बाबा बटेश्वर धाम को कहा जाता है बिहार का गुप्त काशी
अगर जौ अनाज भर जमीन और होती तो आज बिहार में होती काशी
भागलपुर, भारत वार्ता संवाददाता : बिहार का काशी कहा जानेवाला कहलगांव के ऐतिहासिक बाबा बटेश्वर धाम में 07 अगस्त (रविवार) को बाबा बटेश्वरनाथ महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। रविवार की शाम 4:00 बजे बिहार सरकार के मंत्री डॉ. अशोक चौधरी द्वारा महोत्सव कार्यक्रम का उद्घाटन किया जाएगा।
मष्तिष्काभिषेक, सांस्कृतिक कार्यक्रम और गंगा महाआरती का आयोजन
महोत्सव के आयोजक विष्णु खेतान ने बताया कि श्रावण मास में बटेश्वर धाम में एक माह का संकीर्तन एवं गंगा महाआरती का आयोजन किया जा रहा है। 07 अगस्त को महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। महोत्सव का शुभारंभ बाबा बटेश्वरनाथ के 24 घण्टे का मष्तिष्काभिषेक से होगा। मष्तिष्काभिषेक का पूर्णाहुति के अवसर पर 8 अगस्त को भंडारा का आयोजन किया जाएगा। 7 अगस्त को सुबह 11:00 बजे मंत्री डॉ. अशोक चौधरी भी बाबा के दरबार में मष्तिष्काभिषेक में भाग लेंगे। शाम में 4:00 बजे से महोत्सव में भजन संध्या व सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होगा। कलाकार अपने सुर-संगीत से बाबा को नमन करेंगे। महोत्सव कार्यक्रम में स्थानीय इतिहास के शिक्षकों द्वारा बाबा बटेश्वर धाम के ऐतिहासिक महत्त्व पर चर्चा होगी। मुख्य अतिथि मंत्री डॉ. अशोक चौधरी द्वारा सामाजिक कार्यकर्ताओं, जनप्रतिनिधियों व सरकारी सेवकों का सम्मान भी किया जाएगा।
काशी धाम बनते-बनते रह गया कहलगांव का बटेश्वर, पुराणों में है उल्लेख
कहलगांव में स्थित बाबा बटेश्वरनाथ धाम अपनी पौराणिकता और ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है। बाबा बटेश्वरनाथ धाम को बिहार का काशी भी माना जाता है। कहलगांव की धरती किसी जमाने में ऋषियों की तपोभूमि रही है। इस इलाके में गुरु वशिष्ठ, ऋषि दुर्वासा और ऋषि कोहल ने तपस्या की थी। ऋषि कोहल के नाम से इस क्षेत्र का नाम कहलगांव पड़ा। दुर्वासा की यह तपोभूमि रही है। ऋषि वशिष्ठ के द्वारा स्थापित महादेव आज बटेश्वर महादेव के नाम से जाने जाते है। यह स्थल कितना पवित्र है इसकी चर्चा पुराणों में उल्लेखित है। शिव पुराण में भी इसकी चर्चा है। यहां 40 किलोमीटर गंगा उत्तरायणी बहती है। पहाड़ है, जंगल है और श्मशान घाट भी। बताया यह जाता है कि इस जगह को भगवान शिव की नगरी काशी के रूप में बसाया जाना था लेकिन जौ बराबर भूमि कम पड़ जाने के कारण काशी को बनारस के पास बसाया गया और गुप्त काशी यहां रह गया। इसकी चर्चा भी पुराणों में है। इसको लेकर एक कथा प्रचलित है, कहते हैं की पर्वतराज हिमालय की पुत्री देवी पार्वती का विवाह महादेव से हुआ था और दोनों कैलाश में बास करते थे। सती को कैलाश में रहना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि कैलाश पर्वतराज हिमालय के क्षेत्र में हीं पड़ता था। एक दिन महादेव के इस बात का भान हुआ और उन्होंने देवी पार्वती की इच्छा को पूरा करने की सोची। इसके लिए कैलाश के बराबर ही भूमि के टुकड़े की आवश्यकता थी। इसके लिए शर्त यह रखी गई कि पूरा भूखंड गंगा के किनारे स्थित हो जहां गंगा उत्तरवाहिनी बह रही हो और वह स्थान पवित्र भी हो। देवर्षि नारद और देव शिल्पी विश्वकर्मा ने ऐसे क्षेत्र की खोज शुरू की और बिहार के कहलगांव स्थित बटेश्वर स्थान की जमीन इसके लिए सटीक बैठी। ऐसी एक और भूमि झारखंड के देवघर में भी चिताभूमि की भी मिली लेकिन यहां शक्ति पीठ होने के कारण यह जगह दोनों के निवास के लिए सही नहीं माना गया। अब बचा कहलगांव के समीप स्थित बटेश्वर स्थान लेकिन यहां भी एक कमी रह गई, यह भूमि कैलाश की माप से जौ भर कम रह गई। इसके बाद उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी की स्थापना की गई। इस क्षेत्र को पुरानों में गुप्त काशी की भी संज्ञा दी गई है।
तंत्र विद्या का केंद्र रहा है बटेश्वर धाम, श्मशान के पास स्थापित बाबा को नहीं पसंद है अशांति
प्राचीनकाल में यह तंत्र विद्या का बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था। दूर-दूर से लोग यहां तंत्र विद्या की सिद्धि प्राप्त करने के लिये आते थे। महादेव बटेश्वर नाथ मंदिर के ठीक सामने मां काली का मंदिर है। महादेव के सामने मां काली के मंदिर का संयोग देश मे कहीं नहीं मिलता है। इस जगह की सिद्धि को देखते हुए बटेश्वर मंदिर से 3 किलोमीटर दूर विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। जिसमें तंत्र विद्या की पढ़ाई होती थी।
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि हर तीर्थ से यह शांत जगह है। यह तांत्रिक स्थल है। श्मशान पास में ही स्थित है। यहां शंकर जी शांति चाहते हैं। यह अशांति नहीं रहती है। ज्यादा चहल-पहल नहीं रहता है। बाबा बटेश्वरनाथ को ज्यादा चहल-पहल नहीं है।
मान्यता है कि बाबा बटेश्वरनाथ से जो भी भक्त सच्चे दिल से जो मांगते हैं उनकी मुरादें अवश्य पूरी होती है। इसी कारण शिव भक्तों का इस धाम से गहरा जुड़ाव है।
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