डीजीपी ने रवीन्द्र नाथ तिवारी से कहा था, “सीवान इज डेंस ऑफ क्रिमिनल्स, उधर की यात्रा टाल दीजिए”
– डॉ रवीन्द्र नाथ तिवारी के फेसबुक वॉल से
(17 वर्षों तक हिंदुस्तान अखबार के साथ पत्रकारिता के बाद अब डिजिटल पत्रकारिता जगत में)
संस्मरण : वर्ष 2005 के जनवरी का महीना था। विधानसभा चुनाव का पूरा माहौल बना हुआ था। उस समय मैं पटना में हिंदुस्तान अखबार में ब्यूरो रिपोर्टर के रूप में काम कर रहा था। एक बाहुबली नेता के कारण सीवान का चुनाव चर्चे में था। उस नेता की दबंगता और दहशत के बारे में तरह-तरह के किस्से कहे जाते थे। एक दिन अखबार की दिन की मीटिंग में स्थानीय संपादक श्याम वेताल, उप-स्थानीय संपादक देशपाल सिंह पंवार और ब्यूरो चीफ अरुण अशेष की मौजूदगी में उस सांसद की चर्चा शुरू हुई। उनके डर से सीवान जिले के कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री सीवान शहर में जाना छोड़ दिया था। चर्चे के दौरान मैंने सीवान जाकर समाचार कवरेज की इच्छा जताई। तीनों लोग सहमत हुए। मैंने उस नेता की भय से दो वरिष्ठ पत्रकारों को सुरक्षाकर्मियों के साथ चलते देखा था।
सीवान इज डेंस ऑफ क्रिमिनल्स (अपराधियों की मांद) है
अखबार की मीटिंग के बाद मैं रिपोर्टिंग के लिए हर दिन की तरह पुलिस मुख्यालय की ओर गया वहां उस समय के डीजीपी नारायण मिश्रा से भेंट हुई। मैंने उन्हें बताया कि कल रिपोर्टिंग के लिए सीवान जा रहा हूं। इसपर नारायण मिश्रा ने कहा कि उधर क्यों जा रहे हैं? आप जानते नहीं- “सीवान इज डेंस ऑफ क्रिमिनल्स (अपराधियों की मांद) है।” उधर की यात्रा टाल दीजिए।
हमारे बहादुर साथी पत्रकार राजदेव ने उस सीवान में करीब दो दशक तक दिलेरी के साथ पत्रकारिता की जिसे सूबे का पुलिस प्रमुख भी अपराधियों की मांद मानता था। राजदेव अपराधियों के खिलाफ लिखते रहे, उन्हें अपनी लेखनी से ललकराते रहे। वे एक साहसी और समर्पित पत्रकार थे। तीन दिनों तक सीवान में समाचार कवरेज करने के दौरान मैंने उन्हें काफी नजदीक से जाना-समझा था। बाद में उनकी हत्या हो गई। हत्या का आरोप भी उसी बाहुबली नेता शहाबुद्दीन पर लगा।
दूसरे दिन मैं ऑफिस द्वारा उपलब्ध कराई एम्बेसडर कार से सीवान पहुंचा। उस दिन देर रात तक डीजीपी नारायण मिश्रा मेरे मोबाइल पर लगातार फोन कर मेरे बारे में पूछते रहे। वे मेरी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। सीवान में हिन्दुस्तान कार्यालय पहुंचा जहां प्रभारी के रूप में दुर्गाकांत ठाकुर थे। उनके साथ मौजूद राजदेव रंजन से पहली बार भेंट हुई थी। बड़ी निष्पक्षता से उन्होंने सीवान के चुनावी के परिदृश्य के बारे में बताया। उनके साथ मैं सीवान शहर में कई जगहों पर गया। लोगों से बात की। पता चला कि बाहुबली सांसद जेल से चुनाव को संचालित कर रहे हैं। मैंने समाचार लिखा- सीवान के चुनावी फिजां में बारूदी गंध।
रिपोर्ट फाइल करने के बाद रात आठ बजे होटल पहुंचा। राजदेव ने ही होटल ठीक करवा दिया था। वहां से मैंने जेल में बंद बाहुबली नेता के मोबाइल पर फोन लगाया। मुझे यह जानकार आचर्श्य हुआ कि उन्हें मेरे सीवान पहुंचने और उस होटल में ठहरने की जानकारी हो गई थी। उनसे मिलने के लिए जेल में दस बजे मेरे जाने की बात तय हुई। उनके बारे में कहा जाता था कि जेल में उनका दरबार सजता है। मैं उस दरबार की रिपोर्टिंग करने की चाहत में दूसरे दिन 11 बजे जेल गेट पर पहुंचा तो पता चला कि वे कोर्ट चले गए हैं तारीख पर। वापस कोर्ट आया तो पता चला कि कोई तारीख नहीं है। नेता यू हीं रोज आकर जिला परिषद में दरबार लगाते हैं। मैं जिला परिषद पहुंचा तो वहां भारी नीजि सुरक्षा में मौजूद नेता से भेंट हुई। जिप अध्यक्ष अपनी कुर्सी छोड़ बगल में बैठीं थी। मैंने उस दिन जिला परिषद में सजे उस दरबार पर रिपोर्ट लिखा कि “जेल से निकल जिला परिषद में क्या कर रहे थे सीवान के साहब।” उस समय साहब का नाम लेते ही सीवान के किसी भी आदमी का बोली धीमी हो जाती थी। कहते थे धीरे बोलिए। यहां चप्पे-चप्पे पर साहब के लोग हैं। लेकिन उस माहौल में भी राजदेव हर जगह-जगह हमारे साथ गए और बड़े साहस के साथ समाचार इकठ्ठा करने में मेरी सहयोग किया। कई महत्वपूर्ण फीडबैक भी दिए जिसके आधार पर मैंने कई खबरें लिखी। उन खबरों के छपने के बाद कोई स्थानीय पत्रकार लिखने वाले के साथ घुमने की साहस नहीं करता।
मौका मिलेगा तो मार देंगे, राजदेव को पहले से थी आशंका
राजदेव के साथ मैं खाना खाने एक रेस्टारेंट में गया। मैंने उनसे कहा कि इस माहौल में आप इतना साहस कर लेते हैं, इसपर मुझे हैरत हो रही है। तब उन्होंने कहा कि जानते हैं सर हम जान हथेली पर रखकर पत्रकारिता कर रहे हैं। मौका मिलेगा तो वे लोग कभी भी मार सकते हैं। समझिए किसी तरह बचे हुए हैं। अपने पत्रकारिता के ऐसे साथी को खोकर हम मर्माहत हैं। वे अपराधियों की गोली से नहीं मरे हैं। पत्रकारिता की बलिवेदी पर शहीद हुए हैं। मैं उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
2005 में दो बार की सीवान यात्रा के बाद मैंने वहां के आपराधिक परिदृश्य पर 30 से अधिक ऐसी बेबाक खबरें लिखी जिसे लोगों ने खूब बढ़ा। इन खबरों को लिखकर मुझे इतना सुख मिला जितना किसी को कई प्रोन्नतियों और वेतनवृद्धि से प्राप्त होता है। इन सारी खबरों को लिखने में राजदेव ने तथ्य और सूचना से मेरी मदद की थी। यह साहस कोई दूसरा पत्रकार उस समय नहीं कर सकता था। मैं अक्सर पटना हिन्दुस्तान कार्यालय से फोन कर उनसे बातें करता था। सीवान पर जो खबर वे किन्हीं कारणों से नहीं लिख पाते, वे मुझे बता देते थे। उसे मैं लिखता था।
सीवान में बदलाव का श्रेय राजदेव को
उस समय के पहले सीवान के माहौल पर लिखने की बहुत अधिक परंपरा नहीं थी। उसके पहले इसके पहले देश और बिहार के कई पत्रकारों ने सीवान पर थोड़ा,बहुत लिखा तो उन्हें काफी फजीहत भी झेलनी पड़ी। धमकियां मिली। बाहुबली नेताओं को मैनेज करना पड़ा। बाहर से सीवान गए पत्रकारों के साथ घुमने वाले कुछ स्थानीय लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। मैं जब सीवान गया तो जान गवाने वाले लोगों के नाम वहां के जानकार बताते थे।
लेकिन 2005 में सीवान के अपराध पर ‘हिन्दुस्तान’ अखबार ने जोरदार ढंग से लिखने की परंपरा शुरू की। उसके बाद दूसरे अखबारों में भी सीवान पर लिखने की होड़ लगी। फिर वहां की स्थितियां बदलने लगी। छप रही खबरों को पढकर चुनाव आयोग के सलाहकार केजे राव ने सीवान में लगातार डंडा चलाया। वहां धीरे धीरे आतंक और दहशत का माहौल कम हुआ। इस बदलाव का श्रेय बहुत हद तक राजदेव को जाता है। वे सुपर स्ट्रींगर थे लेकिन उनकी साहस, खबरों की समझ, जानकारी वैसे बहुतेरे पत्रकारों से बहुत आगे थी जो पत्रकारिता जगत में बिना काम किए, बिना समझ के पैरवी की सीढ़ियों के जरिए महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हैं।
अयूब रईस के समाचार पर हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान
सीवान पर मेरी कई खबर छपने के कारण कुछ लोग पत्र भेजकर वहां के बारे में मुझे बहुत कुछ बताते थे। एक दिन एक पत्र आया कि दो कुख्यात भाई अयूब और रइस एके 47 से वोटरों को धमकी दे रहे हैं। पत्र में कुख्यात अजय सिंह के बारे में भी वोटरों को धकाने की कई बातें कही गई थी जिसकी मां बाद में रघुनाथपुर से विधायक बनीं। मैंने फोन पर राजदेव रंजन से बात की, पूरे मामले को समझा। उन्होंने उस इलाके के कुछ और लोगों के मोबाइल नम्बर दिए। पहले पेज पर मेरी खबर छपी- “एके 47 से वोटरों को धमका रहे अयूब-रइस।” उस खबर पर उसी दिन पटना हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया। मुझे याद है जब शाम चार बजे अखबार के वरिष्ठ सदस्य आदरणीय अरुण कुमार पांडेय जी ने दोपहर में मुझे मोबाइल पर फोन कर बताया कि आपके समाचार पर हाईकोर्ट ने आईजी को तलब किया है। वे मुझे अक्सर अच्छी खबरों पर ‘वेल डन’ कहा करते थे। अच्छी खबरों पर अपने जूनियर साथियों को उत्साहित करना कोई पांडेय जी सीखे।
उस समय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश माननीय नागेन्द्र राय जी मुजफ्फरपुर के तत्कालीन आइजी बीएस जयंत और सीवान के एसपी को कोर्ट में बुलाकर तुरंत अयूब-रइस को गिरफ्तार करने को कहा। उस समय दोनों पर ईनाम भी घोषित था।
उस समय के उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत ने बाहुबली नेता का नाम लिया
वर्ष 2008 में मेरी किताब ‘दि संथाल इंस्रक्शन : फर्स्ट फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया -1855-56” का विमोचन उस समय के उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत ने अपने आवास पर किया था। अपने बैठकखाने में मुझसे बातचीत के दौरान उन्होंने बिहार की पत्रकारों की तारीफ की। आश्चर्य हुआ जब उन्होंने कहा कि साधन के बिना भी वहां के पत्रकार अच्छा काम कर रहे हें। मैंने उन्हें बताया कि भारी बेइमानी के माहौल में भी सारे प्रलोभनों को ठुकराकर साहस के साथ पत्रकारिता करने वालों की संख्या सबसे ज्यादा बिहार में है। मैंने खुद अपने और दूसरे कई पत्रकारों के बारे में कई बातें बताईं। इस क्रम में मैनें सिवान के पत्रकार राजदेव की भी चर्चा की। इस पर उपराष्ट्रपति ने सीवान के बाहुबली नेता का भी नाम लिया।