साहित्य संसार

गांव, गरीब और कोरोना महामारी

इस महामारी की मार साधारण नहीं है। संयुक्त राष्टृ संघ का अनुमान है कि कोरोना संकट के चलते दुनियां में लगभग ढ़ाई करोड़ नौकरियां खत्म हो सकती हैं। वहीं असंगठित क्षेत्र में इसके भयवाह परिणाम होगें। इसके बाद जो संकट पैदा होने जा रहा है उसकी भयावहता का अनुमान लगाना और उन तनावों को झेलना दुनियां के लिए बड़ी परीक्षा की घड़ी है। जिसका सामना सिर्फ और सिर्फ आपसी सहयोगात्मक व्यवस्था खड़ी करके ही करना संभव है। विश्वव्यापी इस संकट से निपटने के लिए वैश्विक साझेदारी की इस समय की सबसे बड़ी जरुरत है। तभी इस संकट से उभर पाना दुनियां के लिए संभव होगा। अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित नीति के जरिए ही वैश्विक बेरोजगारी पर काबू पाया जा सकता है। सबसे बड़ी जरुरत तो किसान-मजदूरों की सुरक्षा है। विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएं गहरे दबावों में आ गई है। इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को संभाला जाना अति आवश्यक है। जिसके लिए वैश्विक बेरोजगारी को बढ़ने से रोका जाना ही एक प्रभावी उपाय है। लॉकडाउन यानि पूर्ण तालाबंदी करना। यह आपात् व्यवस्था कोरोना महामारी के चलते पूरे विश्व को प्रभावित कर रही है। लॉकडाउन के कारण लोगों का सामान्य जीवन पूरी तरह तितर-बितर हो गया है। लोगों का ऐसी परिस्थितियों को समझना मुश्किल है क्योंकि ऐसे संघर्षों के हम अभ्यस्त नहीं होते है और जब संकट मानवीय अस्तित्व पर ही आ खड़ा हुआ हो तो कुछ भी निर्णय करना भारी है।
देश की 70 प्रतिशत आबादी गांव में रहती है और कुल रोजगार का 43 प्रतिशत आज भी कृषि से ही आता है। देश की अर्थव्यवस्था पहले ही बहुत दबाव झेल रही है। अब इस महामारी की सीधी मार उसकी कमर तोड़ देगी। नतीजतन देश में महंगाई और बेरोज़गारी दोनों परवान चढ़ेगी। जिसका परिणाम होगा विकास दर गिरेगी ही। भारत सहित विश्व के अधिकांश देशों में लॉकडाउन के सामाजिक-आर्थिक दुष्परिणाम पूरी दुनियां को झेलने पडे़गें। इस संकट का सबसे गंभीर परिणाम किसान और मजदूर तबके के गरीब परिवारों को झेलना पड़ेगा। जो इस संक्रमण से सीधे प्रभावित होगें, उन पर इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव भयावह होगे। जो सदमा यह संक्रमाण उन परिवारों और व्यक्तियों को देकर जायेगा उससे उभरने में लम्बा समय तो लगेगा ही जिसका परिणाम होगा कि वे भारी मनोवैज्ञानिक दबावों में जीनें को अभिशप्त होगें। हालाकि भारत सरकार ने किसान-मजदूर तबके को राहत देने वाले कदम उठाए है। अभी 20 लाख करोड़ रुपए का ’आत्मनिर्भर भारत अभियान’ पैकेज एक बड़ी और सार्थक घोषणा है। अब सवाल इस पैकेज के समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुचने का है। इसके लिए एक व्यवहारिक रोडमैप बनाने का है जिसके केन्द्र में किसान-मजदूर वर्ग रहे। सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत 7.92 करोड़ किसानों के बैंक खातों में 15,841 करोड़ रुपये की राशि पहले से ही हस्तांतरित कर रही है। सभी किसानों को प्रत्येक वित्त वर्ष में दो-दो हजार रुपये की तीन किस्तों में कुल 6000 रुपये की सहायता दी जाने की रणनीति भी राहत भरी है। क्योंकि नकद धनराशी ही समाज को फोरी राहत का एक प्रभावी माध्यम है। सरकार का यह फैसला सराहनीय है। वहीं संकट के समय में इस धनराशी को कुछ और बढ़ाया जाना समय की जरुरत है।
वही कोरोना लॉकडाउन में केंद्र सरकार ने मनरेगा मजदूरों के लिए 4431 करोड़ रुपए 10 अप्रैल तक सीधे अकाउंट में ट्रांसफर किए। केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा मजदूरी में वृद्धि करना भी एक बड़ी पहल है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के तहत मजदूरी में वृद्धि एक अप्रैल से लागू हो गई। जिसके तहत राष्ट्रीय औसत मजदूरी 182 रुपए से बढ़कर प्रति दिन 202 रुपए की गयी है। मनरेगा स्कीम में 13.62 करोड़ जॉब कार्ड धारक हैं। जिनमें से 8.17 करोड़ जॉब कार्ड धारक सक्रिय हैं। इस वर्ष मनरेगा के तहत 18 करोड मानव दिवस सृजित किए जाने की योजना हैं।
जहां कोरोना वायरस महामारी के चलते कहीं भी निकलने और कुछ भी करने पर पूरी तरह रोक है। अभी भी महिनों तक सब कुछ बंद है ऐसे में ग्रामीणों को राहत देने के लिए कुछ अतिरिक्त उपाय करने ही होगे। इसके साथ ही मनरेगा धनराशी में सरकार को थोड़ा इजाफा करने दिशा में सोचना होगा। साथ ही ग्रामीण मजदूरों के लिए कार्य-दिवसों की संख्या भी दोगुनी होनी चाहिए। तभी इस भयावह परिस्थिति में ग्रामीण लोग अपनी मनःस्थिति को संतुलित करने की तरफ बढ़ सकेगें। इस समय ग्रामीण भारत को आर्थिक संबल की भाऱी जरुरत है। क्योंकि इस विश्वव्यापी लॉकडाउन में श्रमिकों के पास कोई काम नहीं बचा है,न ही इस वर्ग के पास कोई जमा पूंजी होती है।
कोरोना आपदा और लॉक-डाउन से जूझते बेरोजगार मजदूर और गांव के किसान इस संकट से उभरने के लिए सरकार और समाज के सहयोग पर ही पूरी तरह निर्भर करेगें। विकासशील देशों में इस महामारी के संकट कुछ अतिरिक्त रुप से दर्ज होत दिखायी देगें। जैसे भारत में प्रवासी मजदूरों का मामला लम्बें समय तक सामाजिक-राजीनतिक प्रभाव डाल सकता है। मौजूदा परिदृश्य भारत में सरकारों को अपना पुनरावलोकन करने और अपनी नीतियों तथा सुरक्षा कार्यक्रमों पर पुनर्विचार को विवश करने की दिशा में दबाव बनाने वाला साबित होगा। हमें अपने शहरों को सुरक्षित और संवहनीय बनाने की दिशा में भी मजबूर करेगा। प्रवासी मजदूरों के लिए यह संकट कई तरह की विकट परिस्थितियां खड़ा करने वाला साबित हुआ। उनका रोजगार छुट गया, उनके मन में अपने शहरों को लेकर असुरक्षा का भाव बढ़ा है। इससे उनमें सरकारों के प्रति उदासीनता उभरेगी। उन पर अपने विस्थापन और पुनःव्यवस्था का अतिरिक्त भार बढ़ेगा। आर्थिक रुप से वे एक चरमरायी स्थिति में जिन्दगी को पुनःगठित करने के दुस्साहसों से जूझते हुए जिन तनावों, अभावों और नकारात्मक प्रभावों के शिकार होगें, वे उनके जीवन को बहुत मुश्किल बनाने वाले साबित होगे। तनाव, निराशा, कलह, और कर्ज जिस तरह का एक उत्पीड़क परिदृश्य विकसित करेंगे। वह स्थायी बनेगा तो समाज में ढ़ेरो विकृत्तियां आयेंगी। कोरोना संक्रमण समाज को गंभीर संकटों में डालने वाला साबित हो सकता है। इस विकट परिस्थिति का सामना हम सब मिलकर ही कर सकते है। समाज और सरकार जितना जल्दी मिलकर एक मजबूत सहयोगात्मक व्यवस्था बनायेंगें उतना जल्दी ही इस संकट से सहज ढ़ंग से हम उभर पायेगें।

Anupam

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