ललन सिंह का धोबिया पाट, आरसीपी आउट मगर खेल अभी खत्म नहीं हुआ है…

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• डॉ. रवीन्द्र नाथ तिवारी

जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने ऐसा धोबिया पाट दिया कि केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह राज्यसभा से चलता कर दिए गए यानी कि उन्हें तीसरी बार उम्मीदवार नहीं बनाया गया। बिहार के ज्यादातर लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पर्याय कहे जाने वाले, सुप्रीम सीएम कहलाने वाले आरसीपी सिंह इतने बेआबरू होकर कुचे से बाहर निकलेंगे।
ललन सिंह ने आरसीपी से बदला ले लिया। ‘आरसीपी फतह’ के बाद ललन सिंह की जहां अपनी पार्टी से लेकर देश के राजनीतिक मंच पर धाक बढ़ी है, कद बड़ा है वहीं इसी के साथ उनकी जिम्मेदारियां भी बढ़ीं हैं, चुनौतियां भी बढ़ी हैं। आने वाले दिनों में जनता दल यू में घमासान रोकना भी उनके लिए चुनौती होगी। आरसीपी सिंह के खिलाफ अभियान में उपेंद्र कुशवाहा का साथ ललन सिंह को मिला मगर उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ आगे बनाए रखना उनके लिए आसान नहीं होगा।

आरसीपी ने दिए तीखे संदेश

राज्यसभा से बेटिकट होने के बाद आरसीपी सिंह ने आज पत्रकारों से बातचीत में बड़े ही संयमित तरीके से ही सही मगर मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह के लिए तीखे संदेश छोड़े। उन्होंने यह भी बताने की कोशिश की कि अभी वह हार मानने वाले नहीं है। सबसे पहले तो उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि वे अभी मंत्री पद छोड़ने वाले नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अभी उनका कार्यकाल जुलाई के पहले सप्ताह तक बचा है। मंत्री के सवाल पर कहा कि यह प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है। वह प्रधानमंत्री के पास जाएंगे और पूछेंगे कि उनके लिए क्या आदेश है? सीएम से भी बात करेंगे। यहां यह भी बता दें कि प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार होता है कि वह किसी को संसद सदस्यता समाप्त होने के 6 महीने तक मंत्री बनाए रख सकें। ऐसे में अब सबकी नजर भाजपा और प्रधानमंत्री की ओर होगी। इसके साथ आरसीपी ने यह भी दोहराया कि वे नीतीश कुमार की सहमति से मंत्री बने थे। उनसे पत्रकारों ने जब यह सवाल किया कि जनता दल यू के संसद सदस्यों के अनुपात में मंत्री बनाने की मांग आपकी पार्टी की ओर से की गई थी लेकिन आप सिर्फ अपने मंत्री बन कर मान गए, इस पर आरसीपी ने जो कुछ कहा वह मुख्यमंत्री पर सीधे प्रहार था। उन्होंने कहा कि भाजपा की तुलना में हमारे सदस्य काफी कम हैं। हमारी संख्या मात्र 16 है। ऐसे में उन्होंने हमको बुला लिया, यही काफी है। यदि कोई अनुपातिक संख्या की बात करता है तो वह आपस में लड़ाने के लिए ऐसा कह रहा है। इस पर पत्रकारों ने कहा कि इसका मतलब है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गलत हैं तब आरसीपी ने कहा कि वह किसी का नाम लेना नहीं चाहते हैं। यहां बता दें कि पहली बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में नहीं शामिल होने के सवाल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि हमारी अपेक्षा अनुपातिक संख्या में मंत्रिमंडल में जगह मिलने की थी लेकिन नहीं मिली। यहां बता दें कि पहली बार यह कहा गया था कि नीतीश चाहते हैं कि तीन मंत्री पद उनकी पार्टी को मिले। दूसरी बाद में आरसीपी मात्र एक ही मंत्री पद पर मान गए। इसके पीछे आज उन्होंने जो दलील दी उससे यह जाहिर हुआ कि उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को झुठला दिया। उनसे पत्रकारों ने जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने की संभावना की बात की तो इसे भी आरसीपी ने एक सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि हम केवल बिहार में हैं, पहले 20 सांसद थे अब 16 हैं। पता है प्रधानमंत्री बनने के लिए कितने सांसदों की जरूरत होती है? उन्होंने अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं के हक की बात करते हुए कहा कि हमने 12-13 प्रकोष्ठों को बढ़ाकर 33 का दिया था मगर अब उन्हें घटाकर फिर से कम कर दिया गया है। हमारा अनुरोध होगा कि इन्हें 33 से बढ़ाकर 53 प्रकोष्ठ कर दिए जाए। प्रकोष्ठों के जो पदाधिकारी हैं उन्हें फिर से काम करने का मौका दिया जाए। हमने 12 वर्षों तक संगठन के लिए काम किया है। आगे भी काम करेंगे। उन्होंने साफ कर दिया है कि वे न तो पार्टी छोड़ने वाले हैं और ना ही चुपचाप घर बैठने वाले हैं। वहीं कुछ लोग यह संभावना जता रहे हैं कि आरसीपी सिंह की हालत रंजन यादव वाली होने वाली है।

ललन सिंह के लिए अभी कई परीक्षाएं बाकी

वहीं दूसरी ओर आरसीपी को बेटिकट करने में मुख्य भूमिका निभाने वाले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के लिए आगे की राह चुनौती भरी होगी। उन्हें कई अग्नि परीक्षाओं से गुजरना होगा।
पहली बात कि आरसीपी का एकाएक अर्श से फर्श पर आना बिहार ही नहीं बल्कि भारतीय राजनीतिक इतिहास की एक बड़ी घटना है और ऐसी घटनाओं को नीतीश कुमार जैसा राजनीतिक शख्सियत ही अंजाम दे सकता है। अपनी जाति के इतने धुरंधर आरसीपी के बारे में इतना बड़ा फैसला लेकर उन्होंने साबित किया कि वे जाति और जमात की राजनीति जरूर करते हैं मगर मन-मिजाज जाति की संकीर्णताओं से ऊपर है। पहले यह कहा जा रहा था कि जनता दल यू कोयरी- लकुर्मी की पार्टी है ऐसे में नीतीश कुमार यदि आरसीपी सिंह को रोकेंगे तो पार्टी टूट जाएगी क्योंकि ज्यादातर विधायक और कार्यकर्ता आरसीपी सिंह के पक्ष में हैं जो ललन सिंह से दुराव रखते हैं। कुछ लोग भी यह भी कह रहे थे कि रेल मंत्री के जमाने से सचिव के रूप में काम करने वाले आरसीपी सिंह नीतीश कुमार की सारी कमियों को जानते हैं। इसीलिए सीएम आरसीपी को नाखुश करने की हिम्मत नहीं कर पाएंगे मगर नीतीश ने सारे मिथकों को तोड़ते हुए चौंकाने वाला फैसला लिया।
अब बारी ललन सिंह की है। उन्हें भी आगे अपने काम से साबित करना होगा कि वह केवल भूमिहारों के नेता नहीं हैं बल्कि अगड़े-पिछड़े सबों के लिए हैं। इसमें दो राय नहीं है कि जनता दल यू में ज्यादातर विधायक और कार्यकर्ता आरसीपी सिंह से लगाव रखते हैं चाहे इसका कारण जाति हो या फिर अन्य वजह।
ऐसे तमाम विधायकों और कार्यकर्ताओं का विश्वास हासिल करना ललन सिंह के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी होगी। आरसीपी कार्यकर्ताओं से मिलते थे मगर ललन सिंह के बारे में कहा जाता है कि उनके पास कार्यकर्ताओं की पहुंच आसान नहीं है। 90 फीसदी भूमिहार कार्यकर्ता भी ललन सिंह की आलोचना करते मिल जाएंगे।
मैंने मुंगेर लोकसभा चुनावों के कवरेज के दौरान कार्यकर्ताओं का ललन सिंह के प्रति नाराजगी देखी है और यह भी देखा है कि लोग किस तरह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मनाने पर और उनकी पहल पर ललन सिंह को वोट देते हैं। कार्यकर्ताओं की नाराजगी के कारण एक बार ललन सिंह को मुंगेर से चुनाव हारना भी पड़ा था। विरोधियों के तमाम आरोपों के बाद भी ललन सिंह के साथ एक अच्छी बात यह है कि वास्तव में वे जाति की राजनीति नहीं करते हैं, यह उनकी प्रकृति नहीं रही है। ऐसे में वे दूसरी जातियों के कार्यकर्ताओं का विश्वास आसानी से हासिल कर सकते हैं। हाल के दिनों में उन्होंने कार्यकर्ताओं और मुंगेर संसदीय क्षेत्र की जनता से मिलने-जुलने को लेकर अपने व्यवहार को बदला है।

नीतीश को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की चुनौती

एक समय था जब कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर साझा विपक्ष के उम्मीदवार माने जाते थे मगर धीरे-धीरे उनकी राजनीति का आभा निस्तेज हो गई, उनका राजनीतिक कद घट गया हो गया। वे बिहार में तीसरी नंबर की पार्टी के मुखिया बनकर रह गए। लेकिन ललन सिंह की जब सांसद के रूप में पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका बढ़ी तब से वे लगातार नीतीश कुमार की राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका बढ़ाने की कोशिश में है। इसके लिए वे अपने पार्टी को को भी राष्ट्रव्यापी शक्ल देने में लगे हैं।
झारखंड के जनता दल यू के प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो को राज्यसभा के उम्मीदवार बनाने के बाद उन्होंने मीडिया से कहा कि पार्टी को झारखंड में मजबूत बनाने के लिए यह फैसला लिया गया है। झारखंड में हमारे छह विधायक हुआ करते थे वहां हम लोग फिर से मेहनत करेंगे। ललन सिंह ने कुछ महीने पहले खीरू महतो को दिल्ली बुलाकर झारखंड प्रदेश के संगठन की बागडोर सौंपी थी। हाल के दिनों में नीतीश के करीबी मंत्री श्रवण कुमार को उन्होंने झारखंड का प्रभारी नियुक्त किया था। मणिपुर में छह विधायकों का जीतना भी ललन सिंह के राजनीतिक कौशल के रूप में देखा गया। उत्तर प्रदेश के चुनाव में स्वतंत्र रूप से जनता दल यू के उम्मीदवारों को खड़ा करने के पीछे भी ललन सिंह की योजना वहां पार्टी को नए सिरे से खड़ा करना था। आज के प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरसीपी सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भावी प्रधानमंत्री की भूमिका को खारिज करके ललन सिंह की चुनौती को और भी बढ़ा दिया है। संगठन के साथ-साथ नीतीश कुमार को राष्ट्रीय राजनीति में स्वीकार कराने के लिए भी उन्हें राजनीतिक जौहर दिखाने होंगे।

भाजपा को साधना आसान नहीं

भाजपा को साथ लेकर चलना भी ललन सिंह की कठिन परीक्षाओं में से एक है। आरसीपी सिंह भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के बेहद करीब थे। आज के प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी उन्होंने भाजपा की जमकर तरफदारी की। बताया जाता है कि आरसीपी सिंह का टिकट इसलिए भी कटा कि ललन सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह समझाने में भी सफल रहे कि आरसीपी सिंह अपनी पार्टी नहीं बल्कि भाजपा के नफा-नुकसान को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा ने जनता दल यू के साथ गठबंधन नहीं किया जबकि आरसीपी को इसकी जिम्मेदारी दी गई थी। नीतीश कुमार को यह लगातार बताने की कोशिश की गई कि यदि आरसीपी को नहीं रोका गया तो भविष्य में वे विधायकों को तोड़कर भाजपा में शामिल हो सकते हैं। जानकारों का यह भी दावा है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को ललन सिंह उतना नहीं भाते हैं जितना कि आरसीपी। कहा यह भी जाता है कि मुख्यमंत्री चाहते थे कि आरसीपी सिंह के साथ ललन सिंह भी मंत्री बनें मगर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की नापसंद के कारण ऐसा नहीं हो पाया। इसके पीछे बताया जाता है कि भाजपा नेताओं को यह पता है कि ललन सिंह आरसीपी की तरह कंट्रोल में रहने वाले नहीं है। अब ललन सिंह के सामने यह चुनौती है कि वे भाजपा के साथ पटरी बैठा कर एनडीए गठबंधन और सरकार को आगे ले जाएं। वे भाजपा को जितनी मजबूती से साध पाएंगे, बिहार में नीतीश सरकार का भविष्य उतना ही मजबूत होगा।

आरसीपी टैक्स की जगह नहीं लगे ललन टैक्स, खीरू महतो और हेगड़े का उदाहरण आगे भी जारी रहे

केंद्रीय मंत्री परिषद में शामिल होने को लेकर ही आरसीपी और ललन सिंह का विवाद गहराया था इसीलिए यदि जनता दल यू की ओर से आगे किसी के मंत्री बनने की बात होती है तो ललन सिंह तो तत्काल मंत्री नहीं बन पाएंगे।
मगर आरसीपी के पराभव के बाद बिहार के शासन-प्रशासन में ललन सिंह की भूमिका जरूर बढ़ेगी।
मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव से लेकर केंद्रीय मंत्री बनने तक आरसीपी सिंह के बारे में बिहार में यही प्रचारित रहा कि सभी ट्रांसफर-पोस्टिंग और नियुक्तियां आरसीपी करते हैं। विधानसभा में और बाहर विपक्ष के लोग आरसीपी टैक्स का मुद्दा उठाते रहे हैं। भले ही फैसले अंजनी सिंह, चंचल कुमार, प्रत्यय अमृत और अमीर सुबहानी समेत दूसरे नवरत्नों के प्रभाव से लिए गए हों मगर बदनामी का ठिकरा आरसीपी के सिर पर ही फुटता रहा। अब आरसीपी विरोधी कह रहे हैं कि बिहार को आरसीपी टैक्स से मुक्ति मिलेगी तो ऐसे में ललन सिंह का जिम्मा बनेगा कि अब ललन टैक्स का चलन न चल पड़े। हालांकि ललन सिंह ऐसे मामलों में बड़े ही सजग व्यक्ति हैं मगर सुशासन बाबू के बिहार में अभी जो कुशासन व्याप्त होने के आरोप लग रहे हैं, रिश्वतखोरी, अपराध, पैरवी और पैसे के आधार पर पोस्टिंग का बाजार गर्म होने की शिकायत की जा रही है उससे बिहार को निजात दिलाने की उम्मीद ललन सिंह से बढ़ गई है। ईमानदार अधिकारियों को तरजीह मिले।

पार्टी के कार्यकर्ताओं की उम्मीदें

पार्टी के जदयू कार्यकर्ताओं की उम्मीदें इसलिए बढ़ीं हैं कि राज्यसभा के दोनों उम्मीदवारों अनिल हेगड़े और खीरू महतो के चयन में नीतीश कुमार और ललन सिंह ने पार्टी के प्रति समर्पण और निष्ठा का ध्यान रखा। इन दोनों उम्मीदवारों के चयन की विरोधी दलों में भी प्रशंसा हुई है। कार्यकर्ताओं की अपेक्षा है कि अब पार्टी के निगम ,बोर्ड और दूसरे लाभ के पद पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं को दिए जाएं। अभी तक बिहार में आईएएस, आईपीएस और दूसरे अधिकारी रिटायरमेंट के बाद वैसे पदों पर भी काबिज होते रहे हैं जिन पर जनता दल यू से संबंधित योग्य लोगों को रखा जा सकता है।

ललन सिंह, विवाद और नीतीश का विश्वास

ललन सिंह का विवादों से पुराना नाता रहा है। उन्होंने संघर्ष की राजनीति की है। कर्पूरी ठाकुर और जयप्रकाश नारायण के नजदीक रहे हैं। लेकिन उनकी उनके अच्छे गुणों को उनके लोग जनता में प्रचारित-प्रसारित नहीं कर पाए। कभी उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के उस भाषण से जोड़कर देखा जाता है कि जिसमें उन्होंने कहा था कि पथ निर्माण मंत्री ललन सिंह पुल का पाया बनाने में 50 प्रतिशत से ज्यादा खर्च दिखाते हैं। ललन सिंह की बुराइयों के बारे में एक से एक दंत कथाएं प्रचलित है मगर उनके समर्थकों ने कभी यह प्रचारित करने की कोशिश नहीं की कि ललन सिंह एक अनुशासन प्रिय राजनेता हैं। ज्यादातर राजनीतिज्ञों की तरह बकवास उन्हें पसंद नहीं, खुद भी वह बकवास नहीं करते हैं। कम बोलते हैं और काम में विश्वास रखते हैं। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष रहते यह निर्देश जारी किया था कि जनता दल यू का कोई भी आदमी गाड़ी में राइफल की नाल खिड़की से बाहर निकाल कर नहीं चलेगा। मैंने भागलपुर में हिंदुस्तान अखबार में काम करते हुए खुद यह देखा था कि उन्होंने पथ निर्माण मंत्री रहते एक ही रात में छापा मरवा कर 700 ओवरलोड पत्थर वाले ट्रकों को पकड़वाया था जिनके पास कोई वैध कागजात नहीं थे। उनके पहले और बाद में अवैध पत्थर ढुलाई के खिलाफ इतनी बड़ी कार्रवाई नहीं हुई। झारखंड के साहिबगंज जिला से रोज हजारों ट्रक अवैध खनन से निकाले गए पत्थर, बिना चालान के और ओवरलोड करके भागलपुर होते हुए बिहार और दूसरे राज्यों में जाते हैं। पिछले दिनों झारखंड के विधायक लोबिन हेंब्रम ने विधानसभा में यह सवाल उठाया और बताया कि रोज साहिबगंज और भागलपुर की पुलिस, प्रशासनिक, परिवहन और खनन पदाधिकारी लाखों की वसूली करते हैं। झारखंड में खनन सचिव पूजा सिंघल की गिरफ्तारी के बाद यह मामला और भी गर्म है मगर भागलपुर के प्रभारी मंत्री रहते ललन सिंह के अलावे किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। डीएन गौतम, अभयानंद, आनंद शंकर जैसे पुलिस महानिदेशकों के कार्यकाल में भी भागलपुर पुलिस ने इस अवैध वसूली के खेल को बेरोकटोक जारी रखा और आज भी जारी है। भागलपुर से पीरपैंती तक NH80 के निर्माण के नाम पर हुए करीब 100 करोड़ के घपले को मंत्री ललन सिंह ने ही पकड़ा था। जल संसाधन मंत्री रहते नवगछिया के तटबंध निर्माण में हुए घोटाले में उन्होंने एक दर्जन इंजीनियरों पर एफआईआर करवाया था। ललन सिंह की जोड़-तोड़ की क्षमता के साथ-साथ प्रशासनिक क्षमता भी समय-समय पर देखी गई है। अब उन्हें अपने संगठनात्मक क्षमता का जौहर दिखाना है।

परिवारवाद की राजनीति से दूर

उनके साथ एक और प्लस प्वाइंट यह है कि वे परिवारवाद की राजनीति से दूर हैं। उनके छोटे भाई डॉक्टर प्रिय रंजन सिंह उर्फ मुन्ना जी राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उनकी पढ़ाई रांची सेंट जेवियर्स कॉलेज में हुई है। उन्होंने अभी तक केवल शिक्षक के रूप में काम किया, कोई दूसरा पद हासिल नहीं किया। ललन सिंह के चुनाव को छोड़कर मुन्ना जी की कभी कोई राजनीतिक सक्रियता या दखलअंदाजी नहीं देखी जाती है। ललन सिंह की एकमात्र बेटी विदेश में रहती है और हाउसवाइफ है। ललन सिंह की पढ़ाई भी बड़े मजबूत ढंग से हुई है। वे एमए किये हैं। उनके पिता एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हुआ करते थे। वे गांव-घर से भी सक्षम रहे हैं।
ललन सिंह नीतीश कुमार के संघर्ष के दिनों के साथी ही रहे हैं। दोनों के बीच एक समय तकरार भी हुआ। उसके बाद ललन सिंह नीतीश विरोधी अभियान में शामिल हो गए थे और तब वे सार्वजनिक रूप से कहा करते थे कि नीतीश के मुंह में नहीं पेट में दांत हैं। मगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहीं भी और कभी भी ललन सिंह के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा। ऐसा नीतीश का स्वभाव भी रहा है कि वे अपने साथियों के खिलाफ जल्दी विरोध में मुंह नहीं खोलते हैं। बाद में दोनों राजनेता फिर एक हुए।
इसलिए ललन सिंह ने उस दौर को भी देखा है। नीतीश का कुछ विशिष्ट स्वभाव दूसरे राजनीतिज्ञों से अलग करता है। विशिष्ट और जटिल स्वभाव वाले नीतीश कुमार से तालमेल रखना भी राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए दुश्वारियों से भरा होगा। इसीलिए नीतीश कुमार के मामले में भी ललन सिंह बड़े फूंक-फूंक कर चलते हैं। हमेशा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सर्वमान्य बताते हैं, उन्हें जनता दल यू का सब कुछ बताते हैं।
आरसीपी सिंह के दूर होने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से तालमेल बिठाते हुए उनके द्वारा दी गई संगठनात्मक जिम्मेदारियों को निभाने में सफलता हासिल करना, आरसीपी समर्थकों से निपटते हुए, उन्हें अपना बनाते हुए पार्टी में नई ऊर्जा पैदा करना, क्षेत्रीय दल जदयू को राष्ट्रीय दल के रूप में तब्दील करना, बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी को ऊपर उठाने के साथ वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों को कुशलतापूर्वक अंजाम देने का काम राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह किस कौशल के साथ कर पाते हैं, इस पर सबकी नजर रहेगी।

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