कल है चित्रगुप्त पूजा, जानिए मनकेश्वर नाथ तिवारी से पूजा का महत्व….
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भ्रातृद्वितिया गोधनकूट, चित्रगुप्त पूजा : कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमद्वितीया गोधनकुटना माताएं बहनों द्वारा आपने भाई के लिये श्रापन आशीर्वाद देवोत्थान तथा चित्रांश परिवार के लिये महत्वपूर्ण होता है। देश विदेश में रहने वाले समस्त चित्रांश परिवार भगवान चित्रगुप्त की पूजा समर्पित होकर करते है। यह समस्त कृत्य 06 नवम्बर शनिवार को करेंगे।
चित्रगुप्त पूजा
देवराज इंद्र के सभा मे भगवान चित्रगुप्त महाराज ब्रह्मांड के समस्त चराचर समस्तयोनियो का पल पल अहर्निश कृत्याकृत पाप पुण्य का लेखा संधारण करते रहते है।इनके पूजा के बिना कोई भी कार्य सिद्ध नही होता है। सभी धार्मिक इनका पूजा करते है।नवग्रह के अधिदेवता केतु के दाहिने भाग में स्थान निहित है परन्तु विशेष रूप से चित्रांश चित्रगुप्त परिवार यमद्वितीया को पूजन अवश्य करते है तथा कथा श्रवण के अपने आय व्यय का लेखा भी समर्पित करते है।
चित्रगुप्त पूजा का मुहूर्त
राहुकाल पूर्वाह्न 08:51 से 10:51 तक छोड़ कर पूरे दिन।
श्रीचित्रगुप्तपूजन वैदिकमंत्र
ॐ चित्रवसो स्वस्ति ते पारमशीय।
पौराणिक मंन्त्र
धर्मराजसभासंस्थम कृताकृत विवेकिनम। आवाहये चित्रगुप्तम लेखनीपत्र हस्तकम।।
ॐ भूर्भुवः स्व: चित्रगुप्ताय नमः
भ्रातृद्वितिया भैयादूज
भाई बहनों का विशिष्ट पर्व जो यम यातना से संकट से बचाता है अटूट प्रेम कारक है ।इस दिन बहनों के हाथ से मिठाई बजड़ी एवम भोजन करना चाहिये तथा उन्हें उपहार वस्त्र आभूषण इत्यादि समर्पित करना श्रेयष्कर होता है।
गोधन कूटने का शुभ मुहूर्त शनिवार 6 नवम्बर को निम्नवत है।
प्रातः 6:45 से 8:50 तक
पूर्वाह्न10:12 से 11 :51 तक गोधन कूटने का मुहूर्त है
पूर्वाह्न 8:51से 10:11बजे तक
राहु काल के कारण वर्जित है
गोधन कुट कर मांगलिक शुभ कार्य आरंभ हो जाता है। आज के दिन से ही कुँवारी कन्याओं के पिता उनके सुयोग्य वर चयन हेतु निकलते हैं तथा विवाह सुनिश्चित करण होता है। समस्त मांगलिक कार्यो का शुभारंभ भी गोधन कूटने के उपरांत ही होता है।
गोधन की कथा
गोधन एक असुर था जिसने यमुना नदी पर गोवर्धन पूजन में आये गोप गोपियों को घेर लिया और उन सबको अपनी व्याहता बनाने के के लिए उनके भाइयों को बोला जिससे उसके बल से डर कर भाइयों ने उसकी दासता स्वीकार कर ली उन सब ने विरोध किया लेकिन उस दैत्य के डर से वे उनकी बात मान गए। दैत्य को इस बात का सहज विश्वास नहीं हुआ तो उसने उन गोपियों से कहा कि तुम लोग अपने भाइयों को खूब श्राप दो इन्होंने तुम सबको हमें दे दिया है। गोधन दैत्य के कहे अनुसार गोपियों ने भटकोईया, भँडभाँड आदि बनस्पतियाँ इकट्ठा किया तथा एकत्रित होकर अपने भाइयों को श्राप दिया। और उन्होंने एक साथ मिलकर गोधन नामक दैत्य को खूब कूटा। इतना कूटा कि वो अधमरा हो गया। मृत्यु की अंतिम अवस्था में अपने को बचाने के लिए श्री कृष्ण को पुकारने लगा तब श्री कृष्ण भगवान आए और उन्होंने गोधन की अंतिम इच्छा जाननी चाही तो गोधन ने कहा कि अंत समय मे आपके दर्शन से मेरा मोक्ष हो जाये, मैंने किसी भी नारी का स्पर्श नही किया हूँ ये सब पवित्र हैं। मैं कुँवारा ही मर रहा हूँ। मेरा किसी स्त्री से कोई संपर्क नहीं रहा, इसलिए स्त्री लोभ का मैंने ये घृणित कर्म किया और इस अवस्था को प्राप्त हुआ।
कृष्ण ने कहा की तुम परेशान न हो, तुम्हारी मृत्यु उपरांत तुम्हारी पूजा होगी। महिलाएं कन्याएँ तुम्हारी निर्वस्त्र प्रतिमा बनाकर तुम्हें मूसल से कूटकर अपने भाइयों को दिए हुए श्राप का पश्चाताप करेंगी और तुम्हें भी तब कन्याओं का साहचर्य मिलेगा। और गोबर से बने तुम्हारे शरीर के कूटे हुए हिस्सों का गोल पिंड बनाकर लोग अनाज के ढेर में रखेंगे। और श्री कृष्ण ने सभी गोपियों से भाइयों को दिए गए शाप वापस लेकर भाइयों को बहुत सारा आशीर्वाद दिया।
मातृ शक्तियॉ युवतियाँ गोधन को कूटने के बाद जल का अर्घ्य देकर अपने भाई के लिये आशीर्वाद अशीष गीत गायन करती है।
यम एवम यमुना की पूजा भैयादूज के दिन यमराज तथा यमुना जी के पूजन का विशेष महत्व है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन ही यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर बुलाकर सत्कार करके भोजन कराया था। इसीलिए, इस त्योहार को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। यमराज ने प्रसन्न होकर यमुना को वर दिया था कि जो व्यक्ति इस दिन यमुना में स्नान करके यम का पूजन करेगा, मृत्यु के बाद उसे यमलोक में नहीं जाना पड़ेगा।
भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज एवम यमुना का जन्म हुआ , यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहे। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।
यमुना ने कहा कि भद्रे! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके चन्दन टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की सिधारे। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं होता है।
आचार्य मंकेश्वर नाथ तिवारी मोबाईल 8210379212