साहित्य संसार

बदलाव से बदलेगी तकदीर, रेल अधिकारी दिलीप कुमार का कॉलम ‘अप्प दीपो भव’

अप्प दीपो भव


कवि, लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर दिलीप कुमार भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं।


पृथ्वी गतिशील है। सूर्य गतिशील है और चंद्रमा भी गतिशील है। सकल ब्रह्मांड में लाखों ग्रह, उपग्रह, तारे और पुच्छल तारे हैं। ये सभी गतिशील हैं। चल रहे हैं। चलने की प्रक्रिया में अपनी स्थिति भी बदल रहे हैं। बदलाव जीवन का सबसे बड़ा सच है। इस सच को स्वीकार करने में हमें डर लगता है। हम सभी चाहे किसी स्थिति में क्यों ना हो, अपना पसंदीदा आराम क्षेत्र (कंफर्ट जोन) तैयार कर लेते हैं और फिर इस आशंका से घिर जाते हैं कि यदि कंफर्ट जोन से बाहर निकले तो पता नहीं क्या हो जाए। मन का डर कहता है कि कंफर्ट जोन से बाहर निकले नहीं कि जो पास है, वह सब खो जाएगा। खोने का यह डर हमें जोखिम भरे अनजान रास्तों पर आगे जाने से रोकता है।
जिस पथ पर कोई नहीं चला, वह मंजिल तक जाएगी ही इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता है। लेकिन, यदि हमारी मंजिल नई है तो नए रास्ते पर चलना ही होगा। कोई और विकल्प नहीं है। जाने-पहचाने, पुराने रास्ते हमें पुरानी मंजिलों की ओर ही ले जाएंगे। जिन रास्तों पर दूसरे लोग चल चुके होते हैं या आप स्वयं दूसरी बार सफर तय कर रहे होते हैं, वह रास्ता आसान होता है। उस रास्ते की कठिनाइयों और सुविधाओं से हम परिचित रहते हैं। लेकिन उन रास्तों की मंजिल भी तय होती है । भारत और यूरोप के बीच पहले स्थल मार्ग से व्यापार होता था। स्थलीय मार्ग से आवागमन काफी खर्चीला था और रास्ते में तमाम तरह की बंदिशें हुआ करती थीं। व्यापारिक हितों के लिए यूरोपीय लोग भारत के साथ समुद्र के रास्ते सीधा संपर्क चाहते थे। उनकी इच्छा बदलाव की थी। रास्ते के बदलाव की। नाविक क्रिस्टोफर कोलंबस समुद्री मार्ग से भारत पहुंचने की कोशिश में निकले थे। अटलांटिक महासागर में जब वह तमाम चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते गए तो उन्हें विशाल भूखंड नजर आ गया। तब अमेरिका के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था। उस भूखंड को देखकर क्रिस्टोफर कोलंबस को लगा कि भारत ही आ गए हैं । उस भूखंड के भारत होने की उनकी धारणा गलत निकली। वह भूखंड भारत नहीं था। वह एक नई दुनिया थी जिसे बाद में अमेरिका के रूप में जाना गया। यूरोपीय नाविक वास्को डि गामा बाद में अरबी और भारतीय व्यापारियों की मदद से केप ऑफ गुड होप हुए भारत आए और उन्हें यूरोप से भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज का श्रेय दिया गया। यूरोपीय व्यापारियों और नाविकों की बदलाव की इच्छा का परिणाम नई दुनिया यानी अमेरिका की खोज और भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज के रूप में सामने आया। इन खोजों से यूरोप की महत्वाकांक्षाओं को नए पंख मिले। यूरोपीय देशों को शासन करने के लिए नए उपनिवेश हासिल हुए। ये सब हुए बदलाव की चाहत के कारण। घिसे-पिटे, जांचे-परखे सिल्क मार्ग से ही यदि यूरोप के लोग भारत के साथ व्यापारिक संबंध बनाकर खुश रहते तो फिर समुद्री मार्गों की खोज नहीं होती। उनकी अर्थव्यवस्था दोयम दर्जे की बनी रहती। समुद्री मार्गों की खोज ने यूरोप में औद्योगिक क्रांति को भी बल दिया।

अपनी स्थिति में यदि आप आमूलचूल परिवर्तन चाहते हैं, तो फिर बदलाव के लिए तैयार रहिए। कंफर्ट जोन में रहते हुए बड़े लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता। यदि हम बैठे रहे तो कहीं नहीं पहुंच पाएंगे। बदलाव की इच्छा से यदि चल देंगे, तो परिस्थितियों में भी बदलाव आएगा और हम नए लक्ष्यों को साध पाने में सफल रहेंगे।

Ravindra Nath Tiwari

तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय। 17 साल हिंदुस्तान अखबार के साथ पत्रकारिता के बाद अब 'भारत वार्ता' में प्रधान संपादक।

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