साहित्य संसार

रेल अधिकारी दिलीप कुमार का कॉलम ‘अप्प दीपो भव-7’, आज की प्लानिंग क्या है पार्टनर ?

-दिलीप कुमार (कवि, लेखक, मोटिवेशनल स्पीकर दिलीप कुमार भारतीय रेल सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं)

हर दिन 24 घंटे का होता है जो आठ पहरों में विभक्त होता है। हर घंटे में 60 मिनट होते हैं। पूरे दिन को यदि मिनट के मापक से देखा जाए तो हर दिन 1440 मिनट होते हैं। इन 1440 मिनटों का सही इस्तेमाल कर हम अपनी और अपने आसपास के लोगों की जिंदगी को सुंदर बना सकते हैं। लेकिन हममें से अधिकतर लोग पूरे दिन की योजना तैयार नहीं करते जिस कारण अधिकांश समय गलत या कम प्राथमिकता वाले कार्यों को करते हुए बीत जाता है और हम महत्वपूर्ण कार्य संपादित नहीं कर पाने से वंचित रह जाते हैं। सुबह के नित्य कर्मों से निवृति पाने के बाद और जलपान करने से पहले एक जरूरी सवाल हम सबको खुद से करना चाहिए- आज की प्लानिंग क्या है पार्टनर ?

वैसे बेहतर तो यही है कि पूरे दिन की योजना हम अपने मस्तिष्क पर अंकित कर लें। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। उन लोगों को तो और ज्यादा परेशानी होती है, जो निरपेक्ष भाव से अपना मूल्यांकन नहीं कर करते। तो फिर क्या किया जाए। मेरी नजर में एक सरल तरीका है। इस तरीके को आजमा कर देखिए।

शयन के लिए जाने से पहले पूरे दिन क्या-क्या काम करना है, उसे सुबह-सुबह डायरी के पन्नों पर अंकित कर दीजिए। जितने ज्यादा काम आप अंकित करेंगे उतना बेहतर। उसके बाद कार्यों की ग्रुपिंग कर दें यानी एक प्रकृति के कार्य या एक साथ संपादित होने वाले कार्यों को एक ग्रुप में रखें। जैसे सब्जी और किराना का सामान खरीदना एक दूसरे से जुड़ा हुआ कार्य है। एक ही बाजार में जा पर हम दोनों कार्यों को कर सकते हैं। इसी तरह पौधों को पानी देना, चिड़िया को दाना देना, गाय तथा दूसरे जीवों को खाना खिलाना एक ही श्रेणी के कार्य हैं जिन्हें एक साथ संपादित करना चाहिए। सुबह और शाम के भ्रमण के साथ अथवा भ्रमण के बीच में इन कार्यों को आसानी से किया जा सकता है। कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें दफ्तर से लौटते समय किया जा सकता है। यदि आप बस या ट्रेन से सफर करते हैं, तो उस समय का उपयोग भी मोबाइल पर बातचीत करने के लिए किया जा सकता है। आजकल शहरों में बड़े कार्यालयों के आसपास छोटे-छोटे बाजार विकसित हो चुके हैं। दैनिक जरूरत की कई सामग्रियां छोटे बाजारों से खरीदी जा सकती है। इससे समय की बचत होती है और छोटे दुकानदारों को भी मदद मिल जाती है। पड़ोसी की दुकान पर सामानों की लिस्ट व्हाट्सएप या किसी और माध्यम से भेज कर और सामान की होम डिलीवरी करा कर हम अपना देश कीमती समय बता सकते हैं। संध्या कालीन भ्रमण और कुछ मित्रों के साथ गपशप के काम को एक साथ जोड़ा जा सकता है। संध्या काल में जब हम आराम से चल रहे होते हैं तो फोन पर परिवार जनों से बातचीत भी कर सकते हैं। इस तरह भ्रमण और संवाद का कार्यक्रम साथ-साथ हो जाता है। यदि काम ज्यादा हो और उसे कल के लिए टाला नहीं जा सकता तो फिर परिवार के दूसरे सदस्यों और मित्रों की मदद लेने में कोई बुराई नहीं है। मदद लेने में कई बार हम संकोच करने लगते हैं। जबकि सच्चाई तो यह है कि मदद लेना और देना आपसी संबंधों को प्रगाढ़ करता है।

मेरा अपना अनुभव है कि यदि सुबह में लिखकर हम अपने दिन की योजना बनाते हैं तो कुछ दिनों में ही हमें यह एहसास हो जाता है कि व्यवस्थित तरीके से हम ज्यादा काम संपादित कर रहे हैं। लिखित प्लानिंग के साथ काम करने पर कई ऐसे काम जो बरसों से लटके पड़े हुए होते हैं, वह भी कर लिए जाते हैं। कुछ दिनों बाद ही आप महसूस करने लगेंगे कि आप के दिन की अवधि थोड़ी बढ़ गई है। 1440 मिनटों में आप 20 से 30 प्रतिशत अधिक काम निपटा रहे हैं जो आपको जीवन में आगे रखेगा।

Ravindra Nath Tiwari

तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय। 17 साल हिंदुस्तान अखबार के साथ पत्रकारिता के बाद अब 'भारत वार्ता' में प्रधान संपादक।

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