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Bharat varta Desk
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा जारी एक बयान में बताया गया है कि श्री विनोद कुमार शुक्ल को हिंदी साहित्य में उनके अनूठे योगदान, रचनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए इस सम्मान के लिए चुना गया है. वह हिंदी के 12वें साहित्यकार हैं जिन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला है, साथ ही वह छत्तीसगढ़ राज्य के पहले लेखक हैं जिन्हें इस सम्मान से नवाजा जाएगा.
इस निर्णय की घोषणा प्रसिद्ध लेखिका और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रतिभा राय की अध्यक्षता में आयोजित प्रवर परिषद की बैठक में की गई. बैठक में चयन समिति के अन्य सदस्यों में माधव कौशिक, दामोदर मावजो, प्रभा वर्मा, डॉ. अनामिका, डॉ. ए. कृष्णा राव, प्रफुल्ल शिलेदार, जानकी प्रसाद शर्मा और ज्ञानपीठ के निदेशक मधुसूदन आनंद शामिल थे.
विनोद कुमार शुक्ल, जो 88 वर्ष के हैं, एक प्रख्यात लेखक, कवि और उपन्यासकार हैं. उनकी पहली कविता ‘लगभग जयहिंद’ 1971 में प्रकाशित हुई थी. उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल हैं. उनकी लेखन शैली सरल भाषा, गहरी संवेदनशीलता और विशिष्ट अभिव्यक्ति के लिए पहचानी जाती है. हिंदी साहित्य में उनके प्रयोगधर्मी लेखन ने उन्हें विशेष स्थान दिलाया है.
शुक्ल को इससे पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार समेत कई अन्य प्रतिष्ठित सम्मानों से भी सम्मानित किया जा चुका है. ज्ञानपीठ पुरस्कार भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है, जिसे भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट रचनात्मक योगदान देने वाले साहित्यकारों को दिया जाता है. इस पुरस्कार के अंतर्गत 11 लाख रुपये की राशि, वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है.
विनोद कुमार शुक्ल ने क्या कहा…..
वर्ष 2024 के लिए प्रतिष्ठित 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा के बाद विनोद कुमार शुक्ल बोले-
मुझे लिखना बहुत था, बहुत कम लिख पाया. मैंने देखा बहुत, सुना भी मैंने बहुत, महसूस भी किया बहुत, लेकिन लिखने में थोड़ा ही लिखा. कितना कुछ लिखना बाकी है, जब सोचता हूं तो लगता है बहुत बाकी है. इस बचे हुए को मैं लिख लेता अपने बचे होने तक. मैं अपने बचे लेख को शायद लिख नहीं पाऊंगा, तो मैं क्या करूं, मैं बड़ी दुविधा में रहता हूं. मैं अपनी जिंदगी का पीछा अपने लेखन से करना चाहता हूं
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