अप्प दीपो भव-22
दिलीप कुमार (कवि, लेखक, मोटिवेशनल गुरु और रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी)
समय का पहिया घूमता रहता है। जो कल था वह आज नहीं है। जो आज है वह कल नहीं रहेगा और कल क्या होने वाला है, यह किसी को नहीं पता। नदी की धार की तरह समय की भी एक धार होती है। हम रुक जाएं तब भी और हम चलते रहे तब भी, समय का पहिया चलता रहता है। संतों ने कहा है कि हमें समय के साथ चलना चाहिए। लेकिन, कुछ लोग चलते-चलते रुक जाते हैं। गुजरते समय की किसी बड़ी सकारात्मक या नकारात्मक घटना पर ही टिके रहना चाहते हैं। सुख या दुःख की बड़ी घटना ऐसे लोगों को कुछ इस तरह से झकझोर देती है कि उन्हें आगे का रास्ता दिखाई नहीं देता। वे ठहर जाते हैं। यह ठहरना बहुत ही घातक होता है। हम चल रहे हैं या रुक गए हैं, समय को इसकी परवाह नहीं होती। समय के चलने की एक गति है और वह उसी गति से आगे बढ़ता रहता है। हमें भी समय की इस प्रकृति को पहचान कर चलते रहना है। इंदीवर लिखित सफर फिल्म के प्रसिद्ध गीत की पंक्तियां आपने सुनी होगी-
तू ना चलेगा तो चल देंगी राहें
मंज़िल को तरसेंगी तेरी निगाहें
तुझको चलना होगा ।
लेकिन, चलते-चलते भी हमें बीते हुए कल के प्रति कृतज्ञ रहना जरूरी है। जिन राहों पर हम चल रहे होते हैं, जिन विचारों में हम जी रहे होते हैं, जिन परिस्थितियों में हम श्वास लेते रहते हैं, उनका निर्माण बीते हुए कल में ही किया गया था। हम में से बहुत सारे लोग अपने माता-पिता या दादा-दादी द्वारा बनाए गए मकान में रहते हैं। अपनी पुश्तैनी संपत्ति का सदुपयोग कर अपनी आजीविका चलाते हैं। हम में से कई लोगों की शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध करते हुए हमारे माता पिता ने अपार कष्ट सहे होंगे। अपनी कई महत्वपूर्ण जरूरतों को दरकिनार करके उन्होंने हमारे लिए सुख-सुविधाएं जुटाई होंगीं। इन सब के लिए हमें उनका कृतज्ञ रहना है।
हमारे पूर्वजों ने प्रकृति के साथ तालमेल बनाए रखा। पेड़ काटे तो पेड़ लगाए भी। विकास का अंधानुकरण नहीं किया। नदियों और तालाबों को बचाए रखा। उन्होंने जीवन ऐसे जिया कि आने वाली पीढ़ियों को किसी प्रकार का कष्ट ना हो। हमें उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। कृतज्ञता के भाव को मन में पुष्पित-पल्लवित करते हुए हमें उन आदर्शों को भी जीना चाहिए जो समय में आए बदलाव के बावजूद प्रासंगिक हैं। जो आदर्श विज्ञान की कसौटी पर भी सही साबित हुए हैं। एक पुरानी कहानी है। 60 साल का एक व्यक्ति अपनी जमीन पर पूरी शिद्दत के साथ नया बाग लगवा रहा था। बाग में उसने आम और लीची सहित कई फलदार पेड़ लगाए। एक राही उधर से गुजरा। उसने मजाक में कहा- बाबा, जो पेड़ आप लगा रहे हैं, उसका फल खाने के लिए तो आप जीवित रह नहीं पाएंगे। फिर ऐसे पेड़ क्यों लगा रहे हैं? उस बुजुर्ग व्यक्ति ने बड़े ही प्यार से उस राही को जवाब दिया- यदि मेरे दादाजी की भी ऐसी ही सोच रहती तो मैं जीवन में कभी भी रसीले आम का स्वाद नहीं चख पाता। उन्होंने मेरे लिए पेड़ लगाए। मैं आने वाली पीढ़ी के लिए पेड़ लगा रहा हूं।
बीते हुए कल की किसी घटना पर रुके बिना बीते हुए कल के प्रति कृतज्ञता का भाव रखते हुए वर्तमान में जीना और भविष्य की तैयारी में लगे रहना बुद्धिमानी है।कभी विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति रहे वारेन बफेट कहते हैं- अगर कोई आज पेड़ की छांव में बैठा है मतलब किसी ना किसी ने बीते कल में यह पेड़ जरूर रोपा होगा इसलिए कृतज्ञ रहिए।
कुछ लोग हमेशा शिकायत करते रहते हैं। हमारे पिताजी ने हमारे लिए किया ही क्या है? हमारे दादा जी ने हमारे लिए किया ही क्या है? दूसरों ने हमारे लिए क्या किया है? ऐसे लोग कृतघ्न और स्वार्थी होते हैं। वे अपनी विफलता के लिए बीते हुए कल को जिम्मेदार ठहरा कर अपने निकम्मेपन और आलस्य का बचाव करना चाहते हैं। ऐसे लोगों से बचकर रहना चाहिए। लेकिन, जो लोग बीते हुए कल के प्रति कृतज्ञ रहते हुए समय के साथ आगे बढ़ते रहते हैं, वह सच्चे मित्र होते हैं।
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