
पर्यटन का केंद्र बन सकता है टांगीनाथ धाम
रांची से प्रियरंजन: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिछले दिनों नेता आटा दौरे के दौरान राज्य के दर्शनीय स्थलों को वर्ल्ड क्लास पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की थी .झारखण्ड के विभिन्न पर्यटक स्थलों में टाँगीनाथ मंदिर गुमला जिला के डुमरी प्रखण्ड के मझगाँव के निकट टाँगीनाथ पहाड़ी पर स्थित है। यहां देशभर से लोग आते हैं. यहां पर्यटन सुविधाओं का विकास हो तो यह देश के पर्यटन के नक्शे पर चमक सकता है.
गुमला से 75 किलोमीटर की दूरी पर घने जंगलों में स्थित टांगीनाथ धाम के बारे में कहा जाता है कि यहाँ पाशुपत सम्प्रदाय के भगवान परशुराम का फरसा गड़ा हुआ है। स्थानीय भाषा में फरसा को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस जगह का नाम टांगीनाथ धाम हो गया। यहाँ परशुराम के चरण चिह्न भी बताए जाते हैं। यहाँ परशुराम से जुड़ी अनेक दंत कथायें भी प्रचलित है। एक लोक कथा के अनुसार जब सीताजी के स्वयंवर में भगवान श्रीराम ने शिव का धनुष तोड़ दिया था तब परशुराम अत्यंत क्रोधित हुए और स्वयंवर स्थल पर आ गए। उस दौरान श्रीराम शांत रहे लेकिन लक्ष्मण से परशुराम का वाद-विवाद होने लगा। बहस के बीच जब परशुराम को यह जानकारी होती है कि श्रीराम स्वयं परमेश्वर के अवतार हैं तो उन्हें इस बात का दुख होता है कि उनके लिए कटु वचन इस्तेमाल किए। स्वयंवर स्थल से परशुराम जंगलों में चले गये। यहाँ उन्होंने अपना फरसा भूमि में गाड़ दिया और भगवान शिव की स्थापना की। लोगों का विश्वास है कि परशुराम जी का वही फरसा आज भी यहां गड़ा हुआ है।
आधुनिक इतिहासकारों का मानना है कि यह शिव भगवान का त्रिशुल है। यह त्रिशुल 5वीं सदी का अर्थात् गुप्तकालीन है। इस अष्टकोणीय त्रिशुल की ऊँचाई धरातल से 22 इंच है। टांगीनाथ धाम में प्राचीन मंदिर व शिवलिंग के अवशेष भी हैं। यहाँ की स्थापत्य कला केदारनाथ धाम मंदिर की तरह है, लेकिन सभी मंदिर का कालखण्ड एक नहीं है।
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