चेतना त्रिपाठी का कॉलम : महिला सशक्तिकरण
अबला से सबला हुई, देखो नारी आज!
नारी के सहयोग से, उन्नत बने समाज!!
इस विषय पर पिछली सदी के अंतिम दो दशकों से बड़ी गंभीरता से विचार होने लगी थी। नई सदी यानी 2000 ई० के बाद विभिन्न सरकारों ने अपनी योजनाओं में इसे शामिल करना शुरू किया। ‘जेंडर बजटिंग़’, ’जेंडर पैरिटी’ जैसे शब्द सरकारी विकास पत्रों में दिखने लगे। बिहार में भी जब नयी सरकार आयी तो जेंडर बजटिंग स्कूली छात्राओं के लिए साइकिल दिए जाने जैसी योजनाओं में दिखी। बिहार जैसे मर्यादित समाज के लिए नारी सशक्तिकरण का यह टूल काफ़ी कारगर मानी गई।क्या मनोरम दृश्य हुआ करता था! साइकिल पर सवार गर्व से स्कूल जाती बालिकाओं का झुंड- अपने आप में एक नए भविष्य की पटकथा थी। नई सदी के दहलीज़ पर जब हम थे उस समय से ही बड़े सपने देख रहे थे। नई सदी के शुरुआत में हमने कई बड़ी योजनाएं भी बनाई। इंडिया 2020 ई० में कैसा होगा इसका खाका श्रद्धेय डॉक्टर कलाम ने उसी समय खिंचा था ? हम विकसित राष्ट्र होंगे!हमारी महिलायें जीवन के हरेक क्षेत्र में विकास को प्राप्त कर चुकी होंगी। ऐसा एक राष्ट्र और समाज के रूप में हमने सोचा था।
ऐसा नहीं है कि इन 20 वर्षों में हमारी महिलाओं के जीवन में बदलाव नहीं आया। हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति बेशक सशक्त हुई है। एक उदाहरण से इसको समझने की कोशिश करते हैं। घर का चूल्हा चौका का पोर्टफ़ोलियो अपने देश में परम्परा से महिलाओं के ज़िम्मे रहा है।इसमें कितना सुधार हुआ है। लकड़ी-उपला के जगह अब हर जगह गैस जैसे क्लीन एनर्जी ने ले लिया है। इस बदलाव ने सबसे ज़्यादा महिलाओं के जीवन को सुधारा है।
इस दौर में क़ेंद्र और राज्य सरकारों ने भी महिला विकास पर विशेष ध्यान दिया। विशेष कर बिहार जैसे राज्य में ऐसा हुआ – जहाँ महिला सशक्तिकरण का मुद्दा राज्य के विकास नीति के बिल्कुल क़ेंद्र में दिखी। यहाँ महिलायें राजनीतिक और आर्थिक रूप से सशक्त हों इसके लिए पंचायती राज्य व्यवस्था में 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई। आरक्षण के इस नायाब प्रयोग के परिणाम हमारे सामने है। ग्रामीण स्तर पर महिलाओं की एक बड़ी पीढ़ी सामाजिक-राजनीतिक जीवन में उतर चुकी हैं।सरकार के इस प्रयोग ने महिला सशक्तिकरण के ऊंचे प्रतिमान गढ़ें है। इसके फल पीढ़ियों तक आता रहेगा। सामान्य महिलाओं को सशक्त किए जाने को ले बिहार में चलने वाली विभिन्न योजनाएं किसी एक महकमे तक सीमित नहीं है। एक साथ कई महकमे को सरकार ने सशक्तिकरण के काम में जोड़ा हुआ है। महादलित समुदाय की महिलाओं को सशक्त करने के लिए स्वयं सहायता समूहों का निर्माण और पोषण रणनीति के तहत मुख्यमंत्री नारी ज्योति कार्यक्रम को लाया गया है। कृषि क्षेत्र में महिला उत्पादक समूहों को गठित किया गया है। नवांकुर ग्राम उद्यम कार्यक्रम के तहत ग्रामीण नवांकुर महिला उद्यमियों को प्रशिक्षण देने और फिर उन्हें उद्यम चुनने का विकल्प उपलब्ध कराता है। महिला सशक्तिकरण का मूर्तमान एक समूह – जीविका समूह, को विस्तारित किया गया है। सात निश्चय कार्यक्रम के तहत आरक्षित रोजगार महिलाओं का अधिकार कार्यक्रम शुरू हुआ। वर्ष 2016 से ही सभी सरकारी सेवाओं में नियुक्ति को लेकर महिलाओं के लिए 35 फीसद आरक्षण की व्यवस्था की गयी है। इस नीति का सबसे बड़ा परिणाम पुलिस विभाग में देखने को मिला। आज देश में बिहार अकेला राज्य है जहां कि पुलिस में में महिलाओं की भागीदारी सर्वाधिक है। निश्चय ही आगे चलकर यह प्रयोग पारम्परिक पुलिसिया छवि को बदलने की कोशिश करेगा। समाज कल्याण, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास विभाग तो अपने बजट का पचास प्रतिशत से अधिक हिस्सा महिलाओं पर खर्च करता है।
इसी तरह केंद्र सरकार ने भी महिला विकास पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। सरकार ने महिला सशक्तिकरण को लेकर कई मजबूत कदम उठाए हैं। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से लेकर बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं और उनके दैनिक जीवन और उनकी दीर्घकालिक संभावनाओं को सुधारने के लिए कई पहल की है। लकड़ी से निकलने वालें धुएं, और स्टोव के धुएं के खतरनाक प्रभाव से महिलाओं को मुक्त करने के लिए उज्ज्वळा योजना शुरू की गई। गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) के परिवारों को बेहतर जीवन के लिए सरकार ने उन्हें बेहतर और स्वस्थ वातावरण प्रदान किया।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, न केवल लिंग समानता की दिशा में परिवर्तनकारी पहल है बल्कि इसने जनता और सरकार के बीच विश्वास को मजबूत भी किया है। इस योजना का परिणाम हरियाणा में काफी हद तक दिखाई देने भी लगा है, जहां हर 1000 पुरुषों के लिए लिंग अनुपात 950 महिलाओं तक पहुंच गया है ।हाल तक यहां के आंकड़ें काफी चिंताजनक थे। इस योजना के माध्यम से, सरकार का उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा और शिक्षा के बारे में जागरूकता लाकर समाज को बेहतर बनाना है। ये योजना सदियों पुरानी धारणाओं और प्रथाओं को समाप्त करने की दिशा में भी काम करती है। जाहिर है ये सब गतिविधियां महिलाओं के विकास के लिए सहायक है।
स्टैंड-अप इंडिया के तहत-महिला उद्यमियों को 10 लाख से 1 करोड़ तक के ऋण को मंजूरी दी गई है| कौशल विकास योजना -में लगभग 375 व्यापारिक उद्दमियों में से करीब आधे महिलाएं हैं। सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं ने न केवल महिलाओं को वित्तीय रूप से मजबूत किया बल्कि उनके स्वास्थ्य और भलाई का भी ध्यान रखा है। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने मातृत्व विधेयक को भी पारित किया, जिसके तहत गर्भवती महिलाओं को और अधिक मातृत्व अवकाश और वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है।
MUDRA(मुद्रा )- एक नई संस्था है, जो भारत सरकार की तरफ से गैर-कार्पोरेट, गैर-कृषि क्षेत्र में काम करने वाली गतिविधियों को फाइनेंस प्रदान करने के लिए बनाई गई है। इस योजना के तहत ऐसे लोगों की मदद की जाती है जिन्हें लोन की आवश्यकता 10 लाख रुपये से कम होती है।सरकार ने व्यापार में महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए कई प्रयास किए हैं। इन्हीं प्रयासों के परिणाम के रूप में मुद्रा योजना में महिला ई-हाट एक अनोखा ऑनलाइन मंच है। जहां महिलाओं को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने का मौका मिल रहा है। साथ ही सरकार के इस कदम से महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक तौर पर मजबूत बनने का अवसर भी मिल रहा है। महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में ई-हाट तीन चरणों की श्रृंखला का पहला चरण मात्र है। दूसरे चरण में व्यापार और वाणिज्य के साथ एक बड़ा मंच प्रदान करने के लिए ई-कॉमर्स पोर्टल्स के साथ जुड़ना होगा। आखिरकार, यह एक महिला उद्यमियों के परिषद के रूप में परिणति हो रहा है, जो इस उद्यम को व्यापक बनाने और संस्थागत बनाने में मदद करता है। सुकन्या समृद्धि योजना… सरकार द्वारा लड़की की सुरक्षा और भविष्य के साथ साथ समाज में सकारात्मक मानसिकता बनाने के प्रयास के रूप में ही शुरू किया गया था। इसके अलावा ‘नई रोशनी योजना’ अल्पसंख्यक महिलाओं में नेतृत्व क्षमता विकसित करने के लिए डिजाइन की गई है ताकि वे उद्यमशीलता के क्षेत्र में आगे बढ़ सकें।
इस प्रकार हम कह सकतें है कि राज्य और क़ेंद्र सरकारों के स्तर पर महिलाओं को सशक्त बनाने को लेकर काफ़ी प्रयास हुए है। ख़ासकर पिछले तीन दशकों में इस प्रक्रिया ने तेज़ी पकड़ी है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि आज भी सशक्त महिला का ख़्वाब हर जगह सामान्य रूप से पूरा नहीं हो पा रहा है। सारे प्रयासों का प्रतिफल कुछ उदाहरणों में सिमट कर हर बर रह जाता है। यही कारण है कि आज भी नारी अपने सम्मान के लिए याचक की हीं भूमिका में है। नारी सशक्तिकरण आज भी यथार्थ नहीं बल्कि एक आदर्श है जिसे प्राप्त करना अभीष्ट है।
नारी के गुणगान से, भरा हुआ इतिहास!
बिन नारी सम्भव नहीं,होना जगत विकास!!
आख़िर, ऐसा क्यों है कि हमारे इतने प्रयासों के बावजूद, नारी विकास के मुक्कमल सपने नहीं साकार हो रहे हैं। लेख पूर्ण करने से पूर्व इस सवाल से जूझना ज़रूरी है।
यह तो हर कोई मान ले कि विकास हुआ है। और यह हर क्षेत्र में हुआ है। यह भी द्रष्टव्य है कि इस दौर में हुए विकास का लाभार्थी महिलायें भी है। इसी लिए महिलाओं के जीवन में भी विकास दिखता है। यह भी हर कोई को महसूस होगा की जिस गति से समग्र विकास हुआ है या होता है। उसी गति से महिला सशक्तिकरण यानी महिलाओं के लिए विकास की जो गाड़ी है वह नहीं दौड़ती है! महिलाओं के विकास की गाड़ी में ये अतिरिक्त ब्रेक कहाँ से अप्लाई हो रहा है। जबकि राज्य और क़ेंद्र के स्तर पर ऐसे सैकड़ों निर्णय हुए जिसका लक्ष्य महिला सशक्तिकरण है। बिहार में ही देखिए – ज़मीन रजिस्ट्री में महिलाओं को राशि छूट दिए गए तो लाखों महिलाओं को इसका लाभ मिला। यह ऐसा निर्णय था जो वास्तविक रूप से एक महिला को सशक्त बनाने की क्षमता रखता है। लेकिन गहराई से देखिए तो कुछ उदाहरण को छोड़ इस प्रावधान का उपयोग पुरुषों ने अपने खर्च बचाने के लिए किया।ऐसा कम से कम मैं समझती हूं। और मेरा मानना है कि मैं इस बिंदु को सही समझती हूं। इस उदाहरण से उस बिंदु का उद्घाटन होता है। जिसे हमने रेखांकित किया था – कि महिला सशक्तिकरण की गाड़ी में ओ अतिरिक्त ब्रेक कहां से लगता है। वस्तुतः यह कठोर रूप में पित्र -सत्तात्मक सोंच है जो महिलाओं के लिए दिए गए सुविधाओं, सरकारी निर्णयों में सेंध लगा देता है और हर बार बेचारी महिला ठग दी जाती है। ऐसा कठोर बात इसलिए कहना पड़ रहा है की मैं देखती हूं कि महिलायें हर उपयुक्त मौके पर पुरुष लालच की मोहरा बन जाती है। क्योंकि मुझे पता है। जो ज़मीन रजिस्ट्री राशि बचाने के लिए महिलाओं के नाम से ख़रीदी जाती है उसके पुनः विक्रय का निर्णय स्वतंत्र रूप से महिलाएं कभी नहीं लेंगी।
इसी पहलू को दूसरा उदाहरण भी उजागर करता है।बिहार के पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को पचास प्रतिशत का आरक्षण दिया गया। महिलाओं को इसका ज़बरदस्त परिमापी लाभ मिला।ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के निकायों में बड़ी संख्या में महिलाओं को नेतृत्व का मौक़ा मिला। यह भी सत्य है कि लम्बे समय के बाद इसका वास्तविक लाभ महिलाओं को मिलेगा और महिला सशक्तिकरण के सरकारी लक्ष्य साधन में सहयोग मिलेगा। किंतु तात्कालिक रूप से पित्र – सत्ता की ही विजय दिखी थी। असली सत्ता तो मुखिया – पतियों के ही हाथ में दिखाई दिया था।
अंत में निचोड़ यही है कि महिलाओं ने विकास का रास्ता पकड़ लिया है। उनके जीवन में तमाम वांछित परिवर्तन आए है। शिक्षा का प्रतिफल और सरकारों की प्रोत-साही नीतियों एवं नीतिगत बड़े निर्णयों एवं क़ानूनों के कारण महिला सशक्तिकरण के माहौल और मौक़े बन गए हैं।अब ज़रूरत है ऐसे माहौल और समर्थन को बनाए रखने की उसे और नयी गति और आयाम देने की। सबसे बड़ी ज़रूरत है अपने देश में जो कई तरह की रूढ़ियाँ है जो आज के दौर में अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है उसे सायास तोड़ने की। एक ऐसा राष्ट्रीय सोंच के विकास एवं निर्णय की आवस्यकता है, जिसमें हम जितना महिलाओं को मौखिक सम्मान देते है उतना ही सम्मान एक महिला द्वारा जीवन के हरेक महत्वपूर्ण मोड़ पर लिए गए निर्णयों को करना होगा।
लेखिका : चेतना त्रिपाठी (सचिव, चेतना सर्विंग ह्यूमानिटी)