेश कर जाता है, जहां उसे अलौकिक ज्ञान-प्रकाश, अपरिमित आनन्द प्राप्त होता है।
हो भी न कैसे? यह स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण के मुख-कमल से ही निःसृत हुई है. कहा भी गया है- “गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः! या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिसृतः!!”

महान बनने के लिए पढ़ना जरूरी

गीता का जितना स्वाध्याय किया जाए, उतना ही ही जीवन को महान बनाने के नए-नए सूत्र हाथ लगते हैं. मनुष्य को संपूर्ण बनाने के लिए जो भी तत्त्व आवश्यक है, वह सब गीता में है. भगवान् श्रीकृष्ण ने उस महान ज्ञान-तत्त्व रूपी दुग्ध को उपनिष रूपी गायों से दोहन करके निकाला है, जिसे गीतामृत कहा गया है- “सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः! पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्!!”

दुखों को हरने में कामधेनु जैसी
गीता सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान कर सभी दुःखों को हरने वाली कामधेनु जैसी है. संत विनोबा भावे कहते थे- हर कष्ट, हर दुःख के लिए गीता की शरण में जाओ. महात्मा गांधी कहते थे- जब मुझे समस्याएं सताती हैं, तो मैं गीता माता की गोद में चला जाता हूं. जहां मुझे सारी समस्याओं का समाधान मिल जाते हैं.

दूसरे संप्रदायों के लिए भी
इस प्रकार गीता हिन्दू ही नहीं, अन्यान्य संप्रदाय के लिए भी माता के समान है, जो अपनी शरण में आए हुए हर पुत्र की समस्याओं का समाधान करती है. माता सर्वापरि होती है- गुरु से भी ऊपर. इसी कारण शपथ भी ली जाती है तो गीता के ऊपर हाथ रखकर. अदालत के लिए सद्ग्रन्थों की कमी नहीं है, पर गीता तो गीता है, वह माता है, सबकी माता. वह न कोई शास्त्र है, न ग्रन्थ है. वह तो सबको छाया देने वाली, ज्ञान का प्रकाश देने वाली माता है.

उपहार में गीता ही दें
इस अवसर पर हम सबको प्रार्थना करते हैं की अपने लिए भी एक गीत की पुस्तक लें ओर अगर आप नए साल, शादी या किसी दूसरे किसी भी कार्यक्रम में उपहार देने की सोच रहे है तो श्रीमद्भागवत गीता ही दें.

लेखक- ईश्वर नाम दास
ब्रह्मचारी – इस्कॉन भागलपुर

Dr Rishikesh

Editor - Bharat Varta (National Monthly Magazine & Web Media Network)

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