करें आज कालरात्रि की पूजा, जाने आचार्य मंकेश्वर नाथ तिवारी से…..

0

Bharat varta desk: आज सप्तमी मंगलबार 12 अक्टूबर को देवी दर्शन से अमोघ फल की प्राप्ति होती है। आज के दिन क्रोध पर नियंत्रण रखें भूल कर भी किसी मातृ शक्तिओ का अपमान नही हो, कुमारी कन्याओ माताओं बहनों सभी के प्रति आदर सम्मान सत्संस्कार युक्त प्रेम भी विशिष्ट प्रत्यक्ष पूजा है। नवरात्र के सप्तमी तिथि को कालरात्री का पूजन से शत्रुओं का समन दमन शीघ्र होता है।जयत्वम देवी चामुण्डे जयभूता र्तिहारिणी,जय सर्व गते देवी कालरात्रि नमोस्तुते।आदिशक्ति के सातवें रूप को कालरात्रि के नाम से जाना जाता है । नवरात्र की सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की उपासना का विधान है। ब्रह्म देव जी ने मधु कैटभ नामक महापराक्रमी असुरों से अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए योगनिद्रा में लीन श्री भगवान (विष्णु) को निंद्रा से चेतन करने का प्रयास किया अतः ब्रह्म देव ने श्री भगवान को योगनिद्रा से जगाने के लिए कालरात्रि मंत्र से देवी की स्तुति की थी। कालरात्रि ही महामाया हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा भी यही हैं। देवी कालरात्रि ने ही सृष्टि को एक दूसरे से जोड़ रखा है। कालरात्रि शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- काल + रात्रि। काल का अर्थ है कालिमा यां मृत्यु, रात्रि का अर्थ है निशा, रात और अस्त हो जाना। अतः कालरात्रि का अर्थ हुआ काली रात जैसा अथवा काल का अस्त होना। अतः देवी कालरात्रि का वर्ण अंधकार की भांति कालिमा लिए हुए है।शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयंकारी है, देवी कालरात्रि का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है। मां कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाली होती हैं , इस कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। देवी कालरात्रि का रंग काजल के समान काले रंग का है जो अमावस की रात्रि से भी अधिक काला है इनका वर्ण अंधकार की भांति कालिमा लिए हुए है। देवी कालरात्रि का रंग काला होने पर भी कांतिमय और अद्भुत दिखाई देता है। शास्त्रों में देवी कालरात्रि को त्रिनेत्री कहा गया है अतः इनके तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल हैं, जिनमें से बिजली की भांति किरणें प्रज्वलित हो रही हैं तथा देवी अपने भक्तों पर अनुकम्पा की दृष्टि रख रही हैं। इनके बाल खुले और बिखरे हुए हैं जो की हवा में लहरा रहे हैं। कंठ में विद्युत की चमक वाली माला है। इनकी नासिका से श्वास तथा निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। शास्त्रों में इन्हें चतुर्भुजी अतः इनकी चार भुजाएं हैं दायीं ओर की उपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। बायीं भुजा में क्रमश: तलवार और खड्ग धारण किया है। शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि गर्दभ पर विराजमान हैं। देवी कालरात्रि का विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है अत: देवी को शुभंकरी भी कहा है। मां कालरात्रि कि साधना का संबंध वास्तुपुरुष सिद्धांत के अनुसार शनि ग्रह से है , इनकी दिशा पश्चिम है, निवास में बने वो स्थान जहां पर बैडरूम, जंक स्टोर रूम, फ़ूड स्टोररूम हो अथवा जिन व्यक्तियों का घर पश्चिम मुखी हो अथवा जिनके घर पर पश्चिम दिशा में वास्तु दोष आ रहे हो उन्हें मां कालरात्रि की आराधना सर्वश्रेष्ठ फल प्राप्त होता है।ककारादि काली सहस्त्र नाम ,कर्पूरकाली स्तवन ,कालिका कवच, कालरात्रि स्तवन अपराजिता महामन्त्र , तंत्र मंन्त्र यंत्र की जागृति विशेष रूप से लाभप्रद है।

आचार्य मंकेश्वर नाथ तिवारी मोबाईल नम्बर 8210379212

About Post Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x