शिव शंकर सिंह पारिजात
भागलपुर जिला के शाहकुंड प्रखंड में हाल में मिली साढ़े छह फीट ऊंची प्राचीन प्रतिमा का मूर्तिशिल्प कतिपय चौंकानेवाले संकेत दे रहे हैं जिससे अंगभूमि के इतिहास में नये अध्याय जुड़ सकते हैं। पूर्व उपनिदेशक, जनसम्पर्क एवं इतिहास के जानकार शिव शंकर सिंह पारिजात ने आज यहां बताया कि शाहकुंड मूर्ति पर मिल रहे विभिन्न पुराविदों व मूर्तिविज्ञान विशेषज्ञों की राय के अनुसार जहां इस मूर्ति की पटना के दीदारगंज यक्षी की मूर्ति से साम्यता है, वहीं इसके किसी भव्य मंदिर होने की भी संभावना व्यक्त की जा रही है।
कला-समीक्षक सुमन सिंह ने अपने एक लेख में शाहकुंड की इस मूर्ति को पाशुपत सम्प्रदाय से जुड़े लकुलीश की मानते हुए प्रख्यात पुराविद् अरविंद महाजन के वक्तव्य का उद्धरण लिया है। इस मूर्ति के बारे में श्री महाजन कहते हैं, “मूर्ति के अधोभाग में पहने वस्त्र की दोनों पैरों के बीच की सलवटें दीदारगंज यक्षी की मूर्ति से बहुत मिलती-जुलती है। इस मूर्ति का ऊंचा पेडेस्टल भी दीदारगंज यक्षी की ही तरह है।”
तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के डॉ. दिनेश कुमार गुप्ता बताते हैं कि लकुलीश सम्प्रदाय की मूर्तियों का अंकन एवं पूजन 7 वीं शताब्दी से प्रारंभ हुआ है। इस संबंध में पुराविद् अरविंद महाजन का कहना है कि (शाहकुंड की) इस मूर्ति की संरचना लकुलीश मूर्ति के प्रतिमा-विज्ञान के एकदम अनुरूप नहीं है। सिर्फ उर्ध्व-लिंग के आधार पर इसे लकुलीश नहीं कहा जा सकता। श्री महाजन का यह भी कहना है कि इस मूर्ति को पालकालीन भी नहीं कहा जा सकता है; क्योंकि इसके निर्माण में सैंड स्टोन प्रयुक्त हुआ प्रतीत होता है।
हेरिटेज सोसायटी के डॉ. अनंत आशुतोष द्विवेदी, पुराविद् भी इस मूर्ति के दीदारगंज यक्षी से साम्यता बताते हुए कहते हैं कि यह खड़ी अवस्था में मिली है तथा इसका अगला व पिछला दोनों भाग अलंकृत है। इससे अनुमान है कि यह किसी स्टेला (पट्ट) पर स्थापित होने की बजाय एक भव्य मंदिर में पूजित होगा। इस मूर्ति के प्राप्ति-स्थल के 7-8 मीटर के आसपास में बिखरे पड़े अलंकृत प्रस्तर अवशेषों से भी इस अनुमान को बल मिलता है कि यहां कोई भव्य मंदिर रहा होगा।
शाहकुंड की ऐतिहासिक खेरही पहाड़ी एवं इसके आसपास पूर्व से मिल रहीं प्राचीन मूर्तियों, मंदिरों आदि के अवशेषों के आधार पर तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पीजी प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष डॉ. बिहारीलाल चौधरी का अनुमान है कि शाहकुंड में मूर्तिकला का कोई प्राचीन केंद्र रहा होगा जिसकी पुष्टि खेरही पहाड़ी के पत्थरों व प्राप्त पुरावशेषों के पत्थरों के मिलान करने पर हो सकती है। शाहकुंड निवासी प्राचीन इतिहास के शोधछात्र रामप्रवेश कुमार बताते हैं कि खेरही पहाड़ी की एक-डेढ़ किमी. की परिधि में बराबर प्राचीन मूर्तियां आदि मिलती रहती हैं।
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