अप्प दीपो भव-3
– दिलीप कुमार
(लेखक, कवि, मोटिवेशनल स्पीकर तथा भारतीय रेल के वरिष्ठ अधिकारी)
प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में जागना सबसे अच्छा माना गया है। मन में यह संशय सदा बना रहता है कि जागने के बाद सबसे पहला काम क्या करें? चिंता करें या चिंतन करें? व्यायाम करें या भ्रमण करें? योग करें, प्राणायाम करें या फिर कोई और काम करें?
प्रातः काल का प्रथम कार्य सबसे महत्वपूर्ण होता है। मेरे विचार से जिनकी बदौलत हमारा जीवन है, उनका स्मरण करना, उनके प्रति आभार प्रकट करना दिन की शुरुआत का सबसे अच्छा तरीका है।
माता-पिता ने हमें जन्म दिया। हमारा लालन-पालन किया। अनेक प्रकार की सुख-सुविधाओं का त्याग कर हमारी सुख-सुविधाओं का ख्याल रखा। जब-जब हम संकटों में घिरे, उन्होंने संकटों से उत्पन्न हुए बाणों को अपनी छाती पर झेला। मां का तो जीवन में विशेष स्थान होता है। मां का हमसे जुड़ाव हमारे जन्म के 09 महीने पहले से ही प्रारंभ हो जाता है और उनकी अंतिम श्वांस जब तक चलती रहती है, यह जुड़ाव बना रहता है। पिता हमारे अस्तित्व को बनाए रखने तथा व्यक्तित्व को निखारने के लिए आधार का काम करते हैं। अपने प्यार का प्रदर्शन न करते हुए भी, आपसे सबसे ज्यादा प्यार करने वाला शख्स आपके पिता ही होते हैं। इन दोनों का और फिर उनके पुरखों का प्रातः स्मरण जरूर करना चाहिए।
हमारा शरीर प्रकृति के पंच तत्वों से बना है- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। प्रकृति है तो हम हैं, इसलिए प्रकृति का प्रातः वंदन भी आवश्यक है। मैं अपने दिन की शुरुआत प्रकृति को धन्यवाद देते हुए गंगा माता और सूर्यदेव को प्रणाम करते हुए ही करता हूं।
सुबह-सुबह ईश्वर का नाम लेने से हमें आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। जो लोग ईश्वर की शक्ति में विश्वास रखते हैं उनके लिए ईश्वर की स्तुति करने का सर्वोत्तम समय सुबह ही है। जागने के ठीक बाद हम ईश्वर को याद करें। ईश्वर की सत्ता में जिन्हें विश्वास नहीं, वे प्रकृति के साक्षात रूपों के प्रति आभार प्रकट कर सकते हैं। सूरज से हमें रोशनी प्राप्त होती है। नदियों और दूसरे जलस्रोतों से हमें जल प्राप्त होता है। धरती हम सब की मां है। इनके प्रति आभार प्रकट करना ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करने के बराबर ही होता है। ईश्वर के प्रति विश्वास न रखने वाले लोग इन प्राकृतिक शक्तियों के प्रति अपनी आस्था प्रकट करके अपने दिन की सुखद शुरुआत कर सकते हैं।
सुबह जागने के ठीक बाद अपने हाथों को देखना भी एक अच्छी आदत मानी गई है।
प्रात: कर-दर्शनम्-
कराग्रे वसते लक्ष्मी:, करमध्ये सरस्वती।
कर मूले तु गोविन्द:, प्रभाते करदर्शनम।।
हाथ के अग्र भाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती तथा मूल में गोविन्द (परमात्मा) का वास होता है। प्रातः काल में (पुरुषार्थ के प्रतीक) हाथों का दर्शन करें।
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