अप्प दीपो भव-18
मनुष्य कर्म से बड़ा बनता है, शोर मचाने से नहीं। अपनी महिमा का बखान करने वाले कितने भी पोस्टर हम क्यों न छपवा लें, अपनी स्तुति में किताब भी लिखवा लें या ढोल बजाकर ढिंढोरा पिट लें, कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे आसपास के लोग हमारी हकीकत जानते हैं। यदि हम अंदर से ठोस और सच्चे नहीं होंगे, तो बड़े-बड़े मंचों पर भी हमें मुंह की खानी होगी। बिना कुछ किए तारीफ़ पाने की आकांक्षा में उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर कहने वाले लोगों को अंत में बदनामी के सिवा कुछ नहीं मिलता। पच्चीस-पचास पैसे का सिक्का हमेशा आवाज करता है, खनकता रहता है। लेकिन 1000/2000 रुपए का नोट खामोशी से आपकी जेब में पड़ा रहता है। जब जरूरत होती है तो शांत भाव से जेब से निकलता है और अपना काम करता है। समय पर अपनी उपयोगिता सिद्ध करके वह प्रतिष्ठा पाता है। सिक्का कितना भी खनकता रहे, उसका वास्तविक मूल्य उतना ही रहेगा, जितना उस पर अंकित है। नोट कितनी भी खामोशी से काम करे, उसका वास्तविक मूल्य कम नहीं हो जाएगा।
आपने भी अपने आसपास खनकते रहने वाले अनेक लोगों को देखा होगा। ऐसे लोग सफलता मिलने से पहले ही खुद को शमशीर घोषित कर देते हैं। ऐसे लोग चार पंक्तियां मुश्किल से लिखते हैं और खुद को कबीर से भी बड़ा कवि मान लेते हैं। लेकिन जीवन की सच्चाई यही है कि खु़द ही मान लेने से कोई भी व्यक्ति खु़दा नहीं बन जाता।
हमारी उपलब्धियों को जब सामाजिक और प्रशासनिक स्वीकृति मिलती है, तभी हमें सफल माना जाता है। बिना स्वीकृति के प्राप्त की गई सफलताएं काल्पनिक उड़ान का ही हिस्सा होती हैं।
एक कहावत है- थोथा चना, बाजे घना ।
जो लोग गुणहीन अथवा कम गुणी होने होने के बावजूद भी अपने गुणों को बढ़ा चढ़ाकर बताते रहते हैं, ऐसे लोगों को देखकर बरबस ही यह कहावत लोगों की जुबान पर आ जाती है। ऐसे लोगों के लिए एक कहावत अंग्रेजी भाषा में भी है- An empty vessel sounds much. यानी खाली बर्तन ज्यादा ढनमनाता है। आडंबर की प्रवृत्ति रखने वाले लोगों के लिए हिंदी क्षेत्रों में एक और कहावत प्रचलित है-
अधजल गगरी, छलकत जाए पूरी गगरिया चुपके जाए
जब पात्र में जल कम होता है, तब उस पात्र का जल छलकता रहता है। यदि बर्तन पूरी तरह से भर जाता है तो फिर वह छलकना बंद कर देता है। अधजल गगरी अल्प ज्ञानी मनुष्य का प्रतिनिधि है। अल्प ज्ञानी लोग अपने आप को महान साबित करने के लिए अपने ज्ञान का अवांछित प्रदर्शन करते रहते हैं। इस प्रयास में वह खुद को ज्ञानी तो साबित नहीं कर पाते, अज्ञानी अवश्य ही साबित कर लेते हैं। पूर्ण ज्ञानी व्यक्ति कभी भी अपने ज्ञान का प्रदर्शन नहीं करता। वस्तुतः ज्ञान प्रदर्शन की चीज भी नहीं है। ज्ञान और ज्ञानी मनुष्य की महिमा सत्य की धरातल पर स्थापित होती है। उसमें थोड़ा वक्त लगता है। लेकिन जब ज्ञान की महिमा स्थापित हो जाती है, तो फिर वह चिरंजीवी होता है।
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