NewsNLive: प्राचीन काल में अंगभूमि के नाम से विख्यात भागलपुर प्रमंडल के बांका जिलान्तर्गत स्थित बौंसी का मंदार पर्वत इस पौराणिक समुद्र-मंथन का साक्षी है जिससे अमृत सहित धन-धान्य की देवी महालक्ष्मी, पांचजन्य शंख, कौस्तुभ मणि, आरोग्य के देव विष्णुस्वरुप धन्वंतरि, शुभ फलदायक कामधेनु सहित चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी। ऐसी मन्यता है कि मंदार मधुसूदन के रूप में भगवान विष्णु देवी महालक्ष्मी के साथ विराजते हैं और समुद्र मंथन से निकले अमृत की बूंदों से यह भूमि सिक्त है।
भगवान विष्णु और देवी महालक्ष्मी की अनुकंपा से अभिसिक्त मंदार की प्रसिद्धि बालिसा नगरी के नाम से थी जो 88 तालाबों से घिरा हुआ था। ‘पद्म पुराण’ के ‘पाताल खंड’ के अनुसार पर्वत के नीचे ‘मंदार पुरी’ नामक एक विशाल नगरी अवस्थित थी जो 88 तालाबों से घिरी थी तथा यहां 52 गलियोंवाले 53 बाजार थे जिसे जिला गजेटियर सहित कई विद्वानों ने ‘बालिशा नगरी’ के नाम से संबोधित किया है।
अपने प्राचीन ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व पुरातात्विक धरोहरों की उपेक्षा के दंश झेल रहे मंदार के उन पुरातन तालाबों की बात करें, तो कई के अस्तित्व आज भी विद्यमान हैं। मंदार क्षेत्र में आज भी 50 से उपर पोखरें उनकी नजर में हैं। मंदार के शिखर से नीचे अवलोकन करें तो चारों तरफ दर्जनों तालाब सहज रूप से दिखते हैं। मंदार भ्रमण के दौरान लखदीपा मंदिर के अगल-बगल सहित मंदार परिक्रमा-पथ में कई जलाशय देखे जा सकते हैं जिनमें सबसे विशाल है नगाड़ा पोखर जिसके बीच में खड़े लाट और इधर-उधर बिखरे कई लाटों के अवशेष, घाट तक जाने हेतु तराशे हुए विशाल प्रस्तर खंड व पोखरे की बनावट पूरे भारत में अपने ढंग का अनूठा है।
दीपोत्सव के अवसर पर अंधेरों में छिपे मंदार के स्वर्णिम इतिहास को आलोकित करने का संकल्प लेना स्थानीय प्रशासन, बिहार सरकार और प्रबुद्ध नागरिकों व अनुसंधानकर्ताओं का परम कर्तव्य बनता है।
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