NewsNLive Desk : ग़ज़ल का सुनने का शौक़ हो और आपने जगजीत सिंह का नाम न सुना हो ऐसा मुमकिन नहीं। कई भारतीय भाषाओं में अपनी गायिकी के चलते मील का पत्थर साबित हो चुके पद्मश्री और पद्मविभूषण सम्मानित 8 फरवरी 1941 को जन्मे जगजीत सिंह के मन में यह लक्ष्य स्पष्ट था कि रिवायती अंदाज़ से हट कर कुछ नया नहीं किया गया तो रही सही ग़ज़ल भी मर जाएगी। वे सुनने वालों के मूड को अपने गणित से भांपते थे और क्या गाना है क्या नहीं महफ़िल देख कर तय करते थे।
9 साल पहले 10 अक्टूबर 2011 को गजल गायक के शहंशाह जगजीत सिंह इस दुनिया से रुखसत हो गए। जगजीत के जाने के बाद भी उनके गजल गायिकी के दीवाने कम नहीं हुए। उनके द्वारा गाए हुए गजल हर माहौल में फिट बैठते है। बॉलीवुड में जगजीत सिंह काे एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपनी गजल गायकी से लगभग चार दशक तक श्रोताओं के दिल पर अमिट छाप छोड़ी। ये उनकी खूबी थी कि उनके चाहने वालों में 15 साल से लेकर 85 साल तक के लोग थे। उनके पास हर उम्र के लोगों के सुनने सुनाने के लिए कुछ था। जगजीत सिंह के पास मानो गायकी का डिपार्टमेंटल स्टोर था। आप उसमें अंदर चले जाएं और अपनी पसंद का सामान ले लें। आप वहां से खाली हाथ नहीं लौट सकते।
जगजीत सिंह के इस अद्भुत रेंज के पीछे बड़ी वजह थी। उन्होंने हिंदी गीत सुनने वालों को ग़ज़ल का चस्का लगाया। ग़ज़ल को उर्दू की मिल्कियत समझने वालों को गलत साबित किया और उसे आम लोगों की जुबां बना दिया। ग़ज़ल गायकी की दुनिया के वो निश्चित तौर पर पहले और सबसे बड़े ‘स्टार’ थे। उनके कार्यक्रमों में अगर आंखें बंद किए ग़ज़ल का लुत्फ उठाते श्रोता होते थे तो ठुमके लगाने वाले श्रोता भी। जगजीत सिंह कहा भी करते थे कि मंच पर बैठने के साथ ही अगर आपने श्रोताओं से कनेक्ट कर लिया तो आपकी गायकी को लोग जमकर पसंद करेंगे।
जगजीत सिंह के गाये सुपरहिट गानों की लंबी फेहरिस्त में ‘होठो से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो, झुकी झुकी-सी नजर, तुम इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो, तुमको देखा ता ये ख्याल आया, ये तेरा घर ये मेरा घर, चिट्ठी ना कोई संदेश, होश वालो को खबर क्या आदि शामिल है। जगजीत को जब भी सुना जाए तब-तब उनकी आवाज मन के भीतर तक उतरती जाती है और वह जिंदगी में सुकून का सबब बनते जाते हैं। आज जब वो हमारे बीच नहीं भी हैं, तब भी उनकी महफिल-ए-ग़ज़ल बंद नहीं हुई।
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